स्वास्थ्य

पर्सेनेल्टी डिसआर्डर विरासत में भी मिल सकता है …

डाॅ. गौरव गुप्ता
मनोचिकित्सक, तुलसी हेल्थ केयर, नई दिल्ली
पर्सेनेल्टी डिसआर्डर एक प्रकार का मेंटल डिसआर्डर है, जिसमें सोचने, कार्य करने और व्यवहार करने का पैटर्न गड़बड़ा जाता है। इस समस्या से पीडित व्यक्ति को स्थितियों को समझने और उनसे सामंजस्य बैठाने में समस्या आती है, इसके कारण उसके संबंध, सामाजिक गतिविधियां, कार्य और निजी जीवन प्रभावित होता है। पर्सेनेल्टी डिसआर्डर के शिकार कुछ लोग तो समझ ही नहीं पाते कि उन्हें यह समस्या है, उन्हें अपने सोचने का ढंग और व्यवहार सामान्य लगता है और वो दूसरों को दोष देते हैं कि वो उनके साथ सही व्यवहार नहीं कर रहे हैं। पर्सेनेल्टी डिसआर्डर की समस्या आमतौर पर किशोर उम्र या युवावस्था की शुरु आत में होती है, वैसे ये किसी को किसी भी उम्र में हो सकती है।
लक्षण
पर्सेनेल्टी डिसआर्डर को इसके लक्षणों के आधार पर तीन समूह में बांटा गया है। कईं लोगों में एक से अधिक पर्सेनेल्टी डिसआर्डर के लक्षण और संकेत दिखाई दे सकते हैं।
समूह ए
– सिजॉइड पर्सेनेल्टी डिसआर्डर
इस डिसआर्डर से पीडित व्यक्ति को निजी और सामाजिक संबंधों में कोई रूचि नहीं रह जाती है, वो अकेला रहना पसंद करने लगता है। उसे जीवन की गतिविधियों में कोई आनंद नहीं आता।
– पैरानॉइड पर्सेनेल्टी डिसआर्डर
इसमें व्यक्ति दूसरे लोगों और उनके इरादों पर संदेह करने लगता है। उसे ऐसा लगता है कि वो उसे धोखा देने और नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।
– सिजोटायपल पर्सेनेल्टी डिसआर्डर
सिजोटायपल पर्सेनेल्टी डिसआर्डर में व्यक्ति एक खास तरीके से कपड़े पहनने, सोचने, विश्वास करने, बोलने या व्यवहार करने लगता है। उसे विचित्र तरह के अनुभव होने लगते हैं जैसे कोई उसका नाम फुसफुसा रहा है, उसे अपने करीबी लोगों का साथ भी परेशान करने लगता है।
समूह बी
– एंटी सोशल पर्सेनेल्टी डिसआर्डर
इससे पीडित व्यक्ति दूसरों की आवश्यकताओं या भावनाओं का सम्मान नहीं करता है। वो लगातार झूठ बोलता है और आसामाजिक गतिविधियां करने लगता है, उसका व्यवहार आक्रामक और हिंसक हो जाता है। सबसे बड़ी बात तो ये कि उसे अपने कार्यों के लिए कोई पछतावा या आत्मग्लानि अनुभव नहीं होती है।
– बार्डरलाइन पर्सेनेल्टी डिसआॅर्डर
इस डिसआर्डर से पीडित व्यक्ति का व्यवहार आवेगशील और जोखिम भरा हो जाता है, इससे उसके निजी और सामाजिक संबंधों पर प्रभाव पडने लगता है। उसे ऐसा महसूस होने लगता है कि सब उसे छोड़ देंगे वो अकेला रह जाएगा ऐसे में वो खुद को चोट पहुंचाने या आत्महत्या करने की सोचने लगता है, उसे मूड स्विंग की समस्या भी हो जाती है।
– हिस्ट्रिऑनिक पर्सेनेल्टी डिसआर्डर
हिस्ट्रिऑनिक पर्सेनेल्टी डिसआर्डर में व्यक्ति लगातार दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहता है। उसका व्यवहार अत्यधिक भावुक और नाटकीय हो जाता है, उसकी भावनाएं उथली होती हैं और लगातार बदलती रहती हैं। वो कैसा दिखता है इसे लेकर वो बहुत चिंतित रहता है।
– नारसिस्टिक पर्सेनेल्टी डिसआर्डर
इसमें व्यक्ति विश्वास करने लगता है कि वो खास है और दूसरों से अधिक महत्वपूर्ण है। वो दंभी हो जाता है, दूसरों की भावनाओं और आवश्यकताओं की कद्र नहीं करता। अपनी प्रतिभा और उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर आंकने लगता है और लोगों से अपेक्षा करता है कि वो लगातार उसकी प्रशंसा करें और उसे सम्मान दें।
समूह तीन
इस समूह में वो पर्सेनेल्टी डिसआॅर्डर सम्मिलित किए जाते हैं जिनमें व्यक्ति का सोचने का और व्यवहार करने का ढंग उत्तेजना और भय से भर जाता है।
– अवाइडेंट पर्सेनेल्टी डिसआॅर्डर
ऐसा व्यक्ति खुद को दूसरों से कमतर और अनाकर्षक महसूस करने लगता है, उस ये डर रहता है कि लोग उसकी आलोचना करेंगे या उसकी अनदेखी करेंगे, इसलिए वो लोगों से मिलने से कतराता है और अकेला रहना पसंद करने लगता है।
– डिपेंडेंट पर्सेनेल्टी डिसआर्डर
ऐसा व्यक्ति दूसरों पर अत्यधिक निर्भर हो जाता है और उसे महसूस होने लगता है कि दूसरे उसकी देखभाल करें, उसमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है, उसे अपने छोटे से निर्णय के लिए भी दूसरों के आश्वासन की जरूरत पड़ती है। उसकी दूसरों पर निर्भरता इतनी बढ़ जाती है कि वो दूसरों का गलत व्यवहार भी बर्दाश्त करता है।
– ऑब्सेसिव-कम्पल्सिव पर्सेनेल्टी डिसआॅर्डर
इसमें व्यक्ति को किसी भी काम को अत्यधिक परफेक्शन के साथ करने की आदत हो जाती है, जब यह परफेक्शन प्राप्त नहीं होता तो वो तनावग्रस्त हो जाता है। ऐसा व्यक्ति अपने काम के प्रति इतना प्रतिबद्ध होता है कि वो अपने परिवार और दोस्तों की भी नजरअंदाज करने लगता है. उसका व्यवहार कठोर और हठी हो जाता है।
इन बातों का भी रखें ख्याल
आप डॉक्टर से उपचार तो कराएं, यह बहुत जरूरी है, लेकिन उसके साथ ही अगर आप अपनी जीवनशैली में परिवर्तन लाएं और कुछ बातों को ध्यान रखें तो आपकी स्थिति में तेजी से सुधार आ सकता है।
– अपने इलाज में रूचि लें
अपने थेरेपी सेशन स्किप न करें. न ही थेरेपी ट्रीटमेंट को बीच में छोड़े।
– अपनी कंडीशन के बारे में जानें
जब तक आप अपनी स्थिति के बारे में नहीं जानेंगे, तब तक आप अपने उपचार को गंभीरता से नहीं लेंगे। अपने ट्रीटमेंट प्लान से चिपके रहें।
– शारीरिक रूप से सक्रिय रहें
शारीरिक सक्रियता कईं लक्षणों जैसे अवसाद, तनाव और एंग्जाइटी का प्रबंधन करने में सहायता कर सकती है। शारीरिक सक्रियता कुछ साइक्रिएटिक मेडिकेशन के कारण वजन बढने की समस्या से निपटने में भी सहायता करती है। आप वॉकिंग, स्विमिंग, जॉगिंग, गार्डनिंग या अपनी मनपसंद कोई और फिजिकल एक्टिविटी चुन सकते हैं।
– नियमित रूप से चेकअप कराते रहें
नियमित अंतराल पर अपना चेकअप कराते रहें। अगर आप अच्छा अनुभव नहीं कर रहे हैं या कोई नई स्वास्थ्य समस्या हो गई है या दवाईयों के साइड इफेक्ट्स नजर आ रहे हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

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