मूवी रिव्यु

शिवसेना सुप्रीमो का राजनीतिक सफर और कद्दावर नेता के रूप रोबिले अंदाज़ को दिखाती है ‘ठाकरे’

फिल्म का नाम : ‘ठाकरे’
फिल्म के कलाकार : नवाजुद्दीन सिद्दीकी, अमृता राव, सुधीर मिश्रा, अब्दुल कादिर आमिन, राजेश खेड़ा
फिल्म के निर्देशक : अभिजीत पानसे
फिल्म के निर्माता : संजय राउत
रेटिंग : 2.5/5

महाराष्ट्र के राजनैतिक पटल के कद्दावर नेता और शिव सेना का गठन करने वाले बाल ठाकरे के जीवन पर आधारित फिल्म ‘ठाकरे’ अब रिलीज़ हो चुकी है। संजय राउत ने इस फिल्म के ज़रिए पूरी कोशिश की है दर्शकों के ज़हन में बाला साहेब ठाकरे के अच्छे व्यक्तित्व की छवि को उतारने की। फिल्म में उनको दक्षिण भारतीय और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ दिखाया गया है। एक कार्टूनिस्ट से लेकर महाराष्ट्र के सबसे प्रभावशाली राजनीतिज्ञ के रूप में उनके सफर को दिखाया गया। फिल्म में दक्षिण भरतीयों पर हमला, बाबरी मस्जिद विध्वंस, हिंदुत्व, भरत-पाकिस्तान किक्रेट मैच जैसे कई विवादित मुद्दों को दिखाया गया है और साथ ही साथ इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी और बालासाहेब की मुलाकात, कृष्णा देसाई हत्याकांड व शिवसेना पर लगने वाले वसंत सेना के आरोपों को भी दिखाया गया है।

फिल्म की कहानी :
फिल्म की शुरूआत होती है 1992 में हुए बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिराने और मुंबई के दंगों के मामले में लखनऊ की एक अदालत में सुनवाई के लिए कटघरे में खड़े बाल ठाकरे और वकील के बीच हुए संवाद से। उसके बाद सुनवाई के बीच-बीच में फ्लैशबैक में फिल्म चलती रहती है। महाराष्ट्र में दक्षिण भारतीयों का मराठियों के साथ दुव्र्यवहार बाला साहेब को अंदर ही अंदर कचोटता रहता है और चाहते हैं कि वो चाहते हैं कि मराठियों के लिए कुछ करें इस वजह से वह फ्री प्रेस जर्नल में कार्टूनिस्ट की नौकरी छोड़ कर मराठी भाषा में अपना एक व्यंग्य चित्र साप्ताहिक शुरू करते हैं। छोटी-छोटी सभाएं करके मराठियों को अपने हक के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके भाषण से मराठी लोग प्रभावित होते हैं और अपनी किसी भी समस्या के लिए उनसे मदद मांगते हैं। पहले तो सभी मसलों कोे सुनने के लिए घर से ही कार्य किया जाता है फिर एक दिन वो घोषणा करते हैं संगठन बनाकर काम करने की और फिर जन्म होता है शिव सेना संगठन का। इसी संगठन में काम करते-करते उनका प्रवेश राजनीति में होता है, और फिर वो हिन्दुत्व की राजनीति में आ जाते हैं। कहानी को और अधिक विस्तार से जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पडे़नी।

बात करें एक्टिंग की तो बाला साहेब के रोबिले अंदाज़ और किरदार के रूप में नवाज़ुद्दीन खूब जच रहे हैं। लुक्स में वो एकदम हूबहू शिवसेना सुप्रीमो की तरह ही नज़र आते हैं। उन्होंने अपने हाव-भाव और एक्टिंग से इस किरदार में जान डाल दी है। मीनाताई के किरदार में अमृता राव ठीक-ठाक दिखी हैं हालांकि उनके पास अपने रोल के लिए ज्यादा कुछ था नहीं। मोरारजी देसाई के रूप में राजेश खेड़ा का अभिनय अच्छा है। बाकी के कलाकारों भी ठीकठाक लगे हैं।

फिल्म को बयोपिक बताया जा रहा है लेकिन एक डाक्यूड्रामा है क्योंकि कहानी में उनके जीवन के कार्यशैलियों और राजनैतिक सफर को ही दिखाया गया। संवाद तीखे हैं। अभिजीत पानसे का निर्देशन ठीक है क्योंकि फिल्म में 60-70 के दशक का फील लाने के लिए उन्होंने अतीत के हिस्सों को ब्लैक एंड वाइट में फिल्माया है। स्क्रीन प्ले भी ठीक है। कहानी के हिसाब से संगीत ठीक है जो अखरती नहीं है।

फिल्म क्यों देखें? : जो लोग शिवसेना सुप्रीमो के बारे में जानने के इच्छुक हैं यह फिल्म उन लोगों को काफी अच्छी लगेगी।

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