लाइफस्टाइलस्वास्थ्य

जरूरी है नवजात शिशु के लिए सही आहार

डॉ. नूपुर गुप्ता
डायरेक्टर वेल वूमेन क्लीनिक, गुरुग्राम
जन्म के बाद तीन-चार माह तक बच्चों के लिए मां का दूध ही पूर्ण आहार होता है, लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है। उसके लिए दूसरे आहार भी आवश्यक हो जाते हैं। प्रारंभ से ही की गई उचित देखभाल बच्चें को एक स्वस्थ् नागरिक बनाने में काफी सहायक होती है। लेकिन अगर लालन-पालन में कमी रह जाए तो यह बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में बाधक हो सकती है। शिशु की देखभाल उस समय ही शुरू हो जाती है, जब से वह मां के गर्भ में बढने लगता है, इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि गर्भावस्था के दौरान सावधानियां बरतनी चाहिए। यदि गर्भावस्था के दौरान उचित पोषक आहार लिया जाए तो इससे बच्चे के विकास में काफी सहायता मिलती है, इस दौरान कैल्शियम, विटामिनों और आयरन की उचित मात्रा में खुराक लेनी चाहिए।
जन्म के साथ ही बच्चे के देखभाल की जिम्मेदारी, मां पर शुरू हो जाती है और प्रारंभ से की गई उचित देखभाल का प्रभाव उसके समुचित विकास पर पड़ता है, जो उसके पूरे व्यक्तित्व को भी प्रभावित करता है। जन्म के बाद मां का दूध, शिशु को आसानी से पच जाता है और साथ ही इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ती है, जिसके कारण अनेक संक्रामक रोगों से उसकी सुरक्षा भी होता है। मां का दूध शुद्ध रहता है और स्तनपान करने वाले बच्चों को आंतों के संक्रमण से भी बचाता है। मां के लिए यह जानकारी होनी जरूरी है कि बच्चे को कब स्तनपान बंद करके दूसरे दूध देना शुरू कर देना चाहिए. जब शिशु दो माह का हो जाएं तो तब उसे गाय का दूध भी देना शुरू कर देना चाहिए, इस बात में कोई सत्य नहीं है कि बच्चे के स्वास्थ्य और विकास के लिए मां का दूध ही आवश्यक है। पाउडर, गाय या भैंस का दूध भी उचित मात्रा में बच्चे के सेहत के लिए लाभदायक होता है। बच्चे को दो माह पर बाहरी आहार देना शुरू कर देना चाहिए। अन्यथा बच्चे को स्तनपान की लत लग जाती है और वह किसी अन्य तरह का दूध या भोजन लेने से इंकार करने लगता है। छह माह से अधिक के हो जाने के बाद भी उसे केवल स्तनपान पर निर्भर रखने एक और हानि हो सकती है। मां के दूध मे विटामिन डी की मात्रा काफी कम होती है जिससे बच्चे को सूखा रोग हो सकता है, वैसे बच्चे को स्तनपान की आदत धीरे-धीरे ही छुड़ानी चाहिए। मां के दूध के बदले बच्चे को क्या दिया जाएं, इसका चुनाव बड़ा ही महत्वपूर्ण है। अतः इसमें सावधानी आवश्यक है, ऐसे में बाल रोग विशेषज्ञों का परामर्श अत्यंत लाभप्रद होता है, उनकी परामर्श के अनुसार ही बच्चे की प्रकृति के अनुकूल दूध का चुनाव किया जाना चाहिए। हालांकि आमतौर पर उपलब्ध दूध ही बच्चे को दिया जाता है। दूध विभिन्न प्रकार के होते हैं। वैसे तो गाय, भैंस, बकरी का दूध सभी लगभग एक ही तरह के होते है, इस सबमें वसा बहुत ही महीन कणों में उपलब्ध होती है। क्रीम दूध में ही धुली रहती है। दूध को पेस्वराइज्ड करने से बच्चे के शरीर में रोगाणुओं के पहुंचने की संभावना नहीं रहती। कच्चे दूध को कम से कम पीने या पिलाने से पहले दस मिनट तक गरम करना चाहिए। ताजे दूध को मां के दूध की तरह बनाने के लिए उसमें निहित प्रोटीन की मात्रा को कम और शक्कर की मात्रा को बढ़ाने के साथ ही प्रोटीन के स्तर में बदलाव कर लेना चाहिए, जब बच्चा छह माह का हो जाएं तब उसे बिना पानी मिलाये दूध किया जा सकता है।
यदि कुछ समय बाद (लगभग तीन माह) बच्चे को मौसमी, संतरा का रस व दही आदि आहार के रूप में दिया जाये, बच्चे के सेहत के लिए लाभकारी होता है। आरंभ में रस को बराबर मात्रा में गरम पानी मिला कर बच्चों को पिलाया जाना चाहिए और धीरे-धीरे पानी की मात्रा को कम किया जाना चाहिए। बच्चे जब चार माह का हो जाए तो उसे कुछ ठोस आहार भी देना शुरू कर देना चाहिए, यहां एक ध्यान रखना चाहिए कि शुरू में बच्चे की भोजन के बारे में जो पंसद बन जाती है वह बाद में जल्दी छूटती नहीं है। मीठी व रिफांइड स्टार्च चीजें भूख को जल्दी शांत कर देती हैं और फिर अन्य कुछ चीजें नहीं खा पाते।
एक बार बच्चा जब फल खाने लगे तो चार सप्ताह बाद उसे उबली सब्जियां देनी चाहिए। उबली सब्जियों में हरी मटर, पालक, टमाटर व गाजर आदि बच्चों को दिया जा सकता है। अंडे से एलर्जी का खतरा रहता है, इस लिए इसे बच्चे को कम से कम एक वर्ष होने पर ही दें। आरंभ में अंडे की जर्दी ही बच्चों को देना चाहिए। बच्चे को दाल का सूप भी दिया जा सकता है। आज कल बाजार में बिना पके कई खाद्य पदार्थ बच्चों के लिए उपलब्ध हैं. इन्हें चिकित्सक की परामर्श से दिया जा सकता है. बच्चे को एक वर्ष का होने पर उसे सामान्य स्वास्थ्य आदत डालनी चाहिए। आर्थिक और सामाजिक रूप में अच्छे स्तर वाले परिवारों में अक्सर बच्चों को आवश्यकता से अधिक खिलाने की आदत पाई जाती है। ऐसे में बच्चों का वजन बढ़ जाता है। विशेश रूप से ऐसे बच्चों को जिसे केवल दूध ही पिलाया जाता है और ठोस आहार नहीं दिया जाता है, इसके कारण बच्चे के शरीर में पानी की मात्रा ज्यादा हो जाती है, जिसके कारण वह मोटा दिखाई देता है, इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे के दूध पीने के बाद यदि बोतल में बचा दूध हो तो उसे फेंक देना चाहिए न कि बच्चे को दोबारा पिलाएं। यदि बच्चे को संतुलित आहार मिलने के बावजूद, अगर आप को ऐसा महसूस होता है कि बच्चे का स्वाभाविक विकास नहीं हो पा रहा है तो उसके आहार में परिवर्तन कर सकते हैं या चिकित्सक से परामर्श ले सकते हैं।

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