संपादकीय

भ्रष्टाचार उन्मूलन का नया अध्याय – लोकपाल

-विमल वधावन योगाचार्य
(एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट)

लोकपाल मूलतः एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है लोगों की रक्षा करने वाला। वास्तव में प्रशासनिक रूप से लोकपाल का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार विरोधी संस्था की तरह कार्य करना होता है। हमारे देश में लोकपाल तथा लोकायुक्त कानून वर्ष 2013 में संसद द्वारा पारित किया गया था। इस कानून के निर्माण में श्री अन्ना हजारे के देशव्यापी आन्दोलन की बहुत बड़ी भूमिका थी। वर्ष 1960 में तत्कालीन कानून मंत्री श्री अशोक कुमार सेन ने संसद में लोकपाल जैसी संस्था का विचार प्रस्तुत किया था। 1963 में सुप्रसिद्ध कानूनविद डाॅ. लक्ष्मीमल सिंघवी ने भी लोकपाल की अवधारणा को उजागर किया था। 1968 में शांति भूषण जी ने संसद में लोकपाल बिल प्रस्तुत किया जो लोकसभा में तो पारित हो गया था परन्तु राज्यसभा में पारित नहीं हो पाया। इसके बाद अनेकों बार यह बिल संसद में प्रस्तुत होता रहा, परन्तु कभी सफल नहीं हो पाया।
लोकपाल का क्षेत्राधिकार राष्ट्रीय स्तर का है और लोकायुक्तों का वही कार्य राज्य स्तर का होता है। भारत में लोकपाल तथा संस्थागत रूप से इसके 8 अन्य सदस्यों की नियुक्ति कानून पारित होने के 6 वर्ष बाद ही सम्पन्न हो पाई है। वैसे तो इस नियुक्ति पर भी कई कानूनी और राजनीतिक प्रश्न खड़े किये जा रहे हैं, परन्तु फिर भी यह आशा की जानी चाहिए कि लोकपाल संस्था के विधिवत निर्माण के बाद भ्रष्टाचार उन्मूलन का एक नया अध्याय भारत के प्रशासनिक पटल पर जुड़ सकेगा।
सर्वोच्च न्यायालय तथा चुनाव आयोग की तरह लोकपाल भी सरकार के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त होगा। कोई भी मंत्री या सरकारी उच्चाधिकारी लोकपाल की प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। ऐसी आशा की जानी चाहिए कि उच्च पदों के विरुद्ध भ्रष्टाचार की शिकायतें लोकपाल के नियंत्रण में निर्धारित एक वर्ष के भीतर समाप्त हो पायेंगी। लोकपाल को यह अधिकार है कि भ्रष्टाचार के कारण सरकार को होने वाली आर्थिक हानि की भरपाई अपराधी पाये जाने वाले अधिकारी से कर सकता है। यदि किसी व्यक्ति का कार्य निर्धारित समय में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अधिकारी पर जुर्माना भी लगा सकता है जो शिकायतकर्ता को दिया जायेगा। लोकपाल की सम्पूर्ण कार्यवाही एक पारदर्शी प्रणाली के माध्यम से ही संचालित होगी। लोकपाल संस्था भारत के प्रधानमंत्री तथा केन्द्रीय मंत्रियों और यहाँ तक कि सांसदो के विरुद्ध भी शिकायतें सुन सकती है। केन्द्र सरकार के सभी उच्च श्रेणी के अधिकारी भी लोकपाल जाँच के दायरे में सम्मिलित हैं। यहाँ तक संसद के द्वारा स्थापित किसी भी बोर्ड, निगम, संस्था या ट्रस्ट आदि के अधिकारी और कार्य प्रणाली भी लोकपाल के निरीक्षण में खड़ी की जा सकती है। कोई भी संस्था जो 10 लाख रुपये से अधिक विदेशी सहायता प्राप्त करती है उस पर भी लोकपाल नियंत्रण कर सकता है। प्रधानमंत्री के विरुद्ध केवल अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों, आन्तरिक सुरक्षा, आटोमिक ऊर्जा जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों को लेकर कोई शिकायत लोकपाल के द्वारा विचारणीय नहीं हो सकती, जब तक इसके दो तिहाई सदस्य इसके लिए सहमत न हों। विस्तृत छानबीन के लिए लोकपाल, सी.बी.आई., सतर्कता आयोग जैसी संस्थाओं की सहायता ले सकता है। लोकपाल को दो माह में छानबीन प्रक्रिया पूरी करनी होगी। लोकपाल की तीन सदस्य छानबीन रिपोर्ट पर विचार करने के बाद उस व्यक्ति या संस्था को सुनवाई का अवसर देंगे, जिनके विरुद्ध शिकायत विचारधीन है।
सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश श्री पिनाकी चन्द्र घोस को भारत का प्रथम लोकपाल नियुक्त किया गया है। अन्य 8 सदस्यों में से 4 सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं और 4 व्यक्तियों को अन्य क्षेत्रों से चुना गया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री डी.बी. भोसले, झारखण्ड उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री प्रदीप कुमार मोहन्ती, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री ए.के. त्रिपाठी तथा मणिपुर उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्रीमती अभिलाषा को 4 न्यायिक सदस्यों में चुना गया है। श्रीमती अभिलाषा हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह की सुपुत्री हैं। गैर-न्यायिक सदस्यों में सेवानिवृत्त उच्चाधिकारी श्री महेन्द्र सिंह, श्री दिनेश कुमार जैन तथा श्री इन्द्रजीत प्रसाद गौतम के अतिरिक्त सेवानिवृत्त उच्च पुलिस अधिकारी श्रीमती अर्चना रामासुन्दरम शामिल हैं।
प्रथम लोकपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा उस चयन समिति की सिफारिश पर की गई है जिसमें प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन सम्मिलित थी।

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