संपादकीय

प्रायोजित एजेंडे को प्रचारित करने में जुटा भारत का मीडिया

-विजय कुमार पाण्डेय
भाव से कार्य करना, जिसकी चिंता के केंद्र में व्यक्ति, सत्ता और सरकार के बजाय समाज के अंतिम-आदमी को होना चाहिए, जबकि वर्तमान में भारत का अधिकाँश मीडिया जनसमस्याओं, आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं को उपेक्षित करके प्रायोजित एजेंडे को प्रचारित करने का कार्य करता दिखाई पड़ रहा है। विगत वर्षों में भारतीय मीडिया ने जहां एक तरफ संवेदनशील विषयों को उपेक्षित किया वहीँ दूसरी तरफ ऐसे विषयों को जो सामाजिक समरसता में उन्माद उत्पन्न करने वाले थे, उनको तोड़-मरोड़ कर बहुत ही आक्रामकता एवं उत्तेजित करने वाली शैली में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया। दर्शकों के सामने तथ्यों को मीडिया द्वारा इस प्रकार से प्रस्तुत करने का कारण यही रहा होगा कि मीडिया पूर्व अवधारित उद्देश्यों पर जनमत का ध्रुवीकरण करके उसकी प्रासंगिकता को रेखांकित कर सके और समाज में उसके लिए एक कृत्रिम वातावरण निर्मित किया जा सके। कृत्रिम वातावरण निर्मित करने का कारण यह रहा होगा कि लोगों को समाचार के माध्यम से यह संदेश प्रेषित किया जा सके कि बहुमत की आकांक्षा इस विषय के प्रति कितनी तीव्र है जबकि कृतिम एजेंडे की इस पद्धति ने लोगों में मीडिया के प्रति अविश्वास का भाव उत्पन्न करने का कार्य किया, हो सकता है कि कुछ लोग इससे सहमत और पसंद भी करते हों लेकिनय समाचार किसी की पसंदगी और नापसंदगी का विषय नही है, क्योंकि मीडिया आईना है, जो जैसा हो वैसा ही दिखना चाहिए, जो आज के दौर में नहीं हैंस और वो लोग जो कल तक यह कहते थे कि अमुक मीडिया चेनल या समाचार-पत्र में यह खबर थी, अब वे खबर की भी पुष्टि करते दिखाई पड़ रहे है, जो चिंता का विषय है। विगत पांच वर्षों में भारत के प्रधानमन्त्री ने कोई भी दावा किए होंगे तो लोग उनसे सबूत माँगते दिखाई पड़े, इसके पीछे देश के प्रति उनकी निष्ठां को ही कटघरे में खड़े करने की कोशिश की गई, जबकि वास्तविक कारण यह रहा होगा कि लोग प्रधानमन्त्री के शब्दों में गंभीरता का स्खलन रेखांकित किए होंगे इसलिए सबूत मांगने के परम्परा विकसित हो गई है, और जो भी उनसे सबूत या जवाब मांगता है देशद्रोही और गद्दार मीडिया और उनके समथकों द्वारा घोषित कर दिया जाता हैं, जबकि जवाबदेही लोकतंत्र की प्राणवायु है और मीडिया ने इस जवाबदेही को दबाने का कार्य करता दिखाई पड़ा। यह बिलकुल सही तथ्य है कि प्रधानमन्त्री के शब्द के मायने होते हैं और उसकी विश्वसनीयता पर आशंका नहीं प्रकट की जानी चाहिए लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि आखिर प्रधानमत्री के प्रति यह अविश्वास क्यों उत्पन्न हुआ है। प्रधानमन्त्री के प्रति अविश्वसनीयता का जो वातावरण बना है क्या इस पर मोदी जी को विचार नहीं करना चाहिए, जिस देश में प्रधानमन्त्री ही अविश्वसनीय हो, लोग उसके कार्यों के उचित और अनुचित होने पर वाद-विवाद न करें बल्कि इस बात पर विवाद करें कि अमुक कार्य किया भी गया कि नहीं, इसका सबूत प्रस्तुत किया जाय, मैं समझता हूँ कि इससे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति नहीं हो सकती। अपने प्रत्येक कार्य पर प्रधानमन्त्री को पहले वीडिओ बनाना पड़े बतौर सबूत, कितने शर्म की बात है मतलब साफ है कि पीएम को भी मालूम है कि मेरी बात कोई मानेगा नहीं। प्रधानमन्त्री के कार्यों की अविश्वसनीय का मानक इस स्तर तक पहुँच चुका है आज लोग सैनिक बलों द्वारा किए गए कार्यों के भी सबूत मांग रहे हैं, इसके पीछे प्रधानमन्त्री के कृत्य और कार्य के साथ-साथ मीडिया द्वारर निर्मित किया गया कृत्रिम वातावरण हैस जब भी लोग जवाब मांगने की कोशिश किए होंगे मीडिया ने उसी पर सवाल खड़े कर दिए और उन्हें देश के खिलाफ खडे होने का भी दिखाया गया यदि लोगों ने सवाल खड़े किए थे तो विचार कारणों पर किया जाना चाहिए था वनस्पति इसके कि सवाल करने वाले को देशद्रोही घोषित करने के, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है, जिसमें हमारा मीडिया शामिल होता दिखाई पड़ता है जो चिंता का विषय है, जिसके परिणाम भविष्य में दिखाई पड़ेंगें। एक बात और रखना बेहद जरूरी है जो लोगों को बुरा भी लग सकता है पुलवामा घटना से लेकर अभिनन्दन के वापसी तक, पाकिस्तानी और भारतीय मीडिया को दोनों तरफ के लोगों ने देखा होगा और हमने भी देखा जिसमें एक बात जरुर उभर कर सामने आई कि भारत की मीडिया चिल्लाने और माहौल को गरम् करने को ही पत्रकारिता समझती रही, कुछ एक चैनल और पत्रकारों को छोड़कर, जबकि पाकिस्तानी मीडिया काफी हद तक इससे दूर रहता दिखाई पड़ा, जबकि मुद्दा वही था, देशभक्ति वही थी और आत्मसम्मान वही था। आज का हमारा मीडिया चिल्लाकर सिर्फ यह साबित करने में लगा है कि वह लायल मीडिया हैय जबकि उसको यह नहीं मालूम की शालीनता, खामोश रहना और कम बोलना भी एक हथियार है, जो लोगों के बीच निराशा का भाव उत्पन्न करता है, हमारी मीडिया अपनी विश्वसनीयता बनाए रखे वरना वह दिन दूर नही कि उससे लोग हर खबर का सबूत मांगेंगें जैसा मोदी जी और उनकी सरकार के साथ हो रहा है।

(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)

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