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अर्थ के पैनल में कई विषयों पर चर्चा और प्रदर्शन, वर्कशॉप में नई ऊंचाई को छुआ

दिल्ली। डाबर रेड पेस्ट एक सांस्कृतिक कार्यक्रम, अर्थ पेश करता है। यह जी लाइव की इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी है। इसका मकसद है, भारतीय सभ्यता के मतलब समझना और तलाशना तथा इसकी आत्मा को जानना। इस फेस्टिवल का आयोजन इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर ऑफ आर्ट्स के लॉन में 8 से 10 फरवरी 2019 के बीच किया गया था।
अर्थ के राष्ट्रीय एडिशन को सोच समझ कर डिजाइन किया गया था और इसमें देश के मौजूदा परिदृश्य का ख्याल रखा गया था। इस फेस्टिवल के दूसरे दिन पैनल चर्चा जोरदार रही और ज्यादातर प्रमुख वक्ताओं ने भारत के बारे में अपने विचार रखे जो उन विषयों पर थे जिनकी चर्चा देश में होती रही है।
कुछ पैनल्स इस प्रकार है ऐक्टिविज्म वाय दि आर्ट्स: लेजीटिमेट ऑर ऑपरचुनिस्टिक? जानकारी मालविका अविनाश, स्वर्णामलय गणेश और विवेक अग्निहोत्री ने साझा की, सुब्रमणियन स्वामी ने अनुराग सक्सेना से बात की। ग्रेट माइंड्स फ्रॉम बेंगालरू टैगोर, स्वामी विवेकानंद, श्री अरबिन्दो हिन्डोल सेनगुप्ता और सौनक चट्टोपाध्याय द्वारा। इसके बाद मौजूद लोगों को अर्नब रंजन गोस्वामी (समाचार चैनल रीपबलिक न्यूज के निदेशक) ने संबोधित किया। दर्शक इन दिनों जारी विषय और पैनल चर्चा से भी जुड़े जो नारीवाद और परंपरा: अनुकूल या एक दूसरे से मुकाबले में? पर था। इसमें स्मृति ईरानी, रवीणा टंडन और लावण्या वेमसानी ने हिस्सा लिया। इसी तरह दि एपिक सागारू महाभारत मानव प्रकृति की कहानी को निलेश ओक और विस्व अदलुरी ने प्रस्तुत किया। अल्टरनेटिव्ज नैरेटिव्ज ऑफ इंडियाज फ्रीडम स्ट्रगलरू किश्वर देसाई, प्रसेनजीत बसु, संजीव सान्याल और सरादिन्दु मुखर्जी द्वारा। पैनल ने फिल्म प्रीमियर, ‘ब्लड बुद्धा’ पर चर्चा की जो निखिल सिंह राजपूत द्वारा पेश किया गया है। इसके बाद एक चर्चा, ‘ब्रिंगिंग आवर गॉड्स होम’ पर हुई। इसे अमिष त्रिपाठी, अनुराग सक्सेना, डेविड फ्रॉवली, डोमेनिक डी गोवानी करेन अट्टियाह और टेस डेविस ने प्रस्तुत किया।
पैनल डिसकशन के बाद कुछ मास्टरक्लास आयोजित हुए जो लोगों को जोड़कर रखने के साथ-साथ शिक्षाप्रद भी थे। इनमें – उत्तर प्रदेश का सांझी पेपर कटिंग, हिमाचल प्रदेश का कांगड़ा मिनिएचर, राजस्थान की पॉटरी, कर्नाटक की चित्तारा पेंटिंग आदि शामिल है। संध्या का समापन पुरस्कार प्राप्त हस्ती तीजन बाई के पंडावनी प्रदर्शन से हुआ। तीजन बाई ने अपने इस प्रदर्शन में महाभारत की कहानी प्रस्तुत की और इसके साथ संगीत भी था। दर्शकों ने उनके प्रदर्शन का आनंद लिया।
अर्थ का दूसरा दिन बेहद सफल रहा। इस विशाल सफलता पर बोलते हुए अर्थ की संस्थापक और निदेशक श्रेयसी गोयनका ने कहा, “अपने आयोजन की भारी सफलता पर मुझे खुशी हो रही है। दर्शकों में कला और संस्कृति के प्रति जो लगाव और प्रेम है उसे देखना अच्छा लगता है। मैं सभी वक्ताओं और परफॉर्म करने वालों का आभार जताती हूं कि वे हमारे साथ आए तथा अर्थ के पीछे की दृष्टि को अपना समर्थन दिया है और उसका विस्तार करने की दिशा में काम किया है।”
कला के क्षेत्र में ऐक्टिविज्म की चर्चा करते हुए फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने कहा, “हम बहुत ही मिश्रित दुनिया में रहते हैं। आइए, फिल्म उद्योग को देखें जहां 70ः – 80ः ग्लैमरस दुनिया से आते हैं। इसलिए मीडिया उनपर ध्यान देता है और कवरेज करता है पर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ को कोई कवरेज नहीं देता है। आज गांवों में जमीनी स्तर पर बहुत काम हो रहा है वहां सरंचनाएं लगाई जा रही। ढेर सारे लाभार्थी हैं। यह वास्तविक ऐक्टिविज्म है पर चूंकि यह सरकार की ओर से हैं इसलिए बहुत सारे एनजीओ, भी इस बारे में बात नहीं करते हैं।”
फिल्म उद्योग में भी अगर हम वास्तविक ऐक्टिविज्म शुरू करना चाहें तो शुरुआत महिलाओं को बुनियादी सेवाएं मुहैया कराने से ही होती है। नारीत्व और ऐक्टिविज्म की बात करते हुए बॉलीवुड अभिनेत्री रवीना टंडन ने कहा, “आज महिलाएं अपने पांवों पर खड़ी हैं वे जो भी चाहती हैं करती हैं और उन्हें समान मात्रा में रोजगार के मौके मिलते हैं। फिर भी, इस क्षेत्र में अभी काफी कुछ किया जाना है।
आस्था और धर्म के बारे में बातें करने पर उन्होंने कहा, “आस्था एक विस्तृत पहलू है और इस मामले में हर कोई जैसे चाहे उसे वैसे रहने दिया जाना चाहिए। हमारे देश में ढेरों समुदाय हैं और इन सबकी अपनी आस्था है। और सबकी अलग परंपरा है। हमें इसका सम्मान करना चाहिए। जब तक कोई नुकसान नहीं कर रहा है, किसी को तकलीफ नहीं दे रहा है अपमानित या किसी और तरह की कोई गड़बड़ी नहीं कर रहा है उस व्यक्ति को किसी और को नुकसान पहुंचाए बगैर अपनी आस्था पर चलने देना चाहिए और इसे प्रेम की कार्रवाई मानना चाहिए।
फिल्म उद्योग में नारीवाद की चर्चा करते हुए वो कहती हैं, “मुझे उद्योग में बहुत सारा सकारात्मक बदलाव और समावेशन दिखाई देता है। आज, फिल्म निर्माण के हरेक क्षेत्र में बहुत सारी महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका में हैं और यह बहुत ही सकारात्मक संदेश है और इसकी वजह से महिलाओं के लिए ढेरों मौके हैं। वेतन में अंतर भी कम हो रहा है और अब समान स्थिति बन रही है।”
पैनल में नारीवाद और ऐक्टिविज्म की चर्चा करते हुए सांसद स्मृति ईरानी ने कहा, “राजनीतिक अधिकारों के लिए 1800 के दशक में शुरू हुए आंदोलन को आप परंपरा, धर्म और आस्था के चश्मे से देख सकते हैं और यहीं से विरोधाभास की शुरुआत होती है। यह इस पर भी निर्भर करता है कि परंपरा को आप किस चश्मे से देखते हैं। हमारी परंपराएं हमें चेतावनी देती हैं निखारने, रक्षा करने और प्रतिज्ञा पूरी करने की क्षमता महिला में होती है इसलिए महिला की संभावना और क्षमता पर ज्यादा बात नहीं होती है जबकि इसका उल्लेख भारतीय परंपरा और लेखों में पाया जाता है।
महिलाओं के लिए आरक्षण की बात करते हुए स्मृति ने कहा, “इसका मतलब यह नहीं लगाया जाए कि पुरुष अपनी जगह छोड़ दें बल्कि यह महिलाओं को बराबर मौका देने की कोशिश है ताकि उन्हें प्रतिस्पर्धा के लिए समान मौका मिले जिससे वे अपनी क्षमता के अनुसार परिश्रम कर सकें और क्षमता का प्रदर्शन कर सकें।”
भारतीय अभिनेत्री मालविका अविनाश ने आगे कहा, “मैं समझती हूं कि बुनियादी तौर पर हम जहां से आते हैं वहां सोचने की प्रक्रिया, आदर्श सब एक है। आदर्शों से पता चलता है कि विश्व के प्रति आपका परिप्रेक्ष्य क्या है। कुछ लोग सिर्फ नकारात्मक देखते हैं जबकि कुछ लोग सिर्फ सकारात्मक देखते हैं। मेरा मानना है कि यह एक खूबसूरत दुनिया है जहां सुंदर चीजें हैं। मेरी एक विरासत है जिसका मुझे गर्व है और ऐसी विरासत किसी अन्य सभ्यता की नहीं है।”

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