संपादकीय

स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता है स्वास्थ्य बीमा

– अविनाश राय खन्ना,
उपसभापति, भारतीय रेड क्राॅस सोसाईटी
हाल ही में एक अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर स्वास्थ्य बीमा योजना को लोकप्रिय बनाने के लिए व्यापक चर्चा हुई। इस बैठक में यह चिन्ता व्यक्त की गई कि भारत में स्वास्थ्य बीमा योजना के अन्तर्गत अब तक लगभग 20 प्रतिशत लोग ही शामिल हो पाये हैं।
धनी वर्ग तो अधिक से अधिक प्रीमियम राशि भी देकर स्वास्थ्य बीमा खरीदते हैं जिसकी सीमा कई लाखों रुपये तक होती है। आवश्यकता पड़ने पर वे बड़े से बड़े अस्पतालों में इलाज करवाकर भारी भरकम राशियों का भुगतान बीमा कम्पनियों के माध्यम से करवाने का लाभ भी प्राप्त करते हैं। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के विशेष प्रयास से भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय ने एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना लागू की जिसका मुख्य उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों को स्वास्थ्य बीमा लाभ प्रदान करना था। इस योजना में 30 हजार रुपये तक के भुगतान की गारण्टी भी दी गई थी। जबकि बीमित व्यक्ति को कोवल 30 रुपये में इस योजना के अन्तर्गत पंजीकरण ही करवाना होता है। केन्द्र और राज्य सरकारें सीधे बीमा कम्पनी को प्रीमियम राशि का भुगतान करती हैं। इस योजना से बीमित व्यक्ति, उसकी पत्नी तथा परिवार के तीन आश्रित लोग कवर होते हैं। परन्तु इतनी बड़ी सुविधा के बावजूद हमारे देश में कुल बीमा कवर लगभग 20 प्रतिशत नागरिकों को ही लाभान्वित कर रहा है। इस विषय पर राज्यसभा सदस्य के रूप में मैंने अपने कार्यकाल के दौरान एक निजी बिल भी संसद में प्रस्तुत किया था।
मैंने जब भारत में स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र में इस ढुलमुल अवस्था के कारणों की तलाश करने का प्रयास किया तो सर्वप्रथम मेरे सामने कई चौंकाने वाले आंकड़े आ गये। अमेरिका में बहुतायत लोग स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। अमेरिका मूलतः एक पूंजीवादी देश है। अमेरिका में स्वास्थ्य बीमा जैसी सुविधाओं के लिए कोई विशेष सरकारी सहायता उपलब्ध नहीं होती। प्रत्येक व्यक्ति अपनी कमाई के बल पर ही स्वास्थ्य बीमा खरीदता है और आवश्यकता पड़ने पर अपना चिकित्सा खर्च बीमा कम्पनियों से प्राप्त कर पाता है। स्वास्थ्य बीमा न होने पर नागरिकों को चिकित्सा का खर्च स्वयं अपनी जमा पूंजी में से देना पड़ता है। अमेरिका जैसे देश में सरकार नागरिकों के लिए इतने अधिक परोपकारी कार्य नहीं करती जितने भारत में हमें देखने को मिलते हैं। इसका मुख्य कारण है हमारे राजनीतिक सिद्धान्त समाजवाद और मानवतावाद के साथ-साथ समाज में बराबरी की स्थापना को लेकर संकल्पबद्ध हैं।
आस्ट्रेलिया में स्वास्थ्य बीमा को लेकर स्थिति भारत और अमेरिका के बीच की अवस्था वाली दिखाई देती है। आस्ट्रेलिया में लगभग 57 प्रतिशत लोग चिकित्सा बीमा खरीदते हैं। अमेरिका की तरह यहाँ भी चिकित्सा और बीमा दोनों ही बहुतायत निजी क्षेत्र के अन्तर्गत हैं।
अमेरिका और आस्ट्रेलिया से भिन्न एक महान संस्कृति वाला देश है जापान। इस देश के सभी नागरिकों के लिए चिकित्सा की पूर्ण गारण्टी दी गई है। नागरिक अपनी चिकित्सा सरकारी अस्पतालों में करवायें या निजी अस्पतालों में, उन्हें स्वास्थ्य सुविधा चुनने की पूरी छूट है। इसके अतिरिक्त नौकरी करने वाला प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह सरकारी नौकरी में हो या किसी निजी कम्पनी में, पूरी तरह स्वास्थ्य बीमा गारण्टी के अन्तर्गत अवश्य ही शामिल किया जाता है। स्वास्थ्य बीमा की प्रीमियम राशि का निर्धारण नागरिक की आय के आधार पर तय किया जाता है। सरकार स्वास्थ्य बीमा में ही नहीं अपितु चिकित्सा सुविधाओं में भी भरपूर खर्च करने के लिए तत्पर रहती है। उत्तम स्वास्थ्य सेवाओं के कारण जापान में जन्म के समय मरने वाले बच्चों की संख्या भी बहुत कम रहती है। हालांकि जापान में स्वास्थ्य सेवाओं पर किये जाने वाला प्रति व्यक्ति खर्च अमेरिका के प्रति व्यक्ति खर्च से लगभग आधा है। फिर भी अनेकों सम्पन्न और विकसित देशों की तुलना में जापान की स्वास्थ्य सेवाएँ उत्तम मानी जाती हैं। जापान की तरह जाॅर्डन देश का नाम भी स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र के अग्रणी देशों में शामिल है जहाँ 80 प्रतिशत से अधिक लोगों को स्वास्थ्य बीमा सुरक्षा के दायरे में शामिल किया जा चुका है।
जापान में तो सामाजिक स्तर पर नैतिकता और मानवतावादी परम्पराएँ इस उत्तम स्वास्थ्य वातावरण का मुख्य आधार हैं। स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च के नाम पर जापान में प्रत्येक एक हजार लोगों के अनुपात में अस्पताल के 16 बिस्तर की सुविधा है। प्रत्येक एक हजार लोगों के अनुपात में 1.6 चिकित्सक उपलब्ध हैं। इतनी विशाल सुविधाओं के बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं का प्रयोग केवल लगभग 8 प्रतिशत लोग ही करते हैं। अस्पताल में दाखिल होकर चिकित्सा करवाने वाले जापानी नागरिकों की संख्या बहुत कम है। जबकि अस्पताल में दाखिल होने वाले रोगियों की अस्पताल में चिकित्सा अवधि अमेरिका के आंकड़ों से 5 गुना अधिक है। इसका अभिप्राय यह है कि अस्पताल में दाखिल होने के बाद रोगी को यदि सामान्य परिस्थिति में दो दिन की चिकित्सा उपलब्ध कराई जानी हो तो उसे 10 दिन तक अस्पताल में रखा जायेगा।
जापान सरकार जब भी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए कोई भी योजना बनाती है तो उसमें घरेलू चिकित्सा सहायकों की नियुक्ति पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है। लाखों की संख्या में घरेलू चिकित्सा सहायकों की नियुक्ति यह सुनिश्चित कराने के लिए होती है कि वे अपने कार्यक्षेत्र के अन्दर आने वाले परिवारों को ऐसे स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान से अवगत करायें जिससे उनके रोगी होने की सम्भावनाएँ कम हो जायें। जापान में स्वास्थ्य सेवाओं का कार्य केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अपितु सरकार के एकदम निचले स्तर तक पूरी रुचि के साथ किया जाता है। स्थानीय निकाय भी स्वास्थ्य सेवाओं पर, रोगों के शोध तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान के प्रचार-प्रसार में पूरी रुचि लेकर कार्य करते हैं। जापान की सरकार और समाज इस मूल सिद्धान्त को क्रियान्वित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती कि यदि जापान का एक-एक नागरिक स्वस्थ है तो इसका लाभ सारे देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के रूप में ही दिखाई देगा।
भारत में योग, खान-पान विशेषज्ञता, आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी पद्धतियाँ अत्यन्त कम खर्च पर लोगों को चिकित्सा के साथ-साथ ऐसा ज्ञान दे सकती हैं जिससे रोगी होने की सम्भावनाएँ ही कम हो जायें। भारतीय ऋषियों ने नागरिकों को जब भी आध्यात्मिक और सामाजिक उपदेश दिये तो उसके पीछे भी लाभ के रूप में उत्तम स्वास्थ्य की ही कल्पना की गई। यदि व्यक्ति प्रतिदिन दो वक्त आधा-आधा घण्टा भी ध्यान-साधना करता है तो उसका तंत्रिका तन्त्र सारा दिन संतुलन में रहेगा। तंत्रिका तन्त्र अर्थात् हमारा मस्तिष्क हमारे स्वास्थ्य का मुख्य आधार है। इसी तन्त्र के संतुलन से ही हमारी पाचन क्रिया भी सुचारू रूप से चल पाती है। स्वास्थ्य से सम्बन्धित अनेकों महत्वपूर्ण विचारों की उपलब्धता के बावजूद भारत में चिकित्सा शिक्षा आज भी पूरी तरह अंग्रेजी चिकित्सा पर ही आश्रित है। हमें अपने डाॅक्टरों की शिक्षा में ही हर प्रकार के घरेलू चिकित्सा आयामों को जोड़ देना चाहिए। जापान की तरह हमें डाॅक्टरों के अतिरिक्त घरेलू चिकित्सा सहायकों की भी व्यवस्था जुटानी चाहिए जो भारत के प्रत्येक प्रान्त के गाँव-गाँव और गली-गली के स्तर पर लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा कर सकें। शुद्ध खान-पान और मानवतावादी जीवन ही स्वास्थ्य का मुख्य आधार बन सकता है। देश में जब ऐसा वातावरण बनने लगेगा तो स्वाभाविक रूप से चिकित्सा का खर्च कम होने लगेगा। कम से कम लोगों को चिकित्सा सेवाओं की आवश्यकता होगी। ऐसी परिस्थिति में स्वाभाविक रूप से चिकित्सा सुविधा का स्तर भी अपने आप ही सुधरने लगेगा।

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