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वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे : निवारण ही है बचाव

गर्मियों के मौसम चिकेंपोक्स, डायरिया, चिकिनगुनिया आदि जैसी बीमारियां तो आम हैं। इसके अलावा भी एक बीमारी है जो भारत में काफी आम हो चुकी है। इस बीमारी का नाम है वायरल हेपेटाइटिस, जिसे आम भाषा में लोग जॉन्डिस या पीलिया के नाम से जानते हैं। हेपेटाइटिस या पीलिया का मतलब है यकृत यानि लीवर की सूजन और यह ऐसा रोग है जो एक विशेष प्रकार के वायरल इन्फेक्शन के कारण होता है, जो जिगर को प्रभावित करता है। सबसे आम प्रकार हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी और हेपेटाइटिस ई हैं। इसके अलावा हेपेटाइटिस डी इसका प्रकार होता है। भारत मे 40 करोड़ से अधिक हेपेटाइटिस बी से संक्रमित रोगी हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में हर साल हेपेटाइटिस बी वायरस(एचबीवी) संक्रमण से लगभग 600,000 रोगियों की मृत्यु होती है।
डॉ. मोनिका जैन, सीनियर कंसलटेंट, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड हिपेटोलॉजी, श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट के अनुसार वायरल हेपेटाइटिस में रोगी के नाखून, त्वचा एवं आखों का सफेद भाग पीला पड़ जाता है यहाँ तक की उसको पेशाब भी पीला आता है। इसके अन्य लक्षण भी होते हैं जैसे रोगी को बेहद कमजोरी का महसूस होना, शाम के समय बुखार होना, जी मचलाना, सिरदर्द, भूख न लगना आदि।
जिस तरह लगा अलग प्रकार का पीलिया होता है उसी तरह इसके अलग अलग कारण भी होते हैं। जैसे:-

  • हेपेटाइटिस ए इंफेक्शन दूषित भोजन या पानी खाने या पीने से शरीर में फैलता है। यह इस बीमारी का एक मामूली संस्करण है।
  •  हेपेटाइटिस बी इंफेक्शन उठी घाव के माध्यम से फैलता है या फिर शरीर के संक्रामक खून, या फिर सीमेन के साथ संपर्क होने से यह वायरस फैलता है। वायरल हैपटाइटिस बी किसी भी मौसम में हो सकता है
  • हेपेटाइटिस सी शरीर के संक्रमित तरल पदार्थ जैसे खून, के साथ सीधे संपर्क के माध्यम से होता है।
  • संक्रमित सुइयां और इंजेक्शन्स भी हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी होने का एक और मुख्या कारण हैं।
  • हेपेटाइटिस डी यह हेपेटाइटिस की एक दुर्लभ रूप है जो एक गंभीर जिगर की बीमारी है। यह पंचर घाव या संक्रमित रक्त के साथ संपर्क के माध्यम से फैलता है।
  • हेपेटाइटिस इ यह दूषित पानी या भोजन के सेवन से होती है। आमतौर पर गंदगी वाले इलाकों में यह फैलती है।

डॉ. श्वेता गुप्ता, क्लीनिकल डायरेक्टर और सीनियर कंसल्टेंट-फर्टिलिटी सॉल्यूशंस, मेडिकवर फर्टिलिटी के मुताबिक,’’ किसी भी महिला को शारीरिक संबध बनाने से पहले अपने शरीर का पूरी तरह से चैकअप या टैस्ट करवाना चाहिए, जिससे ये पता चल सके की वो हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, एचआईवी आदि जैसी किसी भी प्रमुख बिमारियों से ग्रस्त नहीं हैं क्योंकि अगर कोई भी बिमारी महिला के शरीर में पाई जाती है तो वो उसके आगे आने वाले वंश के साथ-साथ एसटीडी या लैंगिक रूप से जैसे हैहर्पस, गोनोरिया, क्लैमिडिया जैसे कई अनुवांशिक रोग हो सकते हैं। एक खास बात इसमें ये भी है कि, इन सभी टैस्ट के लिए डोनर को खुद की जेब से एक भी पैसा नहीं खर्च होता है।
हेपेटाइटिस का इलाज कैसे होता है?
डॉ नृपेन सैकिया, सीनियर कंसलटेंट, गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी एंड हेपेटोलॉजी, पीएसआरआई अस्पताल बताते है की हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी वायरस आमतौर पर क्रोनिक हेपेटाइटिस का कारण बनता है, जो लीवर सिरोसिस, लीवर कैंसर और मृत्यु तक का कारण बन सकता है। लगभग 4% आबादी हेपेटाइटिस बी वायरस से संक्रमित हैं और 8.5-12 मिलियन लोग भारत में हेपेटाइटिस सी वायरस से संक्रमित हैं। लगभग 30% लीवर सिरोसिस हेपेटाइटिस बी के कारण होता है और 10-12% सिरोसिस भारत में हेपेटाइटिस सी वायरस संक्रमण के कारण होता है। इसलिए हेपेटाइटिस बी एंड सी संबंधित लीवर रोगों की रोकथाम के लिए समय पर बीमारी का पता लगाना और जल्द उपचार अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हेपेटाइटिस या पीलिया का उपचार इस बात पर निर्धारित होता है की आपको किस प्रकार का पीलिया है। या फिर पीलिया कितना पुराना या तीव्र है इस पर निर्भर करता है। जिसको अंग्रेजी भाषा में एक्यूट हेपेटाइटिस और क्रोनिक हेपेटाइटिस कहते हैं।

  • हेपेटाइटिस ए – में आमतौर पर इलाज नहीं होता है। यदि ज्यादा परेशानी होती है तो बेड रेस्ट बताया जाता है। यदि आप उल्टी या दस्त का अनुभव करते हैं, तो कुपोषण या डिहाइड्रेशन को रोकने के लिए एक विशेष डाइट लेने को डॉक्टर बताते हैं। इसके अलावा टीकाकरण से भी हेपेटाइटिस ए के संक्रमण को रोका जा सकता है। बच्चों और बड़ों दोनों के लिए ही टीकाकरण अस्पतालों में उपलब्ध होते हैं।
  • हेपेटाइटिस बी – क्रोनिक हेपेटाइटिस बी का इलाज एंटीवायरल दवाओं के साथ किया जाता है। क्रोनिक हेपेटाइटिस बी का इलाज कई महीनों या वर्षों तक चल सकता है। क्रोनिक हैपेटाइटिस बी के लिए उपचार में नियमित रूप से चिकित्सा मूल्यांकन की आवश्यकता होती है ताकि शरीर में वायरस है या नहीं इसकी निगरानी की जा सके।
  • हेपेटाइटिस सी में दोनों तीव्र और जीर्ण रूपों के इलाज के लिए एंटीवायरल दवाओं का उपयोग किया जाता है। जो लोग क्रोनिक हेपेटाइटिस सी के रोगी हैं उनका कई एंटीवायरल थिरेपीज के मेल से इलाज किया जाता है। नयी दवाओं से इसका इलाज पूर्ण रूप से संभव है। इसे रोकने के लिए कोई टीका नहीं है।
  • हेपेटाइटिस डी का इलाज अल्फा इंटरफेरॉन के साथ किया जाता है। परन्तु अभी तक इसका कोई संभव इलाज नहीं है।
  • हेपेटाइटिस ई – वर्तमान में इसके लिए अभी तक कोई इलाज नहीं है। यह समय के साथ स्वयं ही ठीक हो जाता है। परन्तु अगर इसके रोगी को उलटी हो रही है तो उसे रोकने के लिए दवा दी जाती है।

हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों से लड़ने के लिए आपके लीवर का तंदरुस्त होना बेहद आवश्यक है। कैसे अपनी जीवनशैली में बदलाव करके अपने लीवर को तंदरुस्त बना सकते हैं बताते हैं  डॉ. गौरव जैन, सीनियर कंसलटेंट, इंटरनल मेडिसिन, धर्मशिला नारायणा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल

  • गर्म, ऑयली, मसालेदार, नॉनवेज और हैवी फूड से परहेज करें।
  • रिफाइंड आटा, पॉलिश किए हुए सफेद चावल, डिब्बाबंद और संरक्षित खाद्य पदार्थ, एल्कोहोलिक पेय पदार्थ और ऐरेटिड पेय से दूरी बनाएं।
  • इनके स्थान पर शाकाहारी आहार, पूर्ण गेंहू का आटा, ब्राउन या फिर पार्बोइल्ड चावल, हरी पत्तेदार सब्जियां, पपीता, खीरा, सलाद, नारियल पानी, टमाटर, पालक, भारतीय करौंदे (आंवला), अंगूर, मूली, नींबू, सूखे खजूर, किशमिश, बादाम और इलायची के सेवन की मात्रा बढ़ाएं।
  • पर्याप्त मात्रा में आराम करें।
  • जहां तक संभव हो धूप में या फिर बायलर और भट्टियों के आस पास कार्य ना करें।
  • हेपेटाइटिस से जुड़े लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करे।

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