हलचल

28 जुलाई से आम जनता भी देख सकेगी कलाकार पल्लवी सिंह की कला

कोच्चि। दिल्ली की कलाकार पल्लवी सिंह जब कोच्चि स्थित पुरुषों के एक सैलून में पहुंची तो ग्राहकों को आश्चर्य हुआ कि वह यहां क्या कर रही हैं। वह यहां बाल कटवाने नहीं आई थीं, बल्कि उन्हें यह जानने की उत्सुकता थी कि परंपरागत रूप से महिलाओं में लोकप्रिय मानी जाने वाली साज-सज्जा आज भी पुरुषों के लिए वर्जित क्यों मानी जाती है। भारतीय पुरुषों में सजने-संवरने की संस्कृति को लेकर पल्लवी सिंह की यह खोज कोच्चि बिनाले फाउंडेशन (केबीएफ) द्वारा दो माह चलने वाले इंटरनेशनल आर्ट रेसिडेंसी प्रोग्राम का हिस्सा है।
‘मुदिवेत्तु म्यूजियम-निर्माणाथिल’ शीर्षक के तहत यह कलाकार कोच्चि के स्थानीय नाइयों और हेयर स्टाइलिस्टों के जीवन और कार्यों को प्रदर्शित कर रही है और यह प्रदर्शनी कलाकारों तथा लोगों के बीच संवाद शुरू करने के रेसिडेंसी के लक्ष्य का हिस्सा है। ‘मुदिवेत्तु म्यूजियम-निर्माणाथिल’ का अर्थ होता है, हेयरकट का संग्रहालय-निर्माणाधीन। उत्तर प्रदेश में जन्मी इस कलाकार के लिए मलयालम में शीर्षक रखना एक सोचा-समझा निर्णय था। इसके जरिये वह कोच्चि की स्थानीय संस्कृति के साथ जुड़ाव स्थापित करना चाहती थीं, जबकि अपने कार्यों के प्रति दिलचस्पी रखने वाले सैलानियों में उत्सुकता जगाना चाहती थीं।
उनका यह प्रोजेक्ट जुलाई के अंत में ही पूरा हो जाने की उम्मीद है और यह आसपास के समाज में चल रही गतिविधियों की ओर ध्यान आकृष्ट करने का एक प्रयास है, जिसमें सड़क किनारे की दुकानों और पेड़ों के नीचे अस्थायी दुकान लगाकर बाल काटने-कटवाने की गतिविधियों को प्रमुखता से दिखाया गया है।
कोच्चि की हेरिटेज प्राॅपर्टी पेपर हाउस के एक स्टूडियो में काम करने वाली 30 वर्षीय पल्लवी सिंह बताती हैं, “यह आइडिया एक ऐसे पेशे के विभिन्न पहलुओं से रूबरू कराने का है जिसे कभी किसी संग्रहालय में जगह नहीं मिल पाई।” पल्लवी की यह प्रदर्शनी 28 जुलाई से पेपर हाउस में ही लगाई जाएगी। उन्होंने कहा, “इस प्रदर्शनी के जरिये मैं परंपरागत रूप से रहने वाले पुरुषों से लेकर महानगरीय शैली में जीने वाले पुरुषों के बीच आए बदलावों की पड़ताल कर रही हूं। इस घटनाक्रम को मैं व्यावसायीकरण और काॅर्पोरेट बाजार की नजर से बयां कर रही हूं।”
पुरुषों के सजने-संवरने को लेकर एक म्यूजियम बनाने का आइडिया उन्हें तब आया, जब उन्होंने मट्टनचेरी, तोपमपडी और फोर्ट कोच्चि के अन्य इलाकों में मौजूद स्थानीय नाइयों की दुकानों का दौरा किया। उनका यह सफर वर्ष 2011 से पुरुषों के सजने-संवरने की ओर बढ़ते रुझान को समझने से शुरू हुआ और यह उनके कुछ पूर्ववर्ती कामों का एक विषय भी रहा है। उनका शोध व्यक्तिगत सुंदरता और साज शृंगार के हाइजिन आधारित खूबसूरती से सौंदर्यपरक मूल्य वाली खूबसूरती में बदलने पर केंद्रित है।
उन्होंने कहा, “इन दिनों आप देख सकते हैं कि बाजार में पुरुषों के लिए उतने ही सौंदर्य उत्पाद उपलब्ध हैं। क्रिएटिव मार्केटिंग और सुंदर दिखने की आंतरिक इच्छा की भावना को भुनाते हुए ये उत्पाद सफलतापूर्वक एक नया प्रतिस्पर्धात्मक माहौल बनाने में सक्षम रहे हैं, जहां लोगों को अपना आत्म सम्मान बढ़ाने के लिए इन्हीं उत्पादों पर निर्भर रहना पड़ता है।”
सैलून के विषयों पर आधारित एक संग्रहालय बनाने की प्रक्रिया के तहत इन दुकानों में बिताए गए पल, कभी-कभी नाइयों से बढ़ाई गई घनिष्ठता और उनकी कलाकारी से स्थानीय पुरुषों की संस्कृति को समझने के प्रयासों को शामिल किया गया है। पल्लवी ने कहा, “वे प्रचलित स्टाइल को गढ़ने की कला में माहिर हैं। वे ग्राहकों से मनपसंद स्टाइल जानने के लिए उन्हें अपनी दुकानों में लगी तस्वीरों की ओर इशारा करते हैं। हेयरकट स्टाइल के नाम से अनजान रहते हुए इन स्थानीय नाइयों ने अपनी सुविधानुसार सादा कट और ‘स्लोप कट’ जैसे नाम गढ़ लिए हैं।”
सिंह बताती हैं, “इस प्रोजेक्ट पर अपने शोध के दौरान मैंने इन नाइयों के काॅन्सेप्ट को बयां किया है और उनसे पूछा है कि क्या वे इस्तेमाल नहीं होने वाली अपनी सामग्री दे सकते हैं। इसके पीछे मकसद नाइयों का इन औजारों से ताल्लुक साझा करना था। मैं नए औजारों से भी यह प्रदर्शनी लगा सकती थी लेकिन इससे उनके साथ जुड़ी भावनाओं का अहसास नहीं हो पाता।” पल्लवी को इसके लिए इनलैक्स शिवदासानी फाउंडेशन से वित्तीय मदद मिली है जो उन्हें 2015 में अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित स्कोवेगन रेसिडेंसी का हिस्सा बनने के लिए मिली है।
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के काॅलेज आॅफ आर्ट्स से पेंटिंग में मास्टर डिग्री ली हुई है। हालांकि पेपर हाउस रेसिडेंसी के लिए वह ऐसे अन्य मीडिया प्रतिष्ठानों के साथ भी प्रयोग कर रही हैं, जहां पुरुषों के लिए विभिन्न प्रकार के हेयर स्टाइल प्रदर्शित करने वाले डिजिटल इंस्टाॅलेशन होंगे, इसमें नाई की दुकान से खरीदी गई वस्तुओं और ड्राइंग के एक छोटे संग्रह की प्रदर्शनी है।
अपने संग्रह के लिए विशेष सामग्रियों को खरीदना कोई आसान काम नहीं था। जहां कुछ नाई अपने औजार इस कलाकार को स्वेच्छा से दान करने आगे आए, वहीं कुछ नाइयों ने अपना कीमती सामान देने से इनकार कर दिया था। प्रतिकूलताओं के बावजूद सिंह ने मैनुअल ट्रिमर, स्काल्प मसाजर, नाई की कुर्सी, उस्तूरा और कई तरह की कंघियों समेत विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का संग्रह कर ही लिया। पल्लवी सिंह की रेसिडेंसी में योगदान करने वाले नाइयों को संग्रहालय में लगी वस्तुओं के तौर पर प्रतिदिन अपने औजार देखने का दुर्लभ अवसर मिलेगा क्योंकि सिंह ने उन्हें अपनी प्रदर्शनी के उद्घाटन पर आमंत्रित करने की योजना बनाई है।

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