हलचल

नाट्य वृक्ष के छात्रों की सामूहिक जुगलबंदी ने मन मोहा

नई दिल्ली। दिल्ली का चिन्मय मिशन ऑडिटोरियम एक बार फिर एक अद्भुत प्रस्तुति का गवाह बना। बुधवार शाम यहां नाट्य वृक्ष की संस्थापक गुरु गीता चंद्रन के 32 शिष्यों ने भरतनाट्यम की एक साथ प्रस्तुति से राजधानीवासियों का दिल जीत लिया। पद्मश्री से सम्मानित गीता चंद्रन ने कहा कि भरतनाट्यम प्रदर्शन की कला है और यह जरूरी है कि अपना कला को निखारने के लिए छात्र लोगों के सामने प्रस्तुति दें। गीता चंद्रन को 2016 के केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
‘अभ्यास’ के नाम की गई इस प्रस्तुति में छात्रों ने चरणबद्ध तरीके से भरतनाट्यम की पारंपरिक प्रस्तुति दी। इसमें पुष्पांजलि, अलारिप्पू, टोडाई मंगलम, जातिश्वरम, नाटेश कवित्वम, वरनम, पदम और तिलना शामिल रहे। इन पारंपरिक नृत्य विधाओं को गीता चंद्रन की अद्भुत सोच और कोरियोग्राफी ने और निखार दिया। उन्होंने कहा, ‘नाट्य वृक्ष के माध्यम से मैं कलाकार और प्रस्तोता दोनों का विकास करना चाहती हूं।’ 1991 में स्थापित नाट्य वृक्ष से अब तक बड़ी संख्या में छात्रों ने नृत्य प्रशिक्षण लिया है। गीता चंद्रन के कई शिष्य आज ख्यातिप्राप्त डांसर बन चुके हैं।
गीता चंद्रन ने बताया कि ‘अभ्यास 2018’ की प्रस्तुति को देश की नवरत्न कंपनी एनएमडीसी का समर्थन मिला है। इस समर्थन पर खुशी जताते हुए उन्होंने कहा, ‘जिस तरह एनएमडीसी धरती से खनिज निकालती है, इसी तरह हम नाट्य वृक्ष में युवाओं को अपने अंदर छिपे नृत्य के रत्न को बाहर निकालने के लिए प्रेरित करते हैं।’ 32 शिष्यों के समूह के साथ नृत्य प्रस्तुति के विचार पर गीता चंद्रन ने कहा, ‘पारंपरिक नृत्य विधाओं को सीखना एक लंबी प्रक्रिया है। इसमें पारंगत होने 10 साल या इससे ज्यादा का वक्त लग जाता है। ऐसे में हमने सोचा कि शिष्यों को सीखने के क्रम में अपनी प्रतिभा को मंच पर दिखाने का मौका देना उनका उत्साह बढ़ा सकता है। यही सोचकर मैंने सामूहिक प्रस्तुति का आयोजन किया। अभ्यास 2018 में 32 ऐसे शिष्यों ने भाग लिया जो 5 साल या इससे ज्यादा समय से मुझसे नृत्य प्रशिक्षण ले रहे हैं।’
गीता चंद्रन ने बताया कि ‘अभ्यास 2018’ के दौरान मंच पर प्रस्तुति देने वाले शिष्यों में युवक व युवतियां दोनों शामिल हैं। एक साथ मंच साझा करने से उनमें आपसी सहयोग की भावना प्रबल होगी। गीता चंद्रन नई पीढ़ी के अनुभव से खुद भी सीखती हैं। उन्होंने बताया कि एक नृत्यांगना के रूप में उनके अंदर अति उत्साह की भावना रहती थी लेकिन गुरु के रूप में वह एक शांत व्यक्तित्व में ढल गई हैं। युवाओं के तकनीकी ज्ञान और कौशल से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *