स्वास्थ्य

प्रसवपूर्व जांच से विभिन्न जन्मजात बीमारियों को रोक सकती है

-उमेश कुमार सिंह
गर्भावस्था महिलाओं के लिए एक खुशनुमा एहसास होता है। इस वक्त महिलाओं को सबसे ज्यादा केयर की जरूरत होती है, इसलिए डॉक्टर के पास उनकी नियमित जांच होना बहुत जरूरी है। इन चेक-अप को प्रसवपूर्व देखभाल कहा जाता है प्रसवपूर्व का मतलब ‘जन्म से पहले’ होता है। इसका अर्थ यह है कि जो टेस्ट शिशु के जन्म से पहले किए जाते हैं उन्हें प्रसवपूर्व टेस्ट कहते हैं। शिशु को स्वस्थ बनाने के लिए नियमित रूप से प्रसवपूर्व चेकअप बहुत जरूरी है। ये नई दिल्ली स्थित 3 एच केयर डॉट इन के संस्थापक और सीईओ डॉ. रुचि गुप्ता का कहना है कि चेक-अप जच्चा और बच्चा दोनों के लिए जोखिमों की पहचान कर उन्हें कम करते हैं। यह माँ को डॉक्टर से किसी भी तरह के प्रश्न पूछने का मौका देता है। महिलाओं को उनकी जीवनशैली, मानसिक स्वास्थ्य, आहार संबंधी सलाह, धूम्रपान छोडने या शराब पीने की आदत को छोड़ने में मदद मिलती है। जैसे ही महिलाओं को पता चलता है कि वह गर्भवती हो सकती है, वो यह टेस्ट करा सकती हैं।

हले अपाइंटमेंट में क्या होता है?
पहले अपाइंटमेंट में मूल रूप से आप डॉक्टर के साथ चर्चा करती हैं, जिसमें आप अपनी प्रेग्नेंसी के बारे में बात कर सकती हैं। डॉक्टर इन सब चीजों की जांच कर सकते हैं-स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे और जोखिम जो मां और बच्चे दोनों को हो सकते हैं। गर्भावस्था का चरण, मां को जो समस्याएं आ रही हैं उसकी जाँच, स्कैन, परीक्षण और चर्चाओं की संख्या हो सकती हैं। बच्चा कब होने वाला है, मां की प्रेग्नेंसी को कितने महीने हुए हैं। मेडिकल हिस्ट्री, सामान्य स्वास्थ्य और पिछली प्रेग्नेंसियों के बारे में पता लगाना। कोई मेडीकेशन ले रही हैं, यह सुनिश्चित करना कि मां मानसिक रूप से ठीक है और किसी तरह के डिप्रेशन का शिकार नहीं है-

  • हाई बल्ड प्रेशर, वजन और मूत्र की जांच करना, रक्त परीक्षण और जांच, स्वस्थ भोजन और जीवन शैली में बदलाव की सलाह।
  • बच्चे के दिल की धडकन को सुनना।
  • पहली तिमाही जांच।
  • घर पर गर्भावस्था परीक्षण।
  • बल्ड ग्रुप और आरएच फैक्टर।
  • एनीमिया की जांच, ब्लड शुगर।
  • हेपेटाइटिस बी स्क्रीनिंग।

डॉ. रुचि गुप्ता का कहना है कि थायरॉयड स्क्रीनिंग के लिए थायरॉयड प्रोफाइल, एचआईवी जर्मन खसरा (रूबेला), सिफलिस, सीएमवी (साइटोमेगालोवायरस), एचएसवी (हर्पीस सिम्प्लेक्स वायरस) और टॉक्सोप्लाज्मोसिस के लिए टीओआरसीएच परीक्षण।

विटामिन डी के स्तर के लिए टेस्ट, डबल मार्कर टेस्ट
यह टेस्ट गर्भावस्था के 11 और 14 सप्ताह में करने को कहा जाता है। यह परीक्षण कुछ विशेष विकारों जैसे कि एडवर्ड्स सिंड्रोम और डाउन सिंड्रोम की प्रारंभिक जानकारी देता है। यह जांच बल्ड टेस्ट करके की जाती है जो मानव कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (एचसीजी) और प्लाज्मा प्रोटीन-ए के स्तर को मापता है जो गर्भावस्था से जुड़ा होता है। एचसीजी एक प्रकार का हार्मोन है जो गर्भावस्था के दौरान नाल द्वारा बनाया जाता है। परीक्षण सारी चीजों को स्पष्ट कर देता है और यहां तक कि एचसीजी की मात्रा का भी पता लगाता है. हार्मोन का निम्न स्तर भी बच्चे के डाउन सिंड्रोम से जुड़ा रहता है।
डॉ. रुचि गुप्ता के अनुसार डाउन सिंड्रोम परीक्षण के दूसरे परीक्षण में बल्ड टेस्ट किया जाता है और बच्चे की गर्दन के पीछे तरल पदार्थ को मापने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जाता है। गर्भ के अंदर सभी शिशुओं के गले में तरल पदार्थ होता है, लेकिन डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में इसकी मात्रा कहीं अधिक होती है। परीक्षण को न्यूचल ट्रांसलूसेंसी’ स्कैन कहा जाता है। यह स्कैन डाउन सिंड्रोम के जोखिम को पहचानने में मदद करता है।

बड़े जोखिम वाली प्रेग्नेंसी के अन्य टेस्ट कुछ इस प्रकार हैं

  • अल्फा-फीटोप्रोटीन (एएफपी)
  • एल्ब्यूमिन के लिए मूत्र परीक्षण
  • कोरियोनिक विलस सैम्पलिंग (सीवीएस)

ये परीक्षण हाई रिस्क वाली प्रेग्नेंसी में गर्भपात के जोखिम को रोकने के लिए किए जाते हैं।
डाउन सिंड्रोम टेस्ट 15 से 20 वें हफ्तों के बीच भी किए जा सकते हैं। अगर पेसेंट पहले तीन महीनों में टेस्ट नहीं करवा पाती है तो डॉक्टर उसे दूसरे तीन महीनों में ये सभी टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। यह टेस्ट भ्रूण के डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होने की स्थिति के जोखिम को दिखाता है। निम्नलिखित टेस्ट…

  • कोरियोनिक विलस सैम्पलिंग (सीवीएस)
  • उल्ववेधन, दूसरी तिमाही परीक्षण

दूसरी तिमाही के कॉम्पलीकेशन्स को देखने के लिए निम्नलिखित परीक्षण किए जाते हैं-
1.जीटीटी (ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट) –
यह टेस्ट गर्भावधि मधुमेह रोगियों के लिए किया जाता है. इस प्रकार का मधुमेह गर्भावस्था के दौरान ही होता है क्योंकि नाल हार्मोन बनाता है जिससे खून में शुगर का लेवल बढ़ जाता है। इसके अलावा अगर अग्न्याशय पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता है, तो तीसरी तिमाही में या इससे पहले गर्भकालीन मधुमेह हो सकता है।

2.गर्भावधि हाइपरटेंशन के लिए बल्ड प्रेशर टेस्ट

  • प्रीक्लेम्पसिया के लिए मूत्र परीक्षण
  • अल्ट्रासाउंड स्तर या एनोमली स्कैन

डाउन सिंड्रोम को नियंत्रित करने के लिए ट्रिपल टेस्ट या चैगुनी टेस्ट यदि रोगी का टेस्ट पॉजिटिव निकलता है और उसे खत्म करने का फैसला करता है। ये प्रक्रिया अधिक दर्दनाक होती है।

3. तीसरी तिमाही टेस्ट
तीसरी तिमाही के टेस्ट को संक्रमण के लिए किया जाता है और यह टेस्ट संभावित संक्रमण और कमियों से बचाता है। तीसरी तिमाही तक पहुंचने से पहले शरीर बीते छह महीनों में कड़ी मेहनत से गुजर चुका होता है। इसमें ये परीक्षण शामिल हैं-

4. एनीमिया चेक करने के लिए बल्ड टेस्ट

  • ग्लूकोस टेस्ट
  • एसटीडी/एचआईवी
  • अल्ट्रासाउंड, यह देखने के लिए कि प्लेसेंटा कहां है और बच्चा कैसे बढ़ रहा है।
  • ग्रूप बी स्ट्रेप्टोकोकस
  • फ्लू और खांसी के लिए टीका

डॉ. रुचि गुप्ता का कहना है कि ये सभी टेस्ट अच्छे और ट्रस्टेड लैब में ही होना चाहिए। हमेशा उन प्रयोगशालाओं में ही जाएं जो नए 3 डी और 4 डी अल्ट्रासाउंड को बढ़ावा देती हैं। 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में गर्भावस्था की जटिलताओं का खतरा अधिक होता है। डॉक्टर उनकी निगरानी करते हुए विशेष ध्यान रखते हैं। पहली तिमाही 35 से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए असुरक्षित चरण है। देर से गर्भधारण से डाउन सिंड्रोम, मां में गर्भकालीन मधुमेह, गर्भपात और समय से पहले जन्म जैसे दोष हो सकते हैं। गर्भावस्था एक बड़ी जिम्मेदारी है। कोई भी काम करने या न करने के लिए डॉक्टर की उचित सलाह ली जानी चाहिए।

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