लाइफस्टाइलस्वास्थ्य

जब छोटे बच्चों के बोल हमें शर्मिंदा कर दें

-डॉ. संदीप गोविल
मनोचिकित्सक (सरोज सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, नई दिल्ली)
अक्सर आपने लोगों को कहते हुए सुना होगा कि आजकल के बच्चे तो बच्चों की तरह व्यवहार ही नहीं करते। यह बात बिल्कुल सही है कि आज के दौर के बच्चों में वैसी मासूमियत नहीं रही जो उनकी पहचान होती थी। कईं बच्चे तो ऐसी बातें कह देते हैं कि परिवार के लोगों को दूसरों के सामने शर्मिंदा होना पड़ता है। बच्चे अब खिलौनों के बजाय टीवी और मोबाइल से खेलते हैं, इनसे वो ऐसी बातें सीख लेते हैं जो उनकी कच्ची उम्र के हिसाब से सही नहीं होती हैं। एकल परिवार के बढ़ते चलन ने इस समस्या को बढ़ा दिया है। ऐसे में बच्चों के माता-पिता हमेशा घबराए हुए रहते हैं कि कब उनका बच्चा गलत व्यवहार करना शुरू कर दे, वो कहीं जाने और लोगों को अपने घर बुलाने से कतराते हैं।

  • जब बच्चों की बातें आपको कर दें असहज
    जब एक बार बच्चे गलत व्यवहार करना सीख जाते हैं, तो इसका पता नहीं होता है कि वो कब और कहां क्या बोल दें। बच्चे मासूम होते हैं, उन्हें दुनियादारी की समझ तो होती नहीं कि वो तोल-मोल कर बोलें, ऐसे में उन्हें जो मन में आता है वो कह देते हैं।
  • निजी बातें कह देना
    कईं बच्चे परिवार की निजी बातें जैसे माता-पिता के आपसी संबंधों की या परिवार के दूसरे सदस्यों से हुए किसी विवाद के बारे में सबके सामने बता देते हैं। ऐसे में परिवार के बाकी लोगों को शर्मिंदा होना पड़ता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए, बच्चों के सामने केवल उन्हीं बातों पर चर्चा करें जो उनके लिए उपयुक्त हैं।
  • गाली देना
    कुछ बच्चे गाली देना सीख जाते हैं, चूंकि बच्चों की समझ विकसित नहीं होती है न ही उन्हें पता होता है कि गाली देना बुरी बात है, इसलिए वो किसी के भी सामने गाली देने लगते हैं। ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि वो नजर रखें कि बच्चे गाली देना कहां से सीख रहे हैं, कहीं इसके जिम्मेदार वो खुद तो नहीं हैं। कईं परिवारों में गुस्से में गालियां देना सामान्य होता है इनमें अशिक्षित और गरीब तबके के लोग ही नहीं, अमीर और पढ़े-लिखे लोग भी होते हैं।
  • घर की आर्थिक स्थिति के बारें में बोल देना
    घर में कईं तरह की समस्याएं होती हैं, पर लोग समाज में अपना एक स्तर बना के रहते हैं लेकिन कईं बार बच्चे घर की आर्थिक स्थिति की पोल खोल देते हैं। जैसे कईं बार होता है कि घर के हालात ठीक नहीं हैं तो किसी खास फंक्शन के लिए आपने अपनी किसी सहेली की साड़ी या जेवर मांगकर पहन लिए। पार्टी में किसी के तारीफ करने पर आप तो यह बताने में लगी हैं कि आपकी साड़ी और जेवर कितने कीमती और अच्छे हैं लेकिन आपके बच्चे ने सबके सामने कह दिया की मम्मी के पास पैसे नहीं हैं इसलिए वो फलां आंटी से मांगकर पहनी है, तब आपको जो शर्मिंदी उठानी पड़ेगी उसका आप अंदाजा लगा सकती हैं।
  • तेज आवाज में बातें करना
    कईं बच्चे बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते हैं और गुस्सा होने पर जोर-जोर से चिल्लाकर बोलने लगते हैं। घर में आप बर्दाश्त कर लेती हैं और उनकी बात मान लेती हैं इसलिए वो बाहर भी ऐसा ही व्यवहार करने लगते हैं। आप किसी के यहां डिनर पर गईं हैं या किसी को अपने घर आमंत्रित किया है, मेहमानों के सामने अगर आप अपने बच्चे को किसी काम के लिए मना कर रही हैं तो ऐसे में वो अपनी बात मनवाने के लिए चीखने-चिल्लाने लगता है, ऐसे में शर्मिंदी से बचने के लिए न केवल आपको उसकी बात माननी पड़ती है, बल्कि मेहमानों के सामने आपकी इमेज भी खराब होती है।
  • शॉपिंग के लिए जिद करना
    अगर आपका बच्चा मॉल या किसी शॉपिंग सेंटर में कुछ खरीदने की जिद करता है और आप दिलाने से मना करते हैं या उसे आइस्क्रीम खिलाने से मना करते हैं तो वो रोने लगता है और अनाप-शनाप कहने लगता है। कईं बार तो बच्चे इतने उत्तेजित हो जाते हैं कि वो अपनी मां को सबके सामने कहने लगते हैं कि आप गंदी हो, मुझे कुछ नहीं दिलाती और फर्श पर लोटने लगते हैं और आपका अच्छा खासा तमाशा बन जाता है।
  • अपशब्द कहना
    कईं बच्चे इतने बदतमीज होते हैं कि वो घर और बाहर ही नहीं बल्कि स्कूल में शिक्षकों और दूसरे बच्चों को अपशब्द कहने से भी बाज नहीं आते। मोटू, भिखारी, पागल, चोर जैसे अपशब्द बिना सोचे-समझे ही इस्तेमाल कर लेते हैं।

ऐसे ठीक रखें बच्चों का व्यवहार
माता-पिता के लिए बच्चे को जन्म देने से बड़ी जिम्मेदारी उसकी अच्छी परवरिश की है। परिवार को बच्चे की पहली पाठशाला माना जाता है, यह पूरी तरह माता-पिता पर ही निर्भर होता है कि इस पाठशाला में बच्चे क्या सीखें।

  • बचपन से ही अच्छी आदतें डालें
    मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चे के जीवन के पहले छह वर्ष उसके लिये ब्ल्यु प्रिंट होते हैं। ऐसे में माता-पिता के लिए बहुत जरूरी है कि वो बच्चों में अच्छी आदतें डालें, अच्छी आदतें जितनी जल्दी डाली जाएं उतना ही बेहतर रहता है।
  • बच्चों के व्यवहार पर नजर रखें
    घर और बाहर की जिम्मेदारियों में न उलझी रहें। अपने बच्चे की गतिविधियों पर नजर रखें। अगर आपका बच्चा एक भी गलत शब्द इस्तेमाल करे तो उसे समझाएं कि ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना कितना गलत है। बचपन से ही उसे शब्दों का महत्व समझाएं कि एक गलत शब्द या एक गलत व्यवहार किस तरह से आपके और आपके परिवार के लिए शर्मिंदगी का कारण बन सकता है।
  • अच्छे कार्य करने पर प्रोत्साहित करें
    हमेशा याद रखें की अपने बच्चों को बिना शर्त अपना प्रेम और समर्थन दें। बच्चों के साथ समय बिताएं। कोई अच्छ कार्य करने या एक्जाम में अच्छे अंक प्राप्त करने पर उसकी खुलकर सराहना करें। कभी इनाम के तौर पर उसे छोटे-मोटे गिफ्ट देती रहें जैसे टेडी बियर या चॉकलेट या कोई स्वोपट्र्स आइटम आदि। लेकिन अच्छे व्यवहार के लिए बच्चे को लालच न दें, नहीं तो वो अपनी बात मनवाने के लिए बुरा व्यवहार करके आपको ब्लैकमेल करेगा।
  • दोस्तों को चुनने में मदद करें
    अपने बच्चे के स्कूल और आस-पड़ोस के दोस्तों पर नजर रखें। अगर किसी बच्चे का व्यवहार खराब है या उसके घर का माहौल खराब है तो ऐसे बच्चे के साथ अपने बच्चे को न रहने दें। अगर आपका बच्चा कोई गलत बात कह रहा है तो उससे पूछें कि ये सब उसने कहां से सीखा है। अगर आस-पड़ोस के किसी बचचे से सीखा है तो उसके माता-पिता को इस बारे में जरूर बताएं। अगर स्कूल से सीखकर आया है तो पैरेंट्स-टीचर मीटिंग में इस बात पर जरूर चर्चा करें।
  • अपने बच्चे के साथ समय बिताएं
    माता-पिता अपने निजी जीवन में इतने व्यस्त रहते हैं कि उनके पास अपने बच्चों के लिए समय ही नहीं होता। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितनी व्यस्त हैं, अपने बच्चों के लिये समय निकालें, उनके साथ का आनंद लें। याद रखें, बच्चे अपने माता-पिता को देखकर ही सीखते हैं। आपका व्यवहार आपके परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ कैसा है, इसका प्रभाव आपके बच्चे पर बहुत गहरा पड़ता है। बच्चे के सामने हमेशा संयमित भाषा का प्रयोग करें, न उनके सामने परिवार के आपसी झगड़ों की चर्चा करें न ही कोई अश्लील मजाक करें।
  • बच्चे को उत्तरदायित्व लेने दें
    अगर आपके बच्चे के गलत व्यवहार की शिकायत करने के लिए स्कूल प्रशासन आपको बुलाता है तो आप माफी न मांगे बल्कि अपने बच्चे को सॉरी कहने के लिए कहें ताकि वो अपनी गलतियों की जिम्मेदारी लेना सीखे।
  • डे केअर के बजाय घर के बुजुर्गों का साथ दें
    पहले संयुक्त परिवार होने से घर के बुजुर्ग बच्चों के व्यवहार पर नजर रखते थे और उनके गलत व्यवहार और बातों पर उन्हें प्यार से या डांटकर समझाते थे, लेकिन एकल परिवारों के बढ़ते चलन ने बच्चों को परिवार के बड़ों की छत्रछाया से वंचित कर दिया है। अगर संभव हो तो अपने घर के बुजुर्गों को अपने साथ ही रखें। आप डे केयर की मोटी फीस से भी बच जाएंगे और माता-पिता का आशीर्वाद भी आप पर बना रहेगा।

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