स्वास्थ्य

कूल्हों के दर्द की अनदेखी पड़ सकती है भारी

आमतौर पर देखा गया है कि भारतीय जोड़ों के दर्द को उम्र से जोड़कर देखते है और इसी वजह से वह इस दर्द को तब तक नजरअंदाज करते रहते है जब तक दर्द गंभीर स्थिति तक न पहुंच जाएं। कुछ ऐसा ही मामला कूल्हे के जोड का है, लोग कूल्हे के दर्द को लापरवाही के चलते शुरुआत में अनदेखा कर देते है और धीरे-धीरे जब दर्द असहनीय हो जाता है तो डाॅक्टर से परामर्श लेते है लेकिन तब तक स्थिति काफी एडवांस स्टेज में पहुंच चुकी होती है। इसलिए समय रहते दर्द का इलाज कराना बहुत जरूरी है। इससे गंभीर जटिलताओं से बचा जा सकता है। नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक एवं ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डाॅ. राजू वैश्य के अनुसार कूल्हे से जुड़ी समस्याओं में सबसे प्रमुख एवास्कुलर निक्रोसिस (एवीएन) है। दुनिया के दूसरे देशों के विपरीत हमारे देश में कूल्हे के जोड़ में दर्द का कारण एवीएन है। एवीएन में कुल्हों की हड्डियों को रक्त नहीं मिल पाता और लगातार रक्त की आपूर्ति न होने की वजह से कुल्हे की हड्डियां क्षतिग्रस्त होने लगती है। रोगी को गंभीर दर्द और विकलांगता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
एवीएन की समस्या बुजुर्गों के साथ-साथ युवा भी दो चार हो रहे है। आमतौर पर युवावस्था में कोई चोट, या ज्वांइट हड्डियों में हटने या स्टिरोइड और दर्द निवारक दवाइयों के कारण एवीएन होने की आशंका रहती है। इस समस्या के लक्षण पनपने में बहुत समय लगता है और शुरुआत में काफी समय तक हल्का दर्द रहता है। इसलिए रोगी इसे नजरअंदाज करते है और जब इसकी गंभीरता का अहसास होता है तो ज्वांइट रिप्लेसमेंट के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
भारत में एवीएन के बढ़ते मामलों के बारे में आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डाॅ. राजू वैश्य कहते है, ‘‘भारत के युवाओं में एवीएन के मामले बहुत ज्यादा बढ़ रहे है और इसी वजह से हिप रिप्लेसमेंट सर्जरियां बढ़ रही है। एवीएन के बढ़ते मामलों का कारण अस्वस्थ जीवनशैली और बुरी आदतें जैसे शराब या ड्रग का सेवन, बाॅडी बिल्डिंग सप्लीमेंट में स्टेराॅयड का इस्तेमाल करना है। कुछ साल पहले तक एवीएन बीमारी कुछ मेडिकल स्थितियों जैसे कैंसर, सिकल सैल, अनीमिया और गोचर बीमारी वाले रोगियों में देखने को मिलती थी लेकिन बदलती जीवनशैली की वजह से भारतीय युवा इस बीमारी की चपेट में आ रहे है।‘‘
एवीएन होने के कारणों में दुर्घटना भी प्रमुख रूप से उभरकर सामने आता है। अकसर बाइकर्स तेज रफ्तार की वजह से दुर्घटनाग्रस्त हो जाते है। ऐसे में अगर चोट उनके कूल्हे पर लग जाएं और समय पर इलाज न कराया जाएं तो भी एवीएन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
ऐसे में अगर समय रहते सही तरीके से कूल्हों का इलाज हो जाएं तो दुर्घटनाग्रस्त रोगी की जिंदगी आसान हो जाती है। दुर्घटना के बाद रिकवरी में अगर मरीज के सभी अंग ठीक तरीके से काम करें तो उसे भी सकारात्मक ऊर्जा का अहसास होता है और इससे उसकी रिकवरी और तेजी से होती है। दुर्घटना में अगर कूल्हे के जोड़ पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हो तो उसे भी रिप्लेस करने का ही सुझाव दिया जाता है।
एवीएन के अलावा कूल्हों के क्षतिग्रस्त होने का कारण आथ्र्राइटिस भी हो सकता है। इसमें रियुमेटोयोड आर्थाइटिस (आरए) के मामले ज्यादा गंभीर हो सकते है। आर ए ओटोइम्यून बीमारी है जिसमें इम्यून सिस्टम शरीर को वायरस और बैक्टीरिया से बचाने की बजाए खुद ही जोड़ों पर अटैक करना शुरू कर देता है। असामान्य इम्यून की वजह से जोड़ों में सूजन आ जाती है जिससे जोड़ क्षतिग्रस्त होने लगते है। असहनीय दर्द और हड्डियों की गंभीर स्थिति में डाॅक्टर प्रत्यारोपण की सलाह देते है।
ज्यादा शराब और ड्रग की वजह से भी कूल्हों पर असर पड़ता है। हाल ही में अमृतसर के किसान राजेंद्र के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। ज्यादा शराब की वजह से राजेंद्र कुमार को एवीएन की समस्या हो गई और उनके दोनों कुल्हे पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए थे। किसान होने के नाते उन्हें रोजाना खेतों में काम करना पड़ता था और कुल्हे के जोड़ में दर्द की वजह से वह काम करने में असमर्थ थे। कुछ महीने बाद उन्हें रोजमर्रा के काम करने में ही दिक्कत होने लगी और दर्द की वजह से उनकी गतिशीलता भी सीमित हो गई।
इस गंभीर स्थिति में डाॅक्टर ने उन्हें प्रत्यारोपण की सलाह दी। इस बारे में डाॅ. राजू वैश्य कहते है, ‘‘ युवा रोगियों के मामले में सक्रिय जिंदगी बिताने के लिए स्थिरता व स्थायित्व दो महत्वपूर्ण मुद्दे होते है। ऐसे में आधुनिक तकनीक से लैस कूल्हे का प्रत्यारोपण सबसे कारगर इलाज उभरकर सामने आता है।‘‘
आजकल आधुनिक तकनीकों ने प्रत्यारोपण को आसान कर दिया है। हाल ही में भारत में कूल्हे की प्रत्यारोपण प्रक्रिया में डुअल मोबेल्टी हिप ज्वाइंट सिस्टम बेहद कारगर साबित हुआ है।
अमेरिकी एफडीए द्वारा प्रमाणित 3तक जेनरेशन डुअल मोबेल्टी हिप सिस्टम द्वारा रिप्लेस किया गया। ये भारत में पहली तरह का हिप सिस्टम है जिसमें हिप ज्वाइंट विकार से जूझ रहे रोगियों को दर्द से निजात दिलाता है, स्थिरता को बढ़ाता है और गतिशीलता की रेंज प्रदान करता है। पारम्परिक हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम में स्थिरता की सीमाएं सीमित थी लेकिन नए हिप प्रत्यारोपण सिस्टम में ये बंदिशे नहीं है।
इस नई तकनीक के महत्व को विस्तार से बताते हुए डाॅ. राजू वैश्य कहते है,‘‘ डुअल मोबेल्टी सिस्टम के लांच होने से हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी को नए आयाम मिले है। इसमें दो बातें बहुत महत्वपूर्ण है, एक आर्टिकुलेषन से गतिशीलता सभी दिशाओं में की जा सकती है और दूसरे पारम्परिक डिजाइन के मुकाबले कृत्रिम ज्वाइंट में घिसाव कम होगा। हिप सिस्टम को ३% प्रौद्योगिकी के साथ को पेटेंट कराया गया है। ३% पहली ऐसी उच्च क्राॅस लिंक पाॅलीइथायलीन है जो पारम्परिक हिप रिप्लेसमेंट प्रत्यारोपण के प्रमुख मुद्दों को हल करती है। प्रत्यारोपण में इस्तेमाल किया जाने वाला पाॅलीइथायलीन नाजुक नहीं होता इसलिए ये बेहतरीन स्थायितत्व प्रदान करता है। इसे बनाने में कम खर्च होता है और प्रत्यारोपण काफी बेहतर है। युवा रोगियों के लिए ये सिस्टम काफी कारगर है क्योंकि इसकी 40-50 साल की लंबी अवधि की स्थिरता है।‘‘
प्राकृतिक कुल्हे का जोड़ दो कारकों से बना होता है – बाॅल और साॅकिट ज्वाइंट। जांघ की हड्डी का ऊपरी सिरा बाॅल के आकार होता है। ये बाॅल के आकार की हड्डी कप के आकार के साॅकिट में फिट बैठ जाती है जिसे कुल्हे की हड्डी में ऐसीटैबुलम नाम दिया गया है। ये बाॅल और साॅकिट जोडों को 360 डिग्री तक घूमने देते है। बाॅल और साॅकिट चिकने पदार्थ कार्टिलेज को संरक्षित करते है। कार्टिलेज घर्षण को कम करता है जिससे गतिषीलता बढ़ती है। कुल्हे के जोड़ में टूट फूट होने से कार्टिलेज खत्म होने लगता है जिससे वह घिसने व रफ होने लगता है और दो हड्डियों के बीच के जोड़ की जगह कम होने लगती है। इससे हड्डियां आपस में घिसने लगती है और कार्टिलेज का बनाने के लिए क्षतिग्रस्त हड्डियां बाहर की तरफ आने लगती है और हड्डियों में गांठ पड् जाती है। इस परिवर्तन से दर्द, अकड़न और गतिशीलता कम होने और पैर की गति सीमित हो जाती है।
कूल्हे का प्रत्यारोपण इस तरह डिजाइन किए गए जो प्राकृतिक हिप ज्वाइंट की ही तरह काम करते है। इस कारण सर्जरी के बाद रोगी आसानी से सीढ़ियां चढ़ उतर सकता है और सभी रोजमर्रा के काम कर सकते है।

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