संपादकीय

चुनाव सर्वेक्षणों में मोदी-मोदी की गूँज

गुजरात और हिमाचल के चुनाव सर्वेक्षणों में नरेंद्र मोदी की बादशाहत पर फिर मुहर लग गई है। लगता है मोदी का जादू अभी भी मतदाताओं के सिर चढ़ कर बोल रहा है। हिमाचल में कहीं कोई चुनौती दिखाई नहीं दे रही थी मगर गुजरात में कांग्रेस ने तीन लड़कों को साथ लेकर जो चक्रव्यूह रचा था वह भी तार तार हो कर बिखर गया।
गुजरात के एक्जिट पोल में एक बार फिर यह राज्य भाजपा की झोली में जा रहा है। टुडेज चाणक्य के सर्वे में बीजेपी को न्यूनतम 135 सीटें और अधिकतम 146 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है। टाइम्स नाउ और वीएमआर ने अपने एग्जिट पोल में बीजेपी को 109 और कांग्रेस को 70 सीटें मिलने का अनुमान लगाया है। इंडिया टुडे एक्सिस के एग्जिट पोल के अनुसार बीजेपी 99 से 113 सीटों पर और कांग्रेस को 68 से 82 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है। एबीपी न्यूज और सीएसडीएस के एग्जिट पोल्स के मुताबिक बीजेपी 117 और कांग्रेस 64 सीटें जीत दर्ज कर सकती है। इंडिया टीवी वीएमआर एग्जिट पोल सर्वे के अनुसार बीजेपी को 104 से 114 सीटें मिल सकती है तो वहीं कांग्रेस को 65-75 सीटें मिल सकती हैं। रिपब्लिक चैनल ने बीजेपी को 109 और कांग्रेस को 71 सीटें मिलने की उम्मीद जताई है। इंडिया टीवी ने 104-114, इंडिया न्यूज सीएनएक्स ने 115, न्यूज नेशन ने 126, न्यूज 18 ने 104 सीटें देकर भाजपा की झोली भरदी। खास बात यह है की जितने भी सर्वे हुए उन सब में भाजपा की बम्फर जीत दिखाई दे रही है। सभी एग्जिट पोल्स के औसत यानी महापोल की बात करें तो बीजेपी को गुजरात में 119 सीटें मिल रही हैं। दूसरी तरफ हार्दिक, जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर के साथ मिलकर हर दांव आजमाने वाली कांग्रेस को सिर्फ 62 सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है।
इससे पूर्व हुए ओपिनियन पोल में भी भाजपा का जीत का डंका बजता दिखाई दे रहा था। रही सही कसर एग्जिट पोल ने निकाल दी। कांग्रेस और हार्दिक पटेल इसे स्वीकार नहीं कर रहे है। वे मतगणना का इंतजार करेंगे। मगर एक बात पूरी तरह साफ हो गई है कि मोदी आज भी गुजरात के बेताज बादशाह है और उन्हें वहां कोई चुनौती नहीं है। पटेलों के सबसे बड़े नेता रहे पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने भी मोदी के सामने अपने हथियार डाल दिए थे।
अगर एग्जिट पोल जैसे ही दोनों राज्यों में नतीजे निकले तो बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह एक बड़ी कामयाबी होगी। 2019 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए बीजेपी के विजय रथ को रोकना कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन जाएगी। गुजरात में पाटीदार आंदोलन, 22 साल के शासन, जीएसटी और नोटबंदी जैसे मुद्दों पर व्यापारी वर्ग की नाराजगी के बाद भी बीजेपी अगर बड़ी जीत दर्ज करती है तो पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी का कद और बड़ा हो जाएगा।
चुनाव विश्लेषक से नेता बने योगेंद्र यादव ने गुजरात चुनाव को लेकर अपना अनुमान गलत मान लिया है। उन्होंने 13 दिसंबर को कहा था कि गुजरात में बीजेपी की जीत संभव नहीं है, बल्कि बड़ी हार भी हो सकती है। वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने भी भाजपा की हार की भविष्यवाणी की थी जो गलत साबित हुई।
हमारे देश में दो चीजों का विकास करीब-करीब एक साथ ही हुआ है। पहला इन चुनावी सर्वेक्षणों और दूसरा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या कहें समाचार चैनलों का। समाचार चैनलों की भारी भीड़ ने चुनावी सर्वेक्षणों को पिछले दो दशक से हर चुनाव के समय का अपरिहार्य बना दिया है। आज बिना इन सर्वेक्षणों के भारत में चुनावों की कल्पना भी नहीं की जाती। बल्कि कुछ समाचार चैनल तो साल में कई बार ऐसे सर्वेक्षण करवाते हैं और इसके जरिये सरकारों की लोकप्रियता और समाज को प्रभावित करने वाले मुद्दों की पड़ताल करते रहते हैं। ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि आखिर भारत में इन सर्वेक्षणों का अर्थशास्त्र क्या है? आखिर इन सर्वेक्षणों को करवाने से किसका भला होता है।
टीवी चैनल टीआरपी के चक्कर में अपनी लोकप्रियता दांव पर लगा देते है। यदि सर्वे सही जाता है तो बल्ले बल्ले अन्यथा साख पर विपरीत असर देखने को मिलता है। चुनाव के पहले और मतदान के बाद कई एजेंसियां सर्वेक्षण कराती हैं और संभावित जीत- हार के अनुमान पेश करती हैं. कई बार इन सर्वेक्षणों के नतीजे चुनावी नतीजों के करीब बैठते हैं तो कई बार औंधे मुंह गिर जाते हैं । मतदाताओं का मूड भांपने का दावा करने वाले ऐसे सर्वेक्षणों में कई बार लोगों और राजनीतिक दलों की दिलचस्पी दिखाई देती है । कोई दावा नहीं कर सकता कि हमारे देश में चुनाव पूर्व सर्वेक्षण तरह विश्वसनीय होते हैं ।

-बाल मुकुन्द ओझा

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