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मिलन टाॅकिज़ में परवान चढ़ती श्रद्धा और अली की लव स्टोरी

फिल्म का नाम : ‘मिलन टाॅकीज़’
फिल्म के कलाकार : अली फजल, श्रद्धा श्रीनाथ, आशुतोष राणा, सिकंदर खेर, संजय मिश्रा, रिचा सिन्हा, पंकज त्रिपाठी, दीपराज राणा
फिल्म के निर्देशक : तिग्मांशु धूलिया
फिल्म के निर्माता : ओम प्रकाश भट्ट
रेटिंग : 1.5/5

मशहूर फिल्म निर्देशक तिग्मांशु धूलिया इस बार लेकर आए हैं ‘मिलन टॉकीज’। फिल्म रिलीज़ हो चुकी है। यह एक सिंगल स्क्रीन के इर्द-गिर्द बुनी गई रोमांटिक कहानी है। तिग्मांशु की पिछली फिल्म साहब बीवी गैंगस्टर 3 थी। जानते हैं मिलन टॉकीज कैसी फिल्म है।

फिल्म की कहानी :
यह 2010 से 2013 के बीच में इलाहबाद की कहानी है। यहां अनू नाम का लड़का (अली फजल) बड़ा फिल्म निर्देशक बनने का सपना देखता है। वह अपने जुगाड़ू दोस्तों के साथ मिलकर छोटी-मोटी फिल्में बनाकर अपना गुजारा कर रहा है। और साथ ही साथ छोटी -मोटी चिटिंग भी करता है कहने का मतलब है कि वो परीक्षा में नकल करवाने का काम करता है। वहां रहते हैं जनार्दन पांडा (आशुतोष राणा) जो पंडित हैं वो अपनी बेटी मैथली (श्रद्धा श्रीनाथ) को बीए की परीक्षा में पास करवाना चाहते हैं क्योंकि मैथिली की शादी तय हो चुकी है और लड़का बहुत पढ़ा-लिखा है। अपनी बेटी को पास कराने का काम जनार्दन अपने साले राजीव गुप्ता (हरिहरन पांडा) को सौंपता है। राजीव जाकर अनू की मदद लेता है। यहीं से अनू को मैथिली से मिलने का मौका मिलता और धीरे-धीरे मैथिली को भी अनू से पे्रम हो जाता है। दोनों छिपकर मिलन टाॅकीज़ में उस्मान भाई (संजय मिश्रा) की मदद से मिलते हैं। लेकिन मैथिली के पिता जनार्दन को ये मंजूर नहीं कि मैथिली प्रेम के चक्कर में पड़े। मैथिली के पिता को उसपर शक हो जाता है और वो उसका घर से बाहर आना-जाना बंद कर देता है, फिर मैथिली और अनू घर से भागने की कोशिश करते हैं लेकिन नाकामयाब होते हैं। गुरू पांडा की गोली से अनू घायल होकर भागते-भागते मुंबई की ट्रेन में सवार होकर किसी तरह अपनी जान बचाता है। कहानी में ट्विस्ट आता है और मैथिली की शादी गुरू पांडा (सिकंदर खेर) से हो जाती है। तीन साल बाद अनू मुंबई से अपने एक फिल्म प्रोजेक्ट के सिलसिले में अपने शहर वापस आता है। क्या अनू और मैथिली का मिलन हो पाता है, आगे क्या होता है? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

फिल्म में इलाहाबाद के कल्चर को बखूबी दिखाया गया है। मिलन टॉकीज की जैसी कहानियां के प्लाॅट हम पहले भी देख चुके हैं। इसलिए कहानी में फ्रेशनेस की कमी है। कहानी भी कमजोर है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो रोचकता को बनाए रखे और दर्शकों को सीट से बांधे रखे। फिल्म में कुछ इंटेन्स सीन भी फिल्माए गए हैं जो शायद इसलिए रखे गए हैं कि आज के युवा वर्ग को थिएटर तक लाया जा सके। फिल्म का संगीत कुछ खास नहीं है जिसे सुनकर लोग गुनगुनाने पर मजबूर हो जाएं, लेकिन हां ‘बकैती’ गाना यूपी जैसे शहरों में लोगों कि जुबान पर थोड़ी देर के लिए चढ़ सकता है।

बात करें फिल्म में कलाकारों के अदाकारी कि तो अली फज़ल एक अच्छे अभिनेता हैं और उन्होंने अपने किरदार अनू के साथ न्याय किया है, उन्होंने पूरी कोशिश की है कि उनका किरदार लोगों को निराश न करे। कन्नड़ और तमिल फिल्मों की नामी और खूबसूरत अभिनेत्री श्रद्धा श्रीनाथ की यह बॉलीवुड डेब्यू फिल्म है। छोटे शहर कि लड़की के किरदार में श्रद्धा अच्छी लगी है। बड़े पर्दे पर श्रद्धा और अली केमिस्ट्री अच्छी है। आशुतोष राणा एक मंझे हुए कलाकार हैं लेकिन इसमें उनका किरदार ज़्यादा गढ़ा हुआ नहीं है जो लोगों के मन पर एक छाप छोड़े। संजय मिश्रा का किरदार बहुत ही छोटा है। यूपी के गुंडे के किरदार के रूप में सिकंदर खेर ठीक हैं। इस फिल्म के निर्देशन के साथ तिग्मांशु धलिया ने फिल्म में एक्टिंग भी की है, वो अनू के पिता के किरदार में हैं वो मस्तमौला हैं हल्की-फुल्की काॅमेडी करते नज़र आए हैं। अपने छोटे से किरदार में वो अच्छे लगे हैं।

फिल्म क्यों देखें? :
फिल्म छोटे शहरों में लोगों को पसंद आएगी लेकिन बड़े शहरों में फिल्म लोगों की उम्मीद पर खरी नहीं उतरेगी।

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