धर्म

कुम्भ मेला : विश्व के सबसे विशाल धार्मिक समारोह की विरासत और प्रासंगिकता

भारत और पूरी दुनिया से हिन्दू धर्म के हजारों साधु-संत और लाखों लोग तीन साल में एक बार भारत में हरिद्वार, इलाहाबाद, नासिक और उज्जैन में से किसी एक जगह एकत्र होते हैं। वे आध्यात्मिक गुरुओं से आशीर्वाद प्राप्त करने, पवित्र नदी में डुबकी लगाने और विश्व में आध्यात्मिकता के सबसे बड़े त्यौहार: कुम्भ मेला का आनंद उठाने आते हैं। इस त्यौहार के महत्व के बारे में किसी को उत्सुकता हो सकती है लेकिन अलग-अलग लोग अलग-अलग कारणों से यहाँ आते हैं। उन सभी को एक सूत्र में पिरोने वाली चीज है रूपांतरण यानी बदलाव जो उन्हें कुम्भ मेला में प्राप्त होता है।
इलाहाबाद में चल रहे कुम्भ मेले (15 जनवरी को आरम्भ हुआ यह त्यौहार 4 मार्च 2019 को समाप्त होगा) में 150 मिलियन लोगों के आने की उम्मीद है। चलिए, जानते हैं कि किन कारणों से यह पूरे विश्व में सर्वाधिक प्रतीक्षित समारोहों में एक है। इस महान मेले के बारे में पूरी जानकारी के लिए 24 फरवरी को 8 बजे सोनी बीबीसी अर्थ पर प्रसारित होने वाला खास शो, ‘कुम्भ मेला’ देखें।

1. कुम्भ मेला का इतिहास तब से आरम्भ होता है जब धरती पर देवताओं का वास हुआ करता था। ‘कुम्भ’ शब्द का अभिप्राय अमरत्व के पेय से भरे ‘अमृत कलश’ से है। ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के बीच देवताओं और दैत्यों को अमृत से भरा एक कुम्भ मिला था। दोनों ही इसका मंथन और अमरत्व प्राप्त करने हेतु इस पर अधिकार करना चाह रहे थे। परिणामस्वरूप दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। भगवान विष्णु सुन्दर नर्तकी, मोहिनी के रूप में प्रकट हुए और मध्यस्थता करने लगे। जब तक दैत्यों को पता चला कि अधिकाँश अमृत देवताओं को दे दिया गया है, तब तक युद्ध स्थल से मोहिनी अदृश्य हो गयी। कहा जाता है कि उसने अमृत-भरे पात्र को भारत में चार अलग-अलग स्थानों पर रखा था और यह वही चार स्थान हैं जहां विश्व के सबसे विशाल धार्मिक और आध्यात्मिक समारोह: कुम्भ मेला का आयोजन होता है।

2. विशिष्ट स्थान और वर्ष का निर्धारण ग्रहों की विशिष्ट दशा और इनके ज्योतिषीय विवेचन के द्वारा किया जाता है। कुम्भ मेला नियत तिथियों को आयोजित होता है जब मान्यता के अनुसार पावन नदियों का जल अमृत बन जाता है। इसलिए, कुम्भ मेला के समय पावन नदी में डुबकी लगाना शुभ माना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि इससे पाप धुल जाते हैं और व्यक्ति में जीवन के संकटों के लिए नई जीवनी शक्ति का संचार हो जाता है। अतः, कुम्भ मेले की तिथियों का निर्णय करने के पूर्व सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति की स्थितियों पर विचार किया जाता हो।

3. कुम्भ मेले में अनेक साधु-संत भी एकत्र होते हैं। मान्यता है कि ये पवित्र साधु-संत अपनी आध्यात्मिक शक्तियों से जल को निर्मल कर देते हैं और गंगा को उसकी स्वाभाविक शुद्धता से ऊर्जावान बना देते हैं। इसलिए, यह मान्यता है कि गंगा अपने जल में डुबकी लगाने वाले लोगों के पाप हर लेती है।

4. कुम्भ मेले में एक आम दृश्य होता है ‘नागा’ बाबाओं का। वे सांसारिक सुखों से विरक्त और पूरी तरह स्वार्थरहित एवं भयमुक्त होते है। वे साधु-संतों के विभिन्न अखाड़ों या धर्म समाज से सम्बद्ध होते हैं और हिमालय से लेकर देश के अन्य दूर-दराज के कोने-कोने से हरिद्वार पहुँचते हैं। तीर्थ पुरोहित भी कुम्भ मेले का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। ये पुजारी होते हैं जो हिन्दू परिवारों के संस्कार और अनुष्ठानों का सम्पादन करते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि इससे स्वर्गवासी आत्माओं को जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। अनेक लोगों का मानना है कि गंगा में अंतिम संस्कार करने से मोक्ष प्राप्त होता है क्योंकि व्यक्ति पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है।

5. अनेक लोगों के लिए कुम्भ मेला अपनी आत्मखोज का, आत्मनिरीक्षण और मानवता की सामूहिक चेतना का अनुभव करने का अवसर होता है। ऐसा इसलिए कि पावन मनुष्य आधुनिक काल को 21वीं शताब्दी की जलवायु परिवर्तन, वनोन्मूलन, विलुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा, आदि जैसी समस्याओं और चिंताओं का समाधान का रास्ता दिखाते हैं। संतों द्वारा इन समस्याओं पर काम करने के अनेक रोचक उदारहण है?

  • पेशे से न्यूरोसर्जन, सोहम बाबा जलवायु परिवर्तन, वनोन्मूलन और प्रदूषित नदियों की सफाई के मुद्दे को सक्रियातापूर्वक प्रचारित करते रहे हैं। उन्होंने पौधारोपण और वन संरक्षण का प्रचार करके ग्लोदबल वार्मिंग के लिए आन्दोलन आरम्भ किया है।
  • अकिको माता और पायलट बाबा विश्व शान्ति का सन्देश फैलाते हैं और उनके आशीर्वाद लेने के लिए पूरे विश्व से अनेक अनुयायी कुम्भ मेले में पहुँचते हैं।
  • इन संतों का मानना है कि कुम्भ मेला विश्व के दूसरे हिस्सों के लोगों से जुड़ने का और विभिन्न समस्याओं पर उनके पास उपलब्ध समाधाओं के बारे में जानने का एक उत्तम मार्ग है, क्योंकि ग्लोयबल वार्मिंग किसी एक व्यक्ति या राष्ट्र की नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक गंभीर समस्या है और हमें सामूहिक रूप से सुधारात्मक उपाय करने की आवश्यकता है।

6. इस समय तीन प्रमुख गृह सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति के बड़े प्रभाव के कारण कुम्भ मेले का ब्रह्मांडीय प्रभाव होता है। ग्रहों की दशा से प्राणियों पर विद्युत-चुम्बकीय प्रभाव पड़ता है और खनिजों पर लौकिक गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव भी अति स्पष्ट है। अधिक ऊंचाई पर विद्युतीय शक्ति अपने सर्वोच्च स्तर पर होती है और इस प्रकार पर्वतों से होकर बहने वाली नदियों में अलग प्रकार की आण्विक संरचना हो जाती है। ठीक जड़ी-बूटियों के समान, इस जल का भी औषधीय प्रभाव होता है। इस कारण से विशिष्ट मौसम में कुम्भ मेला दुनिया भर के लोगों के लिए एक बड़ा आकर्षण बन जाता है।

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