संपादकीय

प्रियंका गांधी के आने से कांग्रेस को यूपी में कोई फायदा होता नहीं दिख रहा

-अजय कुमार
प्रियंका गांधी वाड्रा की एंट्री के बाद भी कांग्रेस हवा का रूख ज्यादा अपनी तरफ नहीं मोड़ पाई है, लेकिन भाजपा है कि वह अपने मुकाबले में सपा−बसपा की जगह कांग्रेस को ही खड़ा होता दिखाने की हर संभव कोशिश में लगे हैं। घोड़ों की रेस में लंगड़े घोड़े पर कोई दांव नहीं लगाता है, लेकिन बात जब सियासी रेस की होती है तो इसमें रेस के शौकीनों द्वारा अपने मजबूत और विपक्ष के लंगड़े घोड़ों पर दांव लगाना फायदे का सौदा माना जाता है। आम चुनाव से पूर्व उत्तर प्रदेश की सियासत में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। यूपी के राजनैतिक परिदृश्य पर नजर दौड़ाई जाए तो यहां भारतीय जनता पार्टी की समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन से कांटे की टक्कर होती नजर आ रही है। इस टक्कर में कांग्रेस तीसरा कोण बनना चाहती है। कांग्रेस को कम से कम यूपी में तो चुनावी रेस का कमजोर/लंगड़ा घोड़ा माना ही जा रहा है। प्रियंका गांधी वाड्रा की इंट्री के बाद भी कांग्रेस हवा का रूख ज्यादा अपनी तरफ नहीं मोड़ पाई है, लेकिन भाजपा है कि वह अपने मुकाबले में सपा−बसपा की जगह कांग्रेस को ही खड़ा होता दिखाने की हर संभव कोशिश में लगे हैं।
अमेठी में बात भाजपा बनाम कांग्रेस की करी जाए तो 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राहुल गांधी को 66.18 प्रतिशत और भाजपा को 9.40 प्रतिशत मत मिले थे। इसी तरह से 2009 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को 71.78 और भाजपा को 5.81 प्रतिशत वोट पड़े थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां की चुनावी तस्वीर काफी बदली−बदली नजर आई। हालांकि जीत राहुल गांधी को ही मिली, लेकिन भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने राहुल को तगड़ी टक्कर दी। राहुल को 46.71 प्रतिशत और स्मृति को 34.38 वोट मिले थे। बीजेपी के वोट का प्रतिशत क्या बढ़ा भाजपा नेताओं की उम्मीदें भी परवान चढ़ने लगी। वैसे, इतिहास गवाह है कि अमेठी कांग्रेस के लिए अजेय नहीं रहा है। 1998 के चुनाव में संजय सिंह ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और उन्होंने राजीव गांधी के करीबी को पटखनी दी थी। इससे पूर्व 1967 में पहली बार यह सीट कांग्रेस के हिस्से से बाहर गई। तब जनता पार्टी के टिकट पर रविंद्र प्रताप सिंह जीते थे। यहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच चुनाव के पहले की मनोवैज्ञानिक लड़ाई चल रही है, जिसे बीजेपी जीती तो उसे लाभ मिलेगा ही, लेकिन अगर कांग्रेस हारी तो सत्ता पाने की उसकी लालसा को गहरा झटका लग सकता है। अमेठी कांग्रेस के लिए सम्मान का मामला है, तो बीजेपी के लिए कांग्रेस को उसके गढ़ में ही रोके रखने का एक फार्मूला। पिछले लोकसभा चुनाव में भी राहुल के बहाने पूरी कांग्रेस को असहज करने के लिए बीजेपी ने अमेठी पर पूरा जोर लगा दिया था। तब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे और उन्होंने यहां रैली भी की थी। मोदी के पक्ष में बनी हवा और यहां से चुनाव लड़ रहीं स्मृति ईरानी की मेहनत ने राहुल गांधी को तगड़ा झटका दिया था। 2009 के मुकाबले 2014 में राहुल के वोट प्रतिशत में तकरीबन 25 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। इस बार वह कांग्रेस अध्यक्ष हैं। ऐसे में उन पर सीधे हमले का मतलब साफ है कि राहुल को पूरे देश में कांग्रेस के लिए वोट मांगने के साथ ही अपना घर भी बचाने में जुटना होगा।
उधर, राजनैतिक पंडितों का कहना है कि यह सच है कि अमेठी में कांग्रेस ने कभी भी विकास को तरजीह नहीं दी, लेकिन इसके सहारे बीजेपी के लिए इस गांधी परिवार के किले में सेंध लगाना आसान नहीं दिख रहा। यहां के लोग कांग्रेस से नाराज होते दिखते हैं, लेकिन गांधी परिवार की बात उठते ही उनकी आंखों में चमक आ जाती है। अमेठी का प्रतिनिधित्व गांधी परिवार के चार सदस्यों ने किया है। चाचा संजय गांधी से शुरुआत हुई। फिर पिता राजीव गांधी और मां सोनिया गांधी से होती हुई यह सीट राहुल गांधी के पास आई है। राहुल इस लोकसभा क्षेत्र का सबसे लंबे समय तक प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद हैं। इसे भांपते हुए बीजेपी यहां विकास परियोजनाओं को गिना रही है। काउंटर में कांग्रेस के नेता अपना रिश्ता और पुराने काम याद दिला रहे हैं।
बीजेपी के रणनीतिकारो को लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सामने राहुल गांधी कमजोर कड़ी साबित हो रहे हैं। इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। इसीलिए कांग्रेस और राहुल गांधी दिल्ली से लेकर अमेठी तक बीजेपी नेताओं के निशाने पर हैं। राहुल को घेरने के लिए भाजपा नेत्री और मंत्री स्मृति ईरानी तो 2014 से ही अमेठी में मेहनत कर रही हैं। इसी मेहनत के बल पर स्मृति पिछले लोकसभा चुनाव में अमेठी में राहुल के सामने मिली अपनी हार को जीत में बदलने का तानाबाना बुन रही हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर बीजेपी के तमाम नेता अमेठी को लेकर संवेदनशील रहते हैं। सबका यहां आना−जाना लगा रहा है। यहां तक तो सब ठीक था लेकिन जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 03 मार्च को यहां आने का कार्यक्रम बना कांग्रेस की नींद उड़ गई। कांग्रेस तीन मार्च का बेसब्री से इंजतार करने लगी कि मोदी अमेठी में क्या बोलेंगे। तीन मार्च को मोदी आए और गांधी परिवार पर खूब गरजे−बरसे। मोदी ने हर उस मुद्दे को हवा दी जिससे राहुल गांधी की घेराबंदी हो सकती थी। उन्होंने रूस के सहयोग से यहां के कोरवा में बनने जा रही एसॉल्ट राइफल एके 203 समेत 538 करोड़ की 17 परियोजनाओं के शिलान्यास और लोकार्पण के बाद कौहार में रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस और गांधी परिवार पर जमकर शब्द भेदी बाण चलाए। मोदी ने गांधी परिवार के किसी सदस्य का नाम लिए बिना अमेठी के सांसद और अन्य प्रतीकों के जरिये उन्होंने वंश विरासत को खूब धोया और राहुल गांधी को लक्ष्य करते हुए कहा कि कुछ लोग दुनिया भर में घूमते हैं और मेड इन जयपुर, मेड इन जैसलमेर, मेड इन बड़ौदा का भाषण देते हैं। उनके भाषण, भाषण ही रह जाते हैं। यह मोदी है और अब अमेठी की पहचान किसी एक परिवार से नहीं होगी। अब अमेठी मेड इन एके 203 के नाम से जानी जाएगी। एके 203 से आतंकी और नक्सलियों को सैनिक मुंहतोड़ जवाब देंगे। तीन वर्ष में सैनिकों के हाथ में साढ़े सात लाख राइफल होंगी। मोदी के साथ स्मृति ईरानी ने भी जमकर राहुल को घेरा।
राहुल गांधी की टीम को इस बात का अहसास होने में देरी नहीं लगी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी राहुल गांधी को अपने चक्रव्यूह में फंसा रहे हैं। इसीलिए मोदी के दौरे के तुरंत बाद राहुल गांधी का एक ट्वीट सामने आया जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा, प्रधानमंत्री जी, अमेठी की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री का शिलान्यास 2010 में मैंने खुद किया था। कई सालों से वहां छोटे हथियारों का उत्पादन चल रहा है। कल आप अमेठी गए और अपनी आदत से मजबूर होकर आपने फिर झूठ बोला। क्या आपको बिल्कुल भी शर्म नहीं आती।
राहुल गांधी के ट्वीट के बाद तुरंत ही इसके काउंटर में केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का एक ट्वीट सामने आया। स्मृति ईरानी ने रायबरेली के नेशनल पेट्रोलियम टेक्निकल स्कूल की आधारशिला की तस्वीर भी पोस्ट की और राहुल गांधी से सवाल पूछा, लगे हाथ आज देश को बता दें कि कैसे आपने तो उस संस्थान का भी शिलान्यास किया, जिसका आप ही के एक नेता ने लगभग दो दशक पहले शिलान्यास किया था। एक तरफ राहुल गांधी ने ट्वीट करके अमेठी में मोदी की तपिश कम करने की कोशिश की तो दूसरी तरफ कांग्रेस मोदी के अमेठी दौरे से हुए डैमेज के कंट्रोल के लिए वहां के कील−कांटे दुरूस्त करने में लग गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन मार्च की सफल रैली के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का भी अमेठी आगमन का प्रोग्राम बन रहा है। राहुल गांधी की अमेठी में साख बची रहे, इसके लिए प्रियंका अमेठी पर नजर रखे हुए हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा के अमेठी आगमन पर कांग्रेस यहां बड़ा कार्यक्रम करना चाहती है। कांग्रेस ने इसको लेकर तैयारियां शुरू कर दी हैं।
दरअसल, कांग्रेस के रणनीतिकारों को इस बात का अच्छी तरह से अहसास हो गया है कि मोदी व भाजपा अमेठी के रास्ते कांग्रेस पर सियासी बढ़त हासिल करने का ताना−बाना बुन रहे हैं। कांगेस को लगता है कि अगर समय रहते अमेठी से प्रधानमंत्री और बीजेपी को करारा जवाब नहीं दिया गया तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र की समस्याओं को भाजपा पूरे देश में हवा देने की कोशिश करेगी। ऐसा बीजेपी गुजरात विधान सभा चुनाव में कर भी चुकी है। उस समय राहुल को घेरने के लिए गुजरात में अमेठी की दुर्दशा की चर्चा खूब हुई थी। कांग्रेस चाहती है कि यह इतिहास दोबारा न दोहराया जाए। इसीलिए किसी भी दिन राहुल−प्रियंका अमेठी आकर यहां की जनता से अपने भावनात्मक रिश्तों की डोर मजबूत करने की कोशिश करते नजर आ सकते हैं। अमेठी संसदीय क्षेत्र में करीब एक दर्जन स्थानों पर राहुल−प्रियंका के कार्यक्रम और नुक्कड़ सभाएं हो सकती हैं। राहुल−प्रियंका के दौरे के दौरान कांग्रेस का पूरा फोकस किसानों के साथ युवाओं व महिलाओं पर होगा।
लब्बोलुआब यह है कि जहां भाजपा, राहुल गांधी और कांग्रेस को उसके गढ़ अमेठी में पटखनी देने के लिए उतावली नजर आ रही है वहीं कांग्रेसी भी आसानी से हथियार डालते नहीं नजर आ रहे हैं। राहुल−प्रियंका के अमेठी आगमन को लेकर खूब चर्चा हो रही है। राहुल−प्रियंका के संभावित अमेठी आगमन को सियासी पंडित डैमेज कंट्रोल के रूप में देख रहे हैं। बीजेपी अगर अमेठी में राहुल को रोकने या कमजोर करने में सफल हो गई तो निश्चित ही उसे पूरे देश में इसका मनोवैज्ञानिक फायदा मिलेगा।

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