मूवी रिव्यु

कमज़ोर कहानी, ढेर सारा ड्रामा, थ्रिल और सस्पेंस से भरपूर फिल्म अमावस

फिल्म का नाम : अमावस
फिल्म के कलाकार : नरगिस फाखरी, सचिन जोशी, मोना सिंह, अली असगर, नवनीत कौर ढिल्लो, विवान भटेना
फिल्म के निर्देशक : भूषण पटेल
फिल्म के निर्माता : रैना सचिन जोशी
रेटिंग : 1.5/5

निर्देशक भूषण पटेल की फिल्म अमावस एक थ्रिलर हॉरर बॉलीवुड फिल्म है जो अब रिलीज़ हो चुकी है। यह भूषण की चैथी फिल्म है। जैसा कि हमेशा बाॅलीवुड की हाॅरर फिल्मों की तुलना लोग हाॅलीवुड से करने लगते हैं लेकिन बाॅलीवुड की हाॅरर फिल्मों का बजट हाॅलीवुड जितना नहीं होता शायद इसलिए यहां की हाॅरर फिल्में कम बजट में थोड़े बहुत स्पेशल इफेक्ट इस्तेमाल तो कर लेते हैं लेकिन कहानी उतनी दमदार नहीं ले पाते।

अमावस भी ऐसे ही है, जिस तरह अमावस की रात में चांद नजर नहीं आता, ठीक उसी तरह अमावस मूवी में आपको कहीं भी स्टोरी नजर नहीं आएगी. बाकी कमजोर स्टोरी को ढकने के लिए और फिल्म को एंगेजिंग बनाने के लिए सांउड इफेक्ट्स और छोटे छोटे हॉरर सी न का इस्तेमाल बखूबी किया गया है. सस्पेंस बनाने के चक्कर में स्टोरी को ही खत्म कर दिया गया है. एक मर्तबा आपको लगेगा कि फिल्म में तगड़ा सस्पेंस है, लेकनि अंत में दर्शक को न सस्पेंस मलिेगा, न स्टोरी.

फिल्म की कहानी :
फिल्म की शुरूआत लंदन के एक बड़े घर से होती है जहां गोटी ‘‘अली असगर’’ नाम का एक आदमी रहता है जो उस घर के मालिकों की अनुपस्थिति में घर का ख्याल रखता है। रात के 3ः00 बजे उसे कुछ आवाज़ें सुनाई देती हैं, यानि कुछ डरावने अनुभव होते हैं। उसके बाद करण अमरेजा ‘‘सचिन जोशी’’, उसकी दादी और नरगिस फाखरी ‘‘अहाना’’ दिखाया जाता है, अहाना करण से जिद करती है लंदन वाले घर समरहाउस में जाकर कुछ दिन बिताने की लेकिन करण नहीं मानता और बाद में दादी के कहने पर दोनों लंदन वाले घर में जाकर रहते हैं। यहां से शुरू होता है सस्पेंस, थ्रिलर और ड्रामे का। कहानी आगे बढ़ती है। 10 साल बाद करण के दो दोस्त माया और समीर दोस्ती की कहानी सामने आती है। बीच-बीच में सस्पेंस चलता रहता है, डराने का सिलसिला और बीच-बीच में हल्की-फुल्की काॅमेडी भी चलता है। फिल्म की पूरी कहानी को जानने और समझने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

फिल्म में नरगिस फाकरी नरगिस फाखरी अपनी अदाकारी में अच्छी लगी हैं। सचिन जोशी की एक्टिंग ठीक है। इस फिल्म के ज़रिए पहली बार किसी हाॅरर फिलम में नज़र आए हैं उन्होंने गोटी का किरदार किया है, उनका रोल भी बहुत ज्यादा बड़ा नहीं है लेकिन थोड़ी-थोड़ी देर के बाद पूरी फिल्म में आखिर तक नज़र आते हैं, उनका किरदार थोड़ा बहुत हंसाते हैं। मोना सिंह मनोचिकित्सक के रोल में हैं जो करण का इलाज करती है फिल्म में उनका रोल बहुत ही छोटा है इसलिए उनका किरदार उतना उभर कर नहीं आया।  नवनीत कौर ढिल्लन ठीक लगी हैं। जब से मेरा दिल और धड़कन जैसे गाने अच्छे हैं।

फिल्म की कहानी बिल्कुल भी दमदार नहीं है, ढेर सारा ड्रामा है। फिल्म के पहले हिस्से में आपको समझ ही नहीं आता कि फिल्म में चल क्या रहा है जो आपको बोर करता है। कहने को तो यह हाॅरर फिल्म है लेकिन फिल्म में छोटे-छोटे हाॅरर सीन है और सांउड इफेक्ट्स हैं जिससे आपको उतना डर नहीं लगता जिसकी उम्मीद करके आप फिल्म देखने गए हैं। फिल्म के आखिर में आधे घंटे की फिल्म थोड़ी अच्छी है, आखिर के हाॅरर सीन और स्पेशल इफेक्ट आपको अच्छे लगेंगे। फिल्म में आखिर तक सस्पेंस बनाने के चक्कर में कहानी ही कमजोर हो गई है। फिल्म ज्यादा दिन तक थिऐटर में टिक नहीं पाएगी।

फिल्म देखें या न देखें : फिल्म आपको पूरी तरह से निराश करती है इसलिए फिल्म अपने रिस्क पर देखें।

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