मूवी रिव्यु

समाज, धर्म और नफरत से गुजरती अधूरे प्रेम की कहानी ‘कलंक’

फिल्म का नाम : कलंक
फिल्म के कलाकारर : माधुरी दीक्षित, संजय दत्त, आलिया भट्ट, वरुण धवन, सोनाक्षी सिन्हा, आदित्य रॉय कपूर, कुणाल खेमू, कियारा आडवानी, हितेन तेजवानी और अन्य
फिल्म के निर्देशकर : अभिषेक वर्मन
फिल्म के निर्माता : करण जौहर
रेटिंग : 3/5

करण जौहर द्वारा निर्मित और अभिषेक वर्मन द्वारा निर्देशित मल्टीस्टारर फिल्म ‘कलंक’ आज रिलीज हो गई। क्योंकि इस फिल्म में सभी बड़े कलाकार हैं इसलिए लोगों को इस फिल्म का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार था। जानते हैं फिल्म कैसी बनी है?

फिल्म की कहानी :
कलंक 1940 की पृष्ठभूमि पर अधारित एक पीरियड ड्रामा है। फिल्म की कहानी भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से पहले की है। लाहौर के निकट हुसैनाबाद नाम का शहर है। यहां मुस्लिम भारी तादात में रहते हैं, यह कहानी है हीरामंडी में रह रहे कुछ लोगों और चौधरी परिवार की। चौधरी परिवार की बहू सत्या (सोनाक्षी सिन्हा) कैंसर पीड़ित है, वह जल्द मरने वाली है इसलिए वह रूप(आलिया भट्ट) को अपने पति के साथ रहने के लिए कहती है इसलिए रूप अपनी बहनों का भविष्य बचाने के लिए आदित्य देव चैधरी (आदित्य रॉय कपूर) से शादी करने के लिए राजी भी हो जाती है और शादी करके हुसैनाबाद आ जाती है। शादी के बाद देव चौधरी यह साफ-साफ रूप से कहता है कि इस रिश्ते में उसे इज्जत तो मिलेगी, मगर प्यार नहीं, क्योंकि प्यार वह सिर्फ अपनी पहली पत्नी सत्या से करता है। परिवार के अंदर एक कैदभरी जिंदगी जी रहीं रूप गाने की आवाज सुनकर चाहती है कि वो भी गाना सीखे। लेकिन उसे बताया जाता है कि हीरामंडी में जाकर वह बहार बेगम (माधुरी दीक्षति) से गाना नहीं सीख सकती क्योंकि हीरामंडी सबसे बदनाम मोहल्ला है। किसी भी तरह से सत्या बलराज चौधरी (संजय दत्त) को मना लेती है और रूप को बहार बेगम से गाना सीखने की इजाजत मिल जाती है। अब रूप बहार बेगम (माधुरी दीक्षति) के यहां संगीत सीखने जाती है जहां उसकी मुलाकात जफर(वरुण धवन) से होती है। जफर पहली ही नजर में रूप का दिवाना हो जाता है जिसके बाद रूप को भी जफर से प्यार हो जाता है। जफर अपनी मां बहार बेगम से नफरत करता है क्योंकि वह बहार बेगम और बलराज चौधरी की नाजायज औलाद है और इसी वजह से उसे चारों तरफ से जिल्लत और नफरत सहनी पड़ती है। इससे से इतर कहानी में देश के बंटवारे का एक हिस्सा भी चल रहा होता है जहां अब्दुल (कुणाल खेमू) मुसलमानों को सशक्त बनाने के लिए विद्रोह करता है, वह देव चौधरी और बलराज चौधरी से नफरत करता है, उसे लगता है कि वे लोग पूरे मुस्लिम समाज के दुश्मन हैं। उसके बाद कहानी आगे बढ़ती है और एक बड़ा ट्विस्ट आता है। एक दिन सत्या की मौत हो जाती है। बलराज को जफर और रूप के मिलने-जुलने का पता पता चलता है तब वह बहार बेगम से मिलता है और कहता है कि वो जफर को रोके। प्री क्लाइमैक्स तक आते-आते देव को भी पता चल जाता है कि उसका सौतेला नाजायज भाई जफर ही उसकी दूसरी पत्नी रूप का प्रेमी है, लेकिन तब तक देव के खिलाफ अब्दुल दंगों का खूनी खेल शुरू कर देता है।

कहानी में भव्य सेट दिखाए गए हैं। फिल्म का पहला भाग धीमा है और किरदारों को स्थापित करने में ज्यादा वक्त लिया गया है लेकिन कहानी का दूसरा भाग अच्छा है फिल्म अंत भाग काफी प्रभावशाली है। दंगे का दृश्य आपको आजादी से पहले वक्त याद दिलाता है। फिल्म के डायलाॅग प्रभावी हैं लेकिन कई जगह पर एक ही डायलाॅग को रिपीट किया गया है। स्क्रीनप्ले काफी कमजोर है। कहानी भी काफी उलझी हुई है। फिल्म के कुछ गाने काफी अच्छे हैं।

बात करें अभिनय की तो फिल्म में सबसे ज्यादा फोकस आलिया और वरूण धवन पर किया गया है यानि फिल्म का पूरा दारोमदार वरूण और आलिया के कंधों पर है। रूप के किरदार में आलिया परफाॅर्मेंस कमाल की है। जफर के किरदार में वरूण खूब जमे हैं। अखबार के एडिटर देव के रूप में आदित्य रॉय कपूर अपनी खामोश भूमिका में अच्छे लगते हैं। सोनाक्षी सिन्हा का रोल ज्यादा बड़ा और खास नहीं लेकिन जितना भी है वो सत्या के रूप में ठीकठाक लगी हैं। बेटे के नफरत से जूझती मां और तवायफ के रूप में माधुरी दीक्षित का नृत्य और अभिनय अच्छा है। संजय दत्त का रोल छोटा है लेकिन ज्यादा दमदार नहीं है। कियारा अडवानी की भूमिका भी ज्यादा बड़ी नहीं है। नफरत फैलाने वाले अब्दुल के किरदार को कुणाल खेमू ने बहुत ही बेहतरीन ढंग से निभाया है।

फिल्म क्यों देखें? : फिल्म में बड़ी स्टारकास्ट है, अगर आप इनके दिवाने हैं तो एकबार फिल्म देख सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *