राष्ट्रीय

समलैंगिकता को अपराध नहीं करार देने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जुलाई में सुनवाई

नई दिल्ली। समलैंगिकता को अपराध करार देनेवाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को निरस्त करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर क्युरेटिव याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट जुलाई में सुनवाई करेगा। आज धारा 377 को अपराध करार देने के सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले के खिलाफ नाज फाउंडेशन ने अपने क्युरेटिव पिटीशन को वापस ले लिया है। नाज फाउंडेशन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने 2013 के फैसले को पलट दिया है। इसलिए अब उसकी क्युरेटिव पिटीशन का कोई मतलब नहीं है। 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के ही 2013 के दो सदस्यीय बेंच के फैसले को निरस्त कर दिया था। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि हर व्यक्ति की अपनी पहचान है। समाज अब व्यक्तिगत पहचान के लिए तैयार है। हमारा समाज तभी स्वतंत्र होगा जब हम समाज के इन तबकों को भी अपने में शामिल करेंगे। अब हमें सामाजिक और आर्थिक अधिकारों के लिए काम करना चाहिए। कोर्ट ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 मनमाना है। कोर्ट ने कहा था कि एलजीबीटी समुदाय को भी आम लोगों की तरह अधिकार है। उनकी गरिमा का उल्लंघन करने का किसी को अधिकार नहीं है। पांच में से 4 जजों तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, डी वाई चन्दचुड़,रोहिंटन नरीमन और इंदु मल्होत्रा ने अपने अलग-अलग फैसले लिखे थे।

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