संपादकीय

देहदान – अंगदान है महादान

-अविनाश राय खन्ना
उपसभापति, (भारतीय रेड क्रास सोसाईटी)
दिल्ली एनाॅटमी एक्ट-1953 के अन्तर्गत दिल्ली में लावारिस पाये गये मृत शरीरों को चिकित्सा की शिक्षा में लगे संस्थानों को सौंप देने का प्रावधान है जिससे मृत शरीर की चीर-फाड़ करके चिकित्सा के विद्यार्थियों को मानव शरीर के आन्तरिक अंगों-प्रत्यंगों आदि का पूर्ण ज्ञान दिया जा सके। अक्सर लावारिस पाये गये मृत शरीरों का पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पोस्टमार्टम करवाया जाता है। पोस्टमार्टम के बाद शरीर का चिकित्सा अनुसंधान के कार्यों में अच्छे प्रकार से प्रयोग नहीं हो पाता। इसलिए चिकित्सा संस्थाओं ने मृत शरीरों के देह दान का तरीका ढूंढ़ निकाला। इस योजना के तहत लावारिस मृत शरीरों का नहीं अपितु परिवारों में सामान्य मृत्यु को प्राप्त हुए उदार हृदय वाले महानुभावों का शरीर चिकित्सा अनुसंधान के लिए प्रयोग किया जाने लगा।
इस कार्य के लिए मृत्यु से पूर्व ही व्यक्ति अपना इच्छापत्र घोषित करता है। इस इच्छापत्र पर उसके पारिवारिक सदस्यों से गवाह की तरह हस्ताक्षर कराये जाते हैं। केवल इच्छापत्र घोषित करना पर्याप्त नहीं होता अपितु परिवार के सदस्यों को भी उदार हृदय होना पड़ता है। तभी किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके मृत शरीर को परिवार के सदस्य सम्बन्धित चिकित्सा संस्थान को सौंपने के लिए तैयार होते हैं। मृत्यु के बाद लगभग 8 घंटे के भीतर मृत शरीर को चिकित्सा संस्थान के नियंत्रण में सौंपा जाना चाहिए। मृत्यु से पूर्व यदि मृत व्यक्ति ने अपने इच्छा पत्र के द्वारा विधिवत देह दान की घोषणा कर रखी हो तो अच्छा है अन्यथा बिना इच्छापत्र के भी यदि परिवार के सदस्य चाहें तो मृत शरीर को अनुसंधान के लिए प्रदान कर सकते हैं।
व्यक्ति की मृत्यु होने के उपरान्त किसी एम.बी.बी.एस. डाॅक्टर से मृत्यु का प्रमाण पत्र लेना चाहिए। मृतक का कोई भी फोटो पहचान पत्र जैसे – ड्राइविंग लाईसेंस, निर्वाचन पहचान पत्र, आधार कार्ड आदि की प्रति देह दान करते समय प्रस्तुत करनी होती है। इसके अतिरिक्त परिवार के जो सदस्य मृत शरीर को सौंपने के लिए अस्पताल जायें उन्हें भी अपना पहचान पत्र साथ दिखाना होता है। व्यक्ति की मृत्यु होने पर परिवार से अपेक्षित होता है कि वे मृत शरीर को अस्पताल दिये जाने की सूचना अपने स्थानीय पुलिस स्टेशन में अवश्य दें। वैसे यह कार्य शरीर रचना विभाग स्वतः भी कर देता है।
मृत शरीर प्राप्त होते ही यह विभाग उस पर कई प्रकार की दवाईयाँ आदि लगाकर सुरक्षित रख लेता है जिससे आवश्यकता पड़ने तक शरीर को सुरक्षित रखा जा सके। यदि किसी परिवार के कोई सदस्य मृतक के अंतिम दर्शन न कर पाये हों तो वे दो-तीन दिन के भीतर अस्पताल जाकर मृत शरीर के दर्शन कर सकते हैं, परन्तु इसके लिए विभाग को पहले से सूचित करना होगा। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान य।प्प्डैद्ध का यह विभाग केवल राजधानी क्षेत्र दिल्ली के अन्दर मृत शरीरों को ही देह दान के रूप में स्वीकार करता है। दिल्ली के बाहर यदि कोई व्यक्ति मृत्यु के उपरान्त चिकित्सा अनुसंधान कार्यों के लिए अपनी देह दान करना चाहें तो उन्हें अपने क्षेत्र के किसी शैक्षणिक चिकित्सा संस्थान से सम्पर्क करना चाहिए। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान का ही एक और विभाग है – ओरबो। यह मृत व्यक्तियों के अंगों का बैंक है। इस बैंक में हृदय, फेफड़े, किडनी, लिवर, पैंक्रियाज, आँखें, हृदय के वाल्व तथा त्वचा आदि का प्रयोग अन्य रोगियों की चिकित्सा के लिए किया जाता है। यह विभाग मानवीय अंग अधिनियम 1994 के अन्तर्गत मृत व्यक्तियों के अंगों का दान प्राप्त करने के लिए अधिकृत हैं। अंग बैंक के द्वारा अंगों को सुरक्षित तभी निकाला जा सकता है जब मृत्यु के तत्काल बाद मृत शरीर को अस्पताल पहुँचा दिया जाये। 4-5 घण्टे के बाद तो किसी भी अंग का प्रत्यारोपण सम्भव नहीं होता।
शरीर रचना विभाग के पास देह दान के इच्छापत्र तो प्रतिमाह लगभग 80 से 100 के बीच प्राप्त हो जाते हैं, परन्तु इनका क्रियान्वयन इतनी बड़ी संख्या में नहीं होता। इच्छापत्र घोषित करने वाले अनेकों लोगों की मृत्यु होने पर परिजनों की इच्छा न होने के कारण मृत शरीर अस्पताल को नहीं मिल पाते। यह अस्पताल प्रतिमाह केवल 5 से 10 मृत शरीर ही प्राप्त करता है। देह दान को लेकर यदि परिवार में किसी प्रकार का कलह-क्लेश हो तो भी यह विभाग मृत शरीर प्राप्त करने से इन्कार कर देता है।
मृत्यु के उपरान्त मृत शरीर को अस्पताल पहुँचाना परिजनों का प्रथम दायित्व माना जाता है। इसमें मृतक के प्रति सम्मान की भावना भी व्यक्त होती है कि परिजन स्वयं मृत शरीर को अन्तिम यात्रा की तरह अस्पताल तक पहुँचाकर आयें। शरीर रचना विभाग के द्वारा मृत शरीर को सौंपते समय किसी प्रकार की धार्मिक क्रियाएँ अस्पताल में करने की अनुमति नहीं होती। धार्मिक क्रियाएँ तथा सम्मानस्वरूप पुष्पादि चढ़ाने की रस्म भी घर पर ही कर लेनी चाहिए। कुछ परिवारों में शाॅल आदि ओढ़ाने की रस्म होती है। देह दान के समय ओढ़ाये गये शाॅलों को उतार कर अस्पताल के ही सफाईकर्मियों आदि में वितरित कर देना चाहिए।
परन्तु देह दान करने वाले परिवारों की वेदना उस समय और अधिक बढ़ जाती है जब उनके मृत परिजन की देह को सम्मानजनक तरीके से स्वीकार करने वाला कोई व्यक्ति अस्पताल के सम्बन्धित विभाग में दिखाई ही नहीं देता। हाल ही में माहिलपुर के पास एक गाँव के एक परिवार में मृत्यु होने पर मृतक के देह दान संकल्प को देखते हुए परिजन उसकी देह को सी.एम.सी. अस्पताल, लुधियाना में ले गये। अस्पताल के सम्बन्धित विभाग में उस देह को स्वीकार करने वाला कोई नहीं था। परिणामतः एक दिन बाद परिवार के लोगों को पुनः जाकर मृतक की देह सम्बन्धित विभाग को सौंपनी पड़ी। इतना ही नहीं व्यक्ति के मृत होने की जाँच करने के लिए जो परीक्षण आदि करने थे उसके लिए भी परिजनों से धन वसूला गया। यदि देहदान करने वाले परिवारों को इस प्रकार परेशानियों का सामना करना पड़ेगा तो लोग देहदान के लिए हतोत्साहित होने लगेंगे। इसलिए देह दान विभाग में 24 घण्टे कोई न कोई जिम्मेदार अधिकारी मृत देह को प्राप्त करने के लिए अवश्य उपस्थित रहना चाहिए। देहदान करने वाले परिवारों को अस्पताल द्वारा एक कृतज्ञता पत्र भी जारी करना चाहिए। परिवार और अस्पताल मृत व्यक्ति के क्रिया संस्कार में भी जनता के बीच देहदान का उल्लेख करें जिससे अन्य लोगों में भी इस कार्य के प्रति चेतना का विकास हो।
हाल ही में मोटर वाहन अधिनियम में किये गये संशोधनों में एक नई परम्परा प्रारम्भ की जा रही है जिसमें चालक लाइसेंस लेते समय भरे गये फार्म में ही एक विशेष कालम के माध्यम से प्रार्थी को यह बताना होगा कि वह मोटर दुर्घटना में मृत्यु होने पर अपने अंगदान करने के लिए तैयार है या नहीं। उसका उत्तर ड्राइविंग लाइसेंस पर ही अंकित होगा जिससे मोटर दुर्घटना में मृत्यु होने पर मृत शरीर के अंग देश के किसी अन्य नागरिक के लिए प्रयोग करना सम्भव हो सकेगा।

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