संपादकीय

टूट गया मरूस्थल में मीठे पानी का सपना

-रमेश सर्राफ धमोरा
स्वतंत्र पत्रकार
कुंभाराम आर्य लिफ्ट केनाल परियोजना का पानी स्टोरेज करने के लिए राजस्थान में शेखावाटी क्षेत्र के झुंझुनू जिले के मलसीसर में बनाए गए दो रिजरवायर (बांध) में से एक गत माह टूट गया। बांध टूटने से झुंझुनू और सीकर जिलो के 18 शहर और 1473 गांवों का 40 साल पुराना पीने को मीठा पानी मिलने का सपना भी टूट गया। बांध टूटने का प्रमुख कारण घटिया निर्माण करना सामने आया है। बांध टूटने से बांध में एकत्रित 8 करोड़ लीटर पानी बह कर मिट्टी में व्यर्थ बह गया। विशेषज्ञों के अनुसार बांध और अन्य कार्यों की मरम्मत भी होती है तो एक साल से ज्यादा का वक्त लगेगा, ऐसे में लोगो से फिर एक बार मीठा पानी काफी दूर हो गया है। हालांकि सुखद बात यह रही की बांध दिन में टूटने से पानी से कोई जनहानि नहीं हुई।
झुंझुनू जिले को हिमालय का मीठा पानी पिलाने के लिए बहुप्रतीक्षित तारानगर-झुंझुनू-खेतड़ी कुंभाराम लिफ्ट केनाल परियोजना का काम अंतिम चरणों में है। इस योजना पर करीब 588 करोड़ रुपए खर्च होने है। योजना में मलसीसर कस्बे के पास दो रिजरवायर बनाए गए हैं। इनमें से 4.5 लाख वर्गमीटर क्षेत्रफल के नौ मीटर जल स्तर क्षमता वाले रिजरवायर में परियोजना के वाटर फिल्टर प्लांट, पंपिंग हाउस की तरफ एक स्थान पर 31 मार्च की सुबह करीब 10 बजे पानी का रिसाव होने लगा। वहां कार्यरत मजदूरों ने देखा तो अधिकारियों को इसकी सूचना दी और रिसाव को रोकने के लिए मिट्टी के कट्टे व पोकलेन मशीन से मिट्टी डालना शुरू कर दिया। लेकिन रिजरवायर में नो मीटर से ज्यादा पानी भरा होने से दबाव के कारण दोपहर एक बजकर 8 मिनट पर बांध की दीवार का 20 फीट का हिस्सा टूट गया और पानी पूरे दबाव के साथ निकलने लगा। पानी का दबाव इतना तेज था कि कुछ ही देर में मिट्टी ढहने से टूटा हिस्सा करीब 50 फीट चैड़ा हो गया और कुछ ही मिनटों में पंपिंग हाउस, क्लोरिंग हाउस, फिल्टर प्लांट्स, प्रशासनिक भवन, मुख्य नियंत्रण भवन, पीएचईडी के दफ्तर पानी में डूब गए।
बांध टूटने के कारणो में से एक इसके निर्माण में घटिया इंजीनियरिंग तकनीकि काम में लेना भी था। यह बांध बालू मिट्टी से ही बनाया गया था। इसकी दीवारों पर सीमेंट का घोल लगाकर टाइलें लगा दी गई थी। जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि बालू मिट्टी के साथ चिकनी और दोमट मिट्टी भी काम में ली जानी चाहिए थी। इससे बांध की दीवार मजबूत होती। 4.5 लाख वर्ग मी. क्षेत्रफल में बने इस बांध में 10 दिन पहले ही पूरा भरा गया था। बांध की ऊंचाई 10 मीटर है। इसमे 9.5 मी. ऊंचाई तक पानी भर दिया था। 9 मीटर ऊंचाई से ज्यादा पानी नहीं भरा जाना था। इसके चलते बांध दवाब झेल नहीं पाया और पानी ज्यादा होने से टूट गया।
बांध से फिल्टर प्लांट में पाइप लाइन के जरिए पानी छोड़ा जाता है। बांध पाइप लाइन के पास से ही टूटा है। बांध तैयार करने के बाद पाइप लाइन डाली गई थी। उस वक्त बांध की सही ढंग से मरम्मत नहीं हुई और ये रिसने लगा। यदि रिसाव को समय रहते देख लिया होता तो बांध को टूटने से बचाया जा सकता था। आरयूआईडीपी के अधिक्षण अभियन्ता मोहनलाल मीणा का कहना है कि इस रिजरवायर में इमरजेंसी आउटलेट बनाया जाना चाहिये था ताकि ऐसी किसी स्थिति में उस तरफ से पानी सुरक्षित तरीके से निकाला जा सके। जहां आउटलेट बनाया जाये, उसके आसपास 3 से 5 फीट तक पक्का निर्माण होना चाहिए ताकि रिसाव की आशंका न रहे। इस रिजरवायर में ऐसा नहीं किया गया था।
प्रदेश में करीब तीस साल से छोटे बांध व अर्द्धन डैम (मिट्टी के बांध) बनाने वाले जोधपुर निवासी शैतान सिंह सांखला का कहना है कि किसी भी रिजरवायर या डेम के निर्माण से पहले वहां की मिट्टी की गुणवत्ता की जांच की जाती है। इसके बाद मिट्टी पानी का कितना दबाव झेल सकती है, इसकी डेनसिटी जांच होती है। इस तरह के हादसों में प्रायरू यह दोनों जांच प्रॉपर नहीं की जाए तो आउटलेट में रिसाव हो सकता है और क्योंकि यह मिट्टी की दीवार ही होती है इसलिए रिसाव बड़ा हो जाता है। इसके अलावा आउटलेट के आसपास की मिट्टी की कुटाई प्रॉपर तरीके से नहीं की जाए तो भी आउटलेट के आसपास रिसाव होकर ज्यादा क्षेत्र में फैल जाता है। आशंका है कि इस बांध के टूटने के पीछे ये कारण हो सकते हैं। यहां भी मिट्टी के सैंपल की रिपोर्ट, डेनसिटी की जांच रिपोर्ट से ही असली बात सामने आ सकती है।
इस रिजरवायर को बनाने वाली कम्पनी ने अभी इस परियोजना को पूरी तरह पीएचईडी को हैंड ओवर नहीं किया है। योजना के तहत तारानगर हैड से पानी की आवक दो दिन से बंद थी, अन्यथा पानी का प्रवाह और तेज हो सकता था। गौरतलब है कि जिले को हिमालय का मीठा पानी पिलाने के लिए बहुप्रतीक्षित तारानगर-झुंझुनू-खेतड़ी कुंभाराम लिफ्ट केनाल परियोजना का काम अंतिम चरणों में है। इसका बजट करीब 588 करोड़ रुपए है। इनमें से 4.5 लाख वर्गमीटर क्षेत्रफल के नौ मीटर जल स्तर क्षमता वाला बांध टूट गया। इससे झुंझुनू-सीकर के 18 शहर व 1473 गांवों को मीठा पानी सप्लाई होना था। नागार्जुना कंस्ट्रक्शन कम्पनी हैदराबाद मलसीसर परियोजना का पूरा काम कर रही है। इस कम्पनी के संस्थापक चेयरमैन डॉ. एवीएस राजू हैं। यहां से आगे का काम एलएनटी कम्पनी देख रही है।
जलदाय विभाग के प्रमुख शासन सचिव रजत मिश्र ने बताया कि वर्ष 2013 से लेकर 2015 तक बांध निर्माण की देखरेख के लिए जिन तीन अधिशाषी अभियन्ता को जिम्मेदारी दी गई थी, उनमें से दो हरलाल नेहरा व दिलीप तरंग को सरकार ने निलंबित कर दिया है। एक स्वेच्छिक सेवानिवृति ले चुके नरसिंह दत्त को नोटिस दिया गया है।
कुंभाराम लिफ्ट परियोजना के पहले चरण में पिछले तीन माह से झुंझुनू शहर को जलापूर्ति होने लगी थी। एक-दो दिन में मलसीसर कस्बे को इससे पानी दिया जाना था, मगर डेम टूट जाने के कारण अब इस प्रोजेक्ट के तहत तय समय पर पानी मुश्किल ही मिल पाए। परियोजना के तहत मलसीसर, खेतड़ी, झुंझुनू, सीकर शहर समेत 1473 गांवों को पानी दिया जाना है। इस परियोजना का शुभारंभ अगस्त 2013 में हुआ था। 30 जुलाई 2016 तक कार्य पूर्ण होना था। गत 13 दिसम्बर को ही राज्य सरकार की चैथी वर्ष गांठ के अवसर पर झुंझुनू में आयोजित राज्य स्तरीय समारोह में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस परियोजना का लोकार्पण किया था। तभी से खेतड़ी के 20 गांवों और झुंझुनू शहर के कुछ इलाकों में पानी की सप्लाई भी शुरू हो गई थी।
मलसीसर में शनिवार को डेम के टूटने पर एक चैंकाने वाली जानकारी सामने आई है। बताया जा रहा है कि इस डेम को चार महीने की टेस्ट के बाद पहली बार 100 फीसदी के करीब भरा गया था। लेकिन पहली ही बार में यह डैम पानी को नहीं रोक सका और पानी ने डैम की दीवारें तोडकर अपना रास्ता इस तरह बनाया कि सब कुछ पानी पानी कर दिया। इस मामले में कम्पनी पर जुर्माना लगाने व मलसीसर थाने में कम्पनी के खिलाफ मामला दर्ज करवा दिया गया है। इस कम्पनी को तीन साल के लिए राजस्थान से डी बार करने का निर्णय भी लिया गया। इसके अलावा पूरे प्रोजेक्ट की एक बार फिर बारीकी से जांच करने के लिए विशेषज्ञों की टीम भी बुलाई गई है। जो अब अपनी रिपोर्ट देने के बाद ही यह प्रोजेक्ट चालू होगा।
तारानगर हैड पर तैनात जल संसाधन विभाग के अधिशासी अभियंता सुरेश कुमार ने मलसीसर थाने में मलसीसर में कुंभाराम लिफ्ट कैनाल परियोजना का बांध टूटने के मामले में निर्माण करने वाली नार्गाजुना कंस्ट्रक्शन कम्पनी के प्रोजेक्ट मैनेजर बी प्रसाद के खिलाफ हजारों लोगों की जान दांव पर लगाने और करोड़ों रुपए बर्बाद करने का मामला दर्ज करवाया है। पुलिस ने कम्पनी के प्रोजेक्ट मैनेजर बी. प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया है।
राज्य सरकार यह मान चुकी है कि निर्माण की गुणवत्ता खराब होने के कारण ही बांध के टूटने की नौबत आई है, जिससे आठ करोड़ लीटर पानी बह गया है। बांध को जो हिस्सा टूट है, वह पूरे बांध का तीन फीसदी है। ऐसे में प्रश्न यह है कि शेष 97 फीसदी की गुणवत्ता की क्या स्थिति है। भविष्य में फिर तो कहीं बांध न टूट जाए। इसकी गारंटी तय करने के लिए सरकार पूरे प्रोजेक्ट की जांच आईआईटी दिल्ली या आईआईटी रुडकी से कराएगी। जांच के दौरान यदि यह पाया गया कि बांध के किसी दूसरे हिस्से में गुणवत्ता खराब है तो उसे समय ठीक किया जाएगा, जिससे भविष्य में सरकार की फजीहत होने से बचाया जा सके।
जल संसाधन विभाग के प्रमुख शासन सचिव रजत मिश्र ने बताया कि जल संसाधन विभाग के तीन चीफ इंजीनियर स्पेशल प्रोजेक्ट महेश करल, रूरल के डीएम जैन व नागौर में चल रहे जायका प्रोजेक्ट के सीएम चैहान म इन तीनों की एक कमेटी बनाई है जो इस पूरे मामले में जांच करेगी कि बांध क्यों टूटा, इसके निर्माण में क्या खामी रही, और यह बांध आगे भी मजबूत रहेगा या नहीं, इसकी एक-एक इंच की गहन जांच होगी।
इस मामले में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी गंभीर है। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए है कि जो पानी बहा है। जहां तक संभव हो इस पानी का सदुपयोग हो। इसके अलावा कम्पनी को ब्लैक लिस्टेड करने के निर्देश भी सीएम ने दिए है। मुख्यमंत्री ने जल संसाधन मंत्री डॉ. रामप्रताप को बुलाकर पूरे मामले की रिपोर्ट मांगी है। जो पानी बहा है, उसके लिए छोटे-छोटे तालाब बनाने के निर्देश दिए हैं।
राजस्थान में पानी की हर बूंद जीवन जितनी ही कीमती है। राज्य के करोड़ो नागरिको के टैक्स की कमाई से बना यह बांध निर्माण के तीन माह बाद ही यह टूट गया। बहाव में व्यवस्था की शर्म और नाकामी तो बही ही, लाखों लोगों को महीनों तक मिलने वाला जल भी बर्बाद हो गया। इसके जिम्मेदारों पर सख्त से सख्त कार्यवाही तो होनी ही चाहिए। सरकार को उन्हें बर्खास्त कर एक मजबूत संदेश देना चाहिए। ताकि आगे कोई सरकारी कार्मिक अपने कार्यो में लापरवाही ना करे।

 

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