मनोरंजन

‘‘बत्ती गुल मीटर चालू’’

फिल्म समीक्षा

फिल्म के कलाकार : शाहिद कपूर, श्रद्धा कपूर, दिव्येंदु शर्मा, यामी गौतम, फरीदा जलाल, सुधीर पांडे, सुप्रिया पिलगांवकर, अतुल श्रीवास्तव और अन्य।
फिल्म के निर्देशक : श्री नारायण सिंह
फिल्म के निर्माता : भूषण कुमार, निशांत पिट्टी व कृष्ण कुमार
अवधि : 2 घंटा 43 मिनट
रेटिंग : 3/5

बिजली के कम खपत के बावजूद बिल हद से ज़्यादा आना यह हमारे देश आम समस्या बन चुकी है, इसी समस्या पर आधारित है फिल्म ‘बत्ती गुल मीटर चालू’। फिल्म की कहानी को उत्तराखंड के इंडस्ट्रियल इलाके में बिजली कंपनियों की मनमानी को आधार बना कर बनाया गया है। फिल्म बिजली के मोटे बिल की बड़ी समस्या पर चोट करती है। इसके साथ ही साथ भारत सरकार के अहम मुद्दे ‘विकास’ और ‘कल्याण’ के दावों पर भी व्यंग्य बिठाया गया है।

फिल्म की कहानी :
फिल्म में शाहिद कपूर ने सुशील कुमार पंत उर्फ एस.के. की भुमिका निभाई है। श्रद्धा कपूर ललिता नौटियाल उर्फ नौटी की भूमिका में हैं और दिव्येंदु शर्मा सुंदर मोहन त्रिपाठी की भूमिका में हैं। यह तीनों बचपन से ही गहरे दोस्त हैं। वे उत्तराखंड के नई टिहरी में रहते हैं। एस.के. बहुत ही चतुर, चालाक और चालू किस्म का वकील है, जो अपने तरीके से पैसा कमाता है वो लोगों को झूठे केस में फंसाने की धमकी देकर उनसे पैसे वसूलता है। नौटी छोटे दर्जे की फैशन डिजाइनर है जो सपना देखती है कि एक दिन वो बहुत बड़ी फैशन डिजाइनर बनेगी और फैशन शो में हिस्सा भी लेगी। त्रिपाठी ने इंडस्ट्रियल इलाके में अपना खुद का प्रिंटिंग प्रेस खोला है।
दोनों दोस्त नौटी की शादी किसी और से होने नहीं देते इस वजह से नौटी दोनों को कहती है कि एक-एक हफता वो दोनों के साथ रहेगी और जो उसका दिल जीत लेगा नौटी उसी से शादी कर लेगी। लेकिन नौटी त्रिपाठी को पसंद कर लेती है, जिससे एस.के. और त्रिपाठी की दोस्ती में दरार पड़ जाती है। नाराज एस.के. अपने दोस्तों से दूर हो जाता है। उधर सुंदर की फैक्ट्री में बिजली कम आती है लेकिन फिर भी बिल हमेशा ज्यादा आता है और एक बार तो 54 लाख रुपये तक का बिल आ जाता है। इस वजह से वो शिकायत तो दर्ज करता है, लेकिन उसकी बात कोई नहीं सुनता। यहां तक की उसका दोस्त एस.के. भी उसकी मदद करने से इन्कार कर देता है। फिर एक वक्त ऐसा आता है जब सुंदर त्रिपाठी मजबूर होकर आत्महत्या कर लेता है। इस वजह से सुशील और ललिता को बहुत सदमा पहुंचता है। एस.के. को जब अपनी गलती का एहसास होता है तो वह अपने दोस्त के इस केस को लड़ने का फैसला करता है। कोर्टरूम में उसकी जिरह वकील गुलनार यानि यामी गौतम से होती है। अंततः फैसला सुंदर त्रिपाठी के हक में होता है। एस.के. केस जीत जाता है और बिजली कंपनी लाइसेन्स रद्द कर दिया जाता है।

निर्देशक श्री नारायण सिंह पहले भी खुले में शौच का मुद्दा उठाकर फिल्म ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ बना चुके हैं और इस बार उन्होंने बिजली कंपनियों की मनमानी को मुद्दा बना कर फिल्म बनाई है। फिल्म में सारे किरदार उत्तराखंड की कुमाऊंनी भाषा बोलते हैं। फिल्म में पहाड़ की संस्कृति की झलक भी दिखाई गई है। फिल्म का शुरूआती हिस्सा कुछ खास आपका मनोरंजन नहीं करता लेकिन इंटरवल के बाद की कहानी थोड़ी अच्छी है जो आपको आखिरी वक्त तक बांधे रखती है। फिल्म के दूसरे हिस्से के कोर्ट रूम ड्रामा काफी मनोरंजक है। शाहिद कपूर ने फिल्म में उत्तराखंड के निवासी के रूप में अच्छी एक्टिंग की है। श्रद्धा कपूर की एक्टिंग भी ठीक-ठाक है। दिव्येन्दु शर्मा ने भी अपने किरदार को अच्छे से निभाया है।

फिल्म क्यों देखें : फिल्म में बिजली के बिल से जुझते हुए आम आदमी की परेशानी के मुद्दे को फिल्म के रूप में पेश किया गया है जिसे देखना दिलचस्प होगा। फिल्म को एक बार देखा जा सकता है।

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