नहीं बदलती है जिंदगी गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद भी
-डॉ. सुदीप सिंह सचदेव
नेफ्रोजिस्ट (नारायणा सुपर स्पेशियालिटी हॉस्पिटल, गुरुग्राम)
एक समय था जब किडनी प्रत्यारोपण के बारें में सुनते ही लोगों को मानों कपकपी से लग जाती है, लेकिन आज यह एक आम समस्या सी ही लगने लगी है। गुर्दे यानी किडनी, हमारे शरीर के मास्टर कैमिस्ट और होमियोस्टेटिक अंग होते हैं जो कि शरीर के मध्य भाग में स्थित होते हैं और पूरे शरीर को नियंत्रित व संचालित करते हैं। रक्त साफ करने की प्रक्रिया से शरीर में पानी की मात्रा संतुलित करना, रक्तचाप, मधुमेह को नियंत्रित करना, शरीर में से अवशिष्ट व विषैले पदार्थों को मूत्र द्वारा बाहर करना तथा आवश्यक पदार्थ विटामिंस, मिनरल्स, कैल्शियम, पोटैशियम, सोडियम इत्यादि को वापस शरीर में भेज कर इलैक्ट्रोलाइट्स को संतुलित इसका कार्य है। प्रत्येक गुर्दा हृदय से प्रारंभ होने वाली मुख्य रक्त वाहिनी आर्टरी से आने वाली धमनियों के जरिए प्रचुर मात्रा में रक्त की सप्लाई करता है।
कई बार गुर्दे विफल होने की परिस्थिति में गुर्दे ये सभी कार्य करने में असफल हो जाते हैं और शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है। ऐसे में उपचार के कई विकल्प मौजूद हैं, लेकिन अधिकतर लोग गुर्दा प्रत्यारोपण का चुनाव करते है। दानकर्ता द्वारा दान किए गए स्वस्थ गुर्दे को मरीज के पेट के निचले हिस्से में कूल्हे के पास प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में मरीज और दानकर्ता का ब्लड ग्रुप मैचिंग के साथ-साथ कई प्रकार के आवश्यक टेस्ट व टिश्यू मैच किए जाते हैं। दानकर्ता का पूर्ण रूप से स्वस्थ होना अति आवश्यक होता है।
गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए कुछ खास बातों का ख्याल अवश्य रखना चाहिए इसमें आर एच तत्व पाजिटिव या नेगेटिव ब्लड ग्रुप को मिलाने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन, अब कई जगहों पर क्रास-मैच करने वाले गुर्दा प्रत्यारोपण किए जा रहे हैं, लेकिन इन्हें करने के लिए बहुत सारा पैसा, आधुनिक मशीनों और प्लाज्मा एक्सचेंज की जरूरत पड़ती है। इसके बाद भी प्रत्यारोपण का परिणाम उतना अच्छा नहीं होता जितना अच्छा परिणाम मैच करने वाले गुर्दा प्रत्यारोपण में होता है। एक स्वस्थ गुर्दा दो मुख्य स्रोतों से लिया जा सकता है जैसे:- परिवार के सदस्यों के द्वारा : कई बार परिवार के किसी भी सदस्य का ब्लड ग्रुप मरीज से मेल नहीं खाता। ऐसे में दूसरे मरीज के पारिवारिक सदस्यों से मेल खाता हुआ गुर्दा लिया जा सकता है।
इसे स्वैपिंग कहते हैं। गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद मरीज को कम से कम 8 दिनों तक हास्पिटल में रहना पड़ता है जबकि दानकर्ता 3-8 दिनों के बीच कभी भी डिस्चार्ज किया जा सकता है। गुर्दा देने के बाद दानकर्ता पहले की तरह ही स्वस्थ होता है और अपनी पहले जैसी नियमित दिनचर्या अपना सकता है। गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद मरीज भी सामान्य जीवन जीता है और 2-3 महीने के बाद अपने काम पर वापस लौट सकता है गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद का जीवन परिवर्तित जीवन शैली, नियमित दवाईयों, खाने-पीने में परहेज, साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखना, संक्रमण से बचाव आदि पर ही निर्भर करता है। असल में इस रोग के साथ सबसे बड़ी बात यह है कि जब गुर्दा 50 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो जाता है तब इसके लक्षण दिखने लगते हैं और इसके इलाज की सुविधा देश के कुछ चुने हुए शहरों में ही उपलब्ध है। इस लिए कभी भी इसके लक्षण दिखने पर इधर-उधर समय बर्बाद न करें। फौरन प्रमुख चिकित्सा केंद्रों पर संपर्क करें तथा डॉक्टर के दिशा-निर्देश एवं खान-पान में परिवर्तन तथा नियमित जीवन शैली अपनाकर इस बीमारी से राहत पाएं।