अपराध करने के बाद अपराधियों के हालात की कहानी बयां करती है फिल्म ‘सोनचिड़िया’
फिल्म का नाम : सोनचिड़िया
फिल्म के कलाकार : सुशांत सिंह राजपूत, मनोज वाजपेयी, रणवीर शौरी, भूमि पेडनेकर, आशुतोष राणा
फिल्म के निर्देशक : अभिषेक चौबे
फिल्म के निर्माता : रोनी स्क्रूवाला
रेटिंग : 3.5/5
डाकूओं के जीवन पर आधारित और निर्देशक अभिषेक चैबे के निर्देशन में बनी फिल्म ‘सोनचिड़िया’ अब रिलीज़ हो चुकी है। फिल्म चंबल घाटी के डाकूओं की जिंदगी की झलक पेश करती है। फिल्म में जातिप्रथा और अंधविश्वास को दिखाया गया है। जानते हैं कि फिल्म कैसी है?
फिल्म की कहानी :
फिल्म सोनचिड़िया की कहानी डाकू मान सिंह (मनोज बाजपेई) के गैंग की कहानी है। गिरोह के सारे लोग उसे दद्दा कहते हैं। फिल्म का दद्दा धर्म और भगवान में विश्वास करता है। सब उसका आदर भी करते हैं। इसके अलावा गिरोह में लखना (सुशांत सिंह) जो डाकू मान सिंह के गिरोह के सबसे करीबी और भरोसेमंद सदस्यों में से एक है और वकील सिंह (रणवीर शौरी) का संघर्ष है। फिल्म की कहानी धीरे-धीरे आगे बढ़ती है उसके बाद इस गैंग में सोनचिड़िया का आगमन होता है और इस गैंग के डकैतों के बीच गुटबाजी शुरू हो जाती है। कू्रर अधिकारी गुर्जर (आशुतोष राणा) व्यक्तिगत रंजिश के चलते गिरोह का पीछा करते हैं। गुटबाजी के बाद गैंग में क्या होता है? डाकूओं की ज़िंदगी किस तरह प्रभावित होती है? गुट क्यों हो जाती है और सोनचिड़िया क्या है? इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए आपको सिनेमाघरों की ओर रूख करना पड़ेगा।
फिल्म में सभी कलाकारों का काम तारीफ के योग्य है। बहादुर ग्रामीण महिला उग्र इंदुमती तोमर के किरदार में भूमि पेडनेकर एकदम गजब लगी हैं अपनी अदाकरी से उन्होंने अपने किरदार में जान फूंक दी है। हमेशा की तरह मनोज वाजपेयी की परफाॅर्मेन्स आपका दिल जीत लेगी। सुशांत सिंह राजपूत डाकू मान सिंह के किरदार में खूब जमे हैं। पुलिस आफिसर की भूमिका में आशुतोष राणा ने अपने किरदार के साथ न्याय करते हुए उसे जीवंत किया है। रणवीर शौरी ने भी अच्छा काम किया है।
अभिषेक ने फिल्म के जरिए डाकुओं की जिंदगी से रूबरू करवाने की बेहद शानदार कोशिश की है और वो अपनी इस कोशिश में काफी हद तक सफल हुए हैं। फिल्म का संगीत कहानी के हिसाब से ठीकठाक है। फिल्म के डायलाॅग अच्छे हैं। फिल्म क्योंकि चंबल में बनी है इसलिए वहां के डाकूओं के जनजीवन को चित्रित करने और जीवंत करने के लिए खूब लड़ाई-झगड़ा, मारकाट, पश्चाप, बदला सबकुछ फिल्माया गया है और गाली-गलौज का भी इस्तेमाल किया गया है ताकि फिल्म रियल लगे।
फिल्म क्यों देखें ?: जो भी यह जानना चाहते हैं कि बीहड़ में डाकूओं का जनजीवन कैसा होता है तो यह फिल्म उन्हीं लोगों के लिए है।