संपादकीय

‘संकल्प से सिद्धि’ – नव-भारत दीक्षित भारत

9 अगस्त, 1942 के दिन ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के संकल्प तथा उसके साथ भारत के अनेकों वीर-बलिदानियों की त्याग, तपस्या से प्राप्त स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘संकल्प से सिद्धि’ का नारा बुलन्द किया। इसके पीछे उनका उद्देश्य स्पष्ट झलक रहा है – भारत का प्रत्येक नागरिक यदि अपने-अपने क्षेत्र में महान संकल्पों का निर्माण कर लें तो वह स्वाभाविक रूप से उन संकल्पों के लिए पहले दीक्षा प्राप्त करेगा और परिणामतः उसे महान सिद्धियाँ अर्थात् सफलताएँ प्राप्त होंगी। यह सफलताएँ हमारी पहचान बन जाती है और अनेकों लोगों के लिए प्रेरणा बन सकती है। इस प्रकार एक-एक नागरिक के सफल जीवन से पूरे भारत का नव-निर्माण होगा।
‘संकल्प से सिद्धि’ प्रधान श्री नरेन्द्र मोदी का एक ऐसा महान आह्वान है जिसका एक-एक दृष्टिकोण देश के सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान के साथ-साथ आर्थिक विकास का एक प्रबल आधार बन सकता है। अतः अब देश की जनता का यह कत्र्तव्य है कि हम सभी नागरिक मिलकर अपने-अपने क्षेत्र में संकल्पों का निर्माण करें और पूरी तन्मयता के साथ सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए जुट जायें। अगर भारतवासी संकल्प से सिद्धि के आह्वान को अपने दैनिक जीवन में अपना लेते हैं तो निश्चित रूप से एक नये भारत का निर्माण होगा जो अनेकों कलाओं और विधाओं में दीक्षित होगा। यही मार्ग गरीबीमुक्त भारत, स्वच्छ भारत, भ्रष्टाचार मुक्त, जातिवादमुक्त भारत, सम्प्रदायवाद मुक्त भारत और आतंकवाद मुक्त भारत का निर्माण करेगा।
देश के छात्र अपने-अपने स्तर पर पढ़ाई का संकल्प करके उसमें जुट जायें, युवा वर्ग अपने-अपने भविष्य मार्ग पर उपलब्धियाँ हासिल करने के लिए ईमानदारी पूर्वक कार्य करने लगें तो देश की दिशा और दशा सुधरने में अधिक समय नहीं लगेगा। प्रत्येक संकल्प के साथ हर छात्र और युवा को यह भी सोचना होगा कि उसे निरर्थक आवारागर्दी, नशे और गलत खान-पान की आदतों में नहीं फंसना क्योंकि ऐसी नकारात्मक प्रवृत्तियों से एकाग्रता भंग होती है और संकल्प से सिद्धि का स्वप्न भी धूमिल होने लगता है और यह सभी नकारात्मक प्रवृत्तियाँ देश की अर्थव्यवस्था पर अनुत्पादक खर्च के रूप में अरबों रुपये का बोझ डाल देती हैं। देश के सभी शिक्षकों को यह संकल्प करना चाहिए कि वे देश के नागरिकों को अच्छी गुणवत्ता वाली औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ देश की संस्कृति और चारित्रिक मूल्यों से भी ओत-प्रोत करेंगे। तो कल्पना की जा सकती है कि एक दशक के बाद हमारे देश के सभी शिक्षित नागरिक एक महान और श्रेष्ठ व्यक्तित्व के मालिक होंगे। इसी प्रकार यदि हमारे देश के वकील और न्यायाधीश मुकदमों को शीघ्र समाप्त करने और न्याय प्रणाली को कानून के साथ-साथ मानवता के आधार पर चलाने का संकल्प कर लें तो दुनिया की कोई ताकत हमारे देश को एक महान न्याय व्यवस्था वाला राष्ट्र बनाने से रोक नहीं सकती। कोई भी न्याय प्रणाली जब मुकदमों के निपटाने में आवश्यकता से अधिक समय लगाने लगती है तो एक तरफ उसका विशाल आर्थिक बोझ नागरिकों पर और देश पर पड़ता है तो दूसरी तरफ पक्षकारों में बढ़ता असंतोष मानसिक रोगों का कारण बनने लगता है। देश का वैज्ञानिक भी किसी उद्देश्य पर धारणा करने के उपरान्त अपने जीवन का एक लम्बा समय ध्यानपूर्वक उस धारणा पर लगाता है तो वह एक नये आविष्कार के साथ अपने क्षेत्र का सिद्ध पुरुष बनता है। देश में जितने अधिक सिद्ध वैज्ञानिक होंगे उतना ही अधिक विकास अपने देश के साथ-साथ सारे संसार की मानव जाति का भी हो सकता है। हमारे देश में छोटे-बड़े सभी स्तरों के राजनेता यदि यह संकल्प कर लें कि वे अपने राजनीतिक जीवन में सामाजिक और मानवतावादी कार्यों के बल पर अपनी छवि एक महान नेता के रूप में तैयार करेंगे तो ऐसे राजनेताओं की सिद्धि का यह रूप होगा कि पंचायत से पार्लियामेंट तक वे किसी भी निर्वाचन में जनता के एक पूजनीय नेता के रूप में उतरकर सफलता प्राप्त करेंगे। राजनेताओं का ऐसा सफल सामाजिक जीवन हमारे देश में चारो तरफ सुख और शांति की वर्षा करने लगेगा। राजनीतिक उठा-पटक और राजनीति के अपराधीकरण जैसी प्रवृत्तियाँ भी समाप्त हो सकती हैं जिनके कारण आज की राजनीति बेहिसाब भ्रष्टाचार करते हुए देश के आर्थिक विकास को लगातार बाधित करती रहती है। देश के व्यापारी यदि ईमानदारी पूर्वक अपने लेन-देन कार्यों को करने का संकल्प कर लें तो ग्राहकों में भी ऐसे व्यापारियों की साख स्थाई रूप से मजबूत हो जाती है। स्थाई साख ही एक व्यापारी की सिद्धि है। यदि हमारे देश के व्यापारी अपने व्यापार में सिद्धियाँ प्राप्त करने लगें तो हमारे देश की आर्थिक विकास दर को लगातार ऊँचा उठने से कोई रोक नहीं सकता। हमारे देश के पुलिसकर्मी यदि यह संकल्प कर लें कि देश से अपराधिक प्रवृत्तियों को समाप्त करना है तो स्वाभाविक रूप से वे अपराधियों के साथ रिश्वतखोरी का सम्बन्ध छोड़कर अपना ध्यान केवल इस बात में लगायेंगे कि अपराधी को उचित दण्ड मिले और जेल अधिकारी के रूप में इस बात पर ध्यान रहेगा कि कैदी के रूप में अपराधियों को मानवतावादी और आध्यात्मिक प्रेरणाओं का पाठ नियमित रूप से पढ़ाया जाये। पुलिस और जेल अधिकारियों के ऐसे संकल्प से वह दिन दूर नहीं होगा जब हमारे देश के अपराधी भी समाज के लिए एक मानवतावादी सेवक बन जायेंगे। पुलिस और जेल अधिकारियों की यह सिद्धियाँ अन्ततः पुलिस स्टेशनों, जेलों और अदालतों पर खर्च होने वाले अरबों रुपये के बजट को कम कर सकती हैं। मिलिट्री के जवानों का देश रक्षा संकल्प ही हमारी दिन-रात रक्षा करता है और हम देश की सीमाओं के भीतर सुख-शांति से अपने कार्यों को सम्पन्न कर पाते हैं। नहीं तो कल्पना करो कि उग्रवादी ताकतें प्रतिदिन हर शहर में अपने बम-पटाखों से देशवासियों का जीना दूभर कर दें। देश की सारी जनता यदि यह संकल्प कर ले कि हमें स्वस्थ रहना है तो स्वाभाविक रूप से हमारे देशवासी प्राकृतिक खान-पान और योग, ध्यान जैसी भारतीय क्रियाओं के बल पर ही आजीवन निरोगी रहने की सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। यदि देशवासियों में यह सिद्धि स्थापित हो गई तो कितना बड़ा कल्याण पूरे देश का होगा जिसे आज करोड़ों-अरबों रुपये अंग्रेजी दवाईयों, आॅपरेशन जैसी कष्टकारी चिकित्सा और अस्पतालों की सेवाओं पर खर्च करने पड़ते हैं।

-अविनाश राय खन्ना, उपसभापति, भारतीय रेड क्रास सोसाईटी

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