जैन समुदाय को दिए वादों का सम्मान करें : झारखंड मुख्यमंत्री से अपील
नई दिल्ली। दुनिया भर में धैर्य, सहिष्णुता और शांति प्रचार करने वाले माहत्मा गांधी की जयंती के जश्न के सप्ताह के अवसर पर, पूरा जैन समुदाय एक साथ आकर, भारत के झारखंड के गिरीडीह जिले में स्थित शिखरजी पर्वत को बचाने के लिए अपील कर रहा है।
शिखरजी पर्वत श्रृंखला या पारसनाथ पर्वत के नाम से मशहूर इस पहाड़ी का आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास, आधुनिक इतिहास की शुरूआत से भी पुराना है। अंतराष्ट्रीय शोध विद्वानों को तो इस आध्यात्मिक पहाड़ी में से 12वी शताब्दी से पुराने संस्कृत में शिलालेख होने के सबूत मिले है।
‘सेव शिखरजी‘ मुहिम, भारत के उस राष्ट्रीय खजाने के आध्यात्मिक महत्व को उजागर करने वाला एक अभियान है, जहां चैबीस में से बीस जैन तीर्थकरों के साथ-साथ कई अन्य भिक्षुओं को हजारों साल पहले मोक्ष प्राप्त हुआ था। आज भी लोग पूरे पारसनाथ पहाड़ी की 27 किमी की परिक्रमा काफी श्रद्धा के साथ करते है।
मधुबन के जंगलों में स्थित इस तीर्थ में लोग आध्यात्मिक जागरूकता का अनुभव कर सकारात्मक और शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहते है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इन खूबसूरत जंगलों को भी उपेक्षित किया जा रहा है। इतना ही नही जंगलों का व्यावसायिक शोषण होने का जोखिम भी है। इसे बचाने के लिए हमें अब कार्य करना होगा।
सितम्बर 2015 में, झारखंड के माननीय मुख्यमंत्री रघुबर दास ने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की थी कि वह शिखर को अंतराष्ट्रीय स्तर पर आध्यात्मिकता और ज्ञान प्राप्ति के स्थान के तौर पर विकसित करेंगे। इसके लिए उन्होने एक जैन प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुऐ, पहाड़ी की पवित्रता को सुरक्षित रखते हुए, उसकी संरचना के साथ छेडछाड़ किए बिना कुछ मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने में दिलचस्पी दिखाई थी।
शिखरजी गिरीराज 20 तीर्थंकरों की निर्वाणभूमि होने के कारण जैनों का पूजा स्थल और आस्था का शीर्ष प्रतीक है। अन्य अनगिनत मुनियों – महंतों ने पहाड पर साधना करके मोक्ष प्राप्त किया है। उनकी विशुद्ध आत्माओं और उनकी अतुलनीय संकल्प-शक्तिओं से इस पावन पहाड़ी के कण कण में आध्यात्मिक स्पंदन प्रवाहित हुआ है। अतः केवल मंदिर की टेहरी नहीं संपूर्ण पहाड और उसका कण कण पवित्र एवं पूजनीय है। अब ऐसी पवित्र भूमि का पुनः निर्माण असंभव है। उसका जतन एवं संरक्षण करना सबका परम कर्तव्य है।
तीन साल हो गये हैं, लेकिन मुख्यमंत्री रघुबर दास की घोषणाएं आज भी लाल फीता शाही और नौकरशाही में उलझी हुई है, जिसे राज्य सरकार की तरफ से कार्यान्वित करने के लिए कोई औपचारिक कार्रवाई नहीं हुई है। सरकार की ओर से शिखरजी को पूजा की जगह घोषित करने में हो रही देरी की वजह से इस तीर्थ स्थान का वाणिज्यिक शोषण और शहरीकरण हो रहा है, जिसकी वजह से यह स्थान अपनी आध्यात्मिक पवित्रता खो रहा है।
शिखरजी को पूजा की जगह घोषित कर देने से इस क्षेत्र को निम्नलिखित लाभ होंगे :
- राष्ट्र का आध्यात्मिक निवास और सांस्कृतिक खजाने का संरक्षण होगा।
- शांति और सहिष्णुता के संदेश को बढ़ावा मिलेगा।
- इतिहास को सुरक्षित कर इसे बर्बाद करने से बचाया जा सकेगा।
- मधुबन वन सीमा के वन्यजीवन की रक्षा में भी सहायता करेगा।
- वन और वन्य जीवन को स्थानीय लोगों की आजीविका का साधन बना, स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
- मानव जाति को आध्यात्मिक रूप से निर्वाण प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
हम झारखंड सरकार से अपील करते हैं कि साल 2015 में किए गए अपने वादों को पूरा करते हुए शिखरजी की पवित्रता को बचाने कि लिए इसे तुरंत पूजा की जगह घोषित करे।