मनोरंजन

फिल्म समीक्षा

फिल्म का नाम : गोल्ड
फिल्म के कलाकार : अक्षय कुमार, मॉनी रॉय, कुणाल कपूर, विनीत कुमार, अमित साद, कियारा आडवाणी
फिल्म का निर्देशक : रीमा कागती
अवधि : 2 घंटा 22 मिनट
रेटिंग : 3.5/5

15 अगस्त यानि आज़ादी के दिन फिल्म गोल्ड रिलीज़ हो रही है। हाॅकी पर पहले चक दे इंडिया बन चुकी है। गोल्ड भी हाॅकी मैच पर आधारित है यह उस वक्त की हाॅकी टीम के ज़ज़्बे को दर्शाती है जब आजादी के बाद भारत की हाॅकी टीम ने अपना पहला गोल्ड प्राप्त किया था, और जिन्होंने सच्चे मन से खेलकर विदेशी धरती पर जीत हासिल करके भारत का झंडा लहराया था। कहानी बड़ी ही रोमंाचकारी है। कहानी देशभक्ति की भावना से प्रबल है।

कहानी : फिल्म की कहानी 1936 के एक हाॅकी मैच से शुरू होती है जब भारतीय हॉकी टीम ने बर्लिन ओलिंपिक्स में ब्रिटिश इंडिया हिटलर की मौजूदगी में लगातार तीसरी बार अपनी जीत दर्ज की थी। तब यह टीम ब्रिटिश इंडिया टीम कहलाती थी और इसे ब्रिटिश राज चलाता था। इस हॉकी टीम का मैनेजर तपन दास (अक्षय कुमार) है और इसके दो स्टार प्लेयर हैं सम्राट (कुणाल कपूर) और इम्तियाज शाह (विनीत कुमार सिंह)। टीम के एक बंगाली जूनियर मैनेजर ने आजाद भारत की टीम को गोल्ड दिलाने का सपना अपने दिल में बसा कर रखा। उसका सपना 1948 में ब्रिटेन की धरती पर भारतीय ध्वज लहराने का था।

फिल्म के निर्देशक रीमा ने इतिहास के एक ऐसे हिस्से को जीवंत किया है जिसके बारे में हर कोई ठीक से नहीं जानता है। फिल्म में हर कलाकार ने अपने किरदार को बखूबी ढंग से निभाया है। यदि हम बात करें फिल्म के लीड किरदार अक्षय के बारे में तो उन्होंने बंगाली रूप में धोती पहनकर अपनी एक्टिंग के द्वारा अपने किरदार पर पकड़ मज़बूत रखा है। चाहे वो इमोशनल सीन हो या फिर हंसने-हंसाने की कोई बात हो, कहीं भी ओवर एक्टिंग नहीं लगता है। फिल्म में मौनी राॅय जो अब तक टीवी अभिनेत्री कहलाती थी, इस फिल्म के ज़रिए उन्होंने बाॅलीवुड में कदम रखा है। उन्होंने अक्षय कि बंगाली पत्नी का रोल अदा किया है। एक बंगालन पत्नी के रूप में मौनी की एक्टिंग भी काबिले तारिफ है। कुणाल कपूर ने पहले हॉकी प्लेयर और फिर हॉकी टीम के कोच के रूप में अच्छा काम किया है। विनीत कुमार का काम भी दमदार है। ठाकुर के रूप में अमित साध का किरदार भी काफी अच्छा लगा है। एक गुस्सैल प्लेयर के रूप में सनी कौशल का रोल भी बहुत बेहतर लगता है।
‘गोल्ड’ हॉकी पर आधारित एक फिल्म तो है ही लेकिन साथ ही साथ यह विभाजन की उस घटना को भी जीवंत कर देती है जो हमारे देश के इतिहास का एक काला सच है जिसको भुलाया नहीं जा सकता है।
फिल्म का अंत काफी इमोशनल है। सभी खिलाड़ी अपने ईगो को अलग रखकर, एक साथ मिलकर भारत को गोल्ड दिलाने के सपने को साकार करने के लिए खेलते हैं, लेकिन खिलाड़ियों का मैच जीतने के बाद गोल्ड मैडल लेकर भारत आने के कुछ और सीन होते तो इसका अंत और भी असरदार दिखता।

फिल्म क्यों देखें : आज की पीढ़ी जिनको 1948 केे लंदन ओलंपिक्स के बारे में नहीं पता उनको पता चले कि भारत कि यह ऐतिहासिक जीत सिर्फ एक चांस की बात नहीं थी। किस तरह भारतीय हाॅकी टीम ने आजादी के एक साल बाद विदेशी सरज़मीन पर अपने देश का नाम रौशन किया था।

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