धर्मसंपादकीय

क्या महर्षि वाल्मीकि जी हीन भावना के शिकार हुए?

महर्षि वाल्मीकि जयंती

‘‘जात ना पूछियो साधु की पूछ लीजियो ज्ञान’’ ये पंक्तियां अक्सर सुनने को जहां-तहां मिल ही जाती है। लेकिन आश्चर्य होता है कि जिस भारतीय समाज में महान व्यक्तियों को भगवान की संज्ञा दी जाती है वहीं कुछ लोग भगवान वाल्मीकि जी की जाति जैसे गैर जरूरी विषय को लेकर चर्चा करने में लगे हुए हैं व इस विषय को कोर्ट तक खींच कर ले गये । हालांकि हम सब यह भी मानते हैं कि व्यक्ति जन्म से नही कर्म से महान होता है।
वाल्मीकि शब्द सुनते ही लोग अपने मन में एक जाति विशेष की तस्वीर बना लेते हैं एवं इसके साथ शुरू होता है उपेक्षा, उत्पीड़न एवं तिरस्कार का सफर। ज्यादातर क्षेत्र/बस्तियाँ जहाँ पर वाल्मीकि समाज के लोग अधिक संख्या में रहते हैं वे अपने को भगवान वाल्मीकि जी के अनुयायी मानते हैं परन्तु साथ में यह भी कहते हैं कि वे उपेक्षित दलित हैं और इस कारण कई वाल्मीकि समाज के लोग यह कहने में भी चूकते कि यदि वाल्मीकि जी जन्म से ब्राह्मण थे तो क्या हम ब्राह्मण हो गये। परन्तु सच्चाई यह है कि जो भी व्यक्ति भगवान वाल्मीकि जी में अपनी आस्था रखता है और उनका अनुयायी है तो उन्हे वाल्मीकि ही कहा जायेगा जैसा कि मुस्लिम, ईसाई, जैन, और बुद्धिस्ट आदि आदि समुदाय के मामले में माना जाता है। परन्तु महर्षि वाल्मीकि जी के मामले मे उनके अनुयायीयों को दलित मान लिया गया है। ऐसा भी महसूस होता है कि रामायण में सीता वनवास, लव-कुश और अश्वमेध युद्ध प्रकरण ने महर्षि वाल्मीकि जी को एक तरह से हाशिये पर ला दिया और यह उपेक्षा देखी जा सकती है, जब वाल्मीकि मन्दिरों में तो आपको भगवान राम, हनुमान आदि के चित्र/ मूर्तियां
देखने को मिल जायेगी परन्तु राम मन्दिर या हनुमान मन्दिर में महर्षि वाल्मीकि जी का चित्र/मूर्ति देखने को नहीं मिलेगी। हालांकि कुछ सामाजिक कार्याकर्ताओं और साधु संतो ने महर्षि वाल्मीकि जी से सम्बन्धित स्थानों को सम्भाला और वाल्मीकि समाज से जुडे़ लोगों की ओर ध्यान दिया।
भारतीय स्वत्रंता आन्दोलन के दौरान जब ब्रिटिश सरकार भारत का विभाजन धर्म एवं जाति के नाम पर कर रही थी उस दौरान कुछ आर्य समाजी और सामाजिक नेताओं ने सफाई कर्मी समूदाय को यह बताने में सफल हुऐ कि आप लोग भगवान वाल्मीकि जी के वंशज हो एवं इस कारण उनके अनुयायी हो और वाल्मीकि हो। उत्तर भारत में इस कारण अनके सफाई कर्मी/दलित लोग वाल्मीकि समाज से जुडे़।
महात्मा गांधी जी ने भी इन्हें हरिजन कह कर भगवान के अधिक नजदीक बताया। इन कारणों से महर्षि वाल्मीकि जी एक तरह से सफाई कर्मियों-अछूतों के मसीहा बन गए और उच्च जाति के लोगों के लिए वे भी दलित श्रेणी में चले गए। इन सभी कारणों से महर्षि वाल्मीकि से जुडे़ ऐतिहासिक स्थानों का ना तो विकास हुआ और ना ही सरकारी योजनाओं का उनके नाम पर नामकरण हुआ। इन्ही सब कारणों से वाल्मीकि समाज के लोग भी अपने को हाशिये पर ही मानते हैं। आश्चर्य तो जब होता है कि सारे वाल्मीकि समाज के लोगो को सफाईकर्मी ही मान लिया जाता है।
दक्षिण भारत में बडी संख्या में वाल्मीकि समाज के लोग रहते हैं और वहां पर सफाई सम्बन्धि कार्यों से उनका कोई लेना-देना नहीं है । सफाई का काम तो सभी जगह होता है चाहे वो देश हो या विदेश ।
वाल्मीकि समाज एवं अछूत समझी जाने वाली जातियों के सम्पूर्ण विकास की तरफ अभी तक कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया । यही कारण है कि आज भी वाल्मीकि समाज के लाखों पढे लिखे युवा बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं । यही कारण है कि वाल्मीकि समाज आज भी उसी निराशा एवं अन्धकार में एक रोशनी की तालाश कर रहा है। राजनेतिक दलों ने भी इनके विकास में योगदान नहीं दिया और सत्ता एवं राजनीति में इनकी संख्या ना के बराबर है। देश में अनेक विश्वविद्यालयों के नाम जिन व्यक्तियों के नाम पर रखे गये हैं पर उनका शिक्षा एवं शिक्षण से कोई सरोकार नहीं है। महान आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जी जो भगवान राम एवं उनके दोनो पुत्रों लव एवं कुश के गुरू भी रहे एवं सस्कृत भाषा के महान विद्वान रहे, उनके नाम से कोई केन्द्रीय विश्वविद्यालय या संस्थान की स्थापना नहीं की गई। दो वर्ष पूर्व हरियाणा के मुख्यमंत्री ने उनके नाम से राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की थी। पंजाब और कर्नाटक में राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय में वाल्मीकि पीठ की स्थापना की गई है। पंजाब सरकार ने पिछले वर्ष भगवान वाल्मीकि तीर्थ का विशाल मन्दिर- सरोवर की स्थापना की। कर्नाटक विधानसभा क्षेत्र में महर्षि वाल्मीकि की विशाल मूर्ति की स्थापना की गई है। परन्तु भगवान वाल्मीकि की जन्म-कर्म भूमि उत्तर प्रदेश में महर्षि वाल्मीकि से जुडे ऐतिहासिक स्थानों की दुर्दशा है जैसे चित्रकूट में वाल्मीकि आश्रम। उत्तर भारत के अनेक राज्यों में वाल्मीकि समाज के लोगो के साथ दुराचार की घटनायें होती रही हैं। इन कारणों से वाल्मीकि समाज के लोग अपने को उपेक्षित मानते रहें हैं। पर उज्जवल भविष्य की आशाएंे जरूर वाल्मीकि समाज के लोगों को चेतना और विकास की ओर ले जायेगी और महर्षि वाल्मीकि जी को भी वही स्थान और सम्मान प्राप्त होगा जैसा कि अन्य महान विद्वानों को प्राप्त है।

– नेत राम नारायण
पूर्व वरिष्ठ अधिकारी एवं सामाजिक कार्यकर्ता

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