धर्म

दूसरा रोजा सिखाता है कि अपने ईमान को पक्का कर गुस्से और लालच पर काबू रखो

रोजा ईमान की कसावट है। रोजा सच्चाई की तरावट और दुनियावी ख्वाहिशों पर रुकावट है। दिल अल्लाह के जिक्र की ख्वाहिश कर रहा है तो रोजा इस ख्वाहिश को गति देता है और ईमान को नेकी की खाद और पाकीजगी का पानी देता है। लेकिन रोजा रखने पर दिल दुनिया की ख्वाहिश करता है तो रोजा इस पर रुकावट पैदा करता है।
पवित्र रमजान में अल्लाह का फरमान है कि ऐ कुरआन पाक के मानने वालों रोजा तुम पर फर्ज है। रोजे को समझना सबसे बड़ी बात है। रोजे को समझना यानी रोजे से जुड़े एहतियात बरतना और गुस्से/लालच/हवस पर काबू रखना ही सच्चा रोजा है।
सुबह सेहरी करके रोजा तो रख लिया मगर जबान से झूठ बोलते रहे, दिमाग से गलत सोचते रहे, हाथों से गलत काम करते रहे, पांवों से गलत जगह जाते रहे, आंखों से बुरा देखते रहे, जिस्म से गलत हरकतें करते रहे, जहन खुराफात में लगाते रहे तो ऐसा रोजा, रोजा न रहकर सिर्फ भूखा-प्यासा रहना ही होता है। रोजा ख्वाहिशों पर काबू करने का नाम है। दूसरा रोजा
शफाअत और इनाम है। रोजा सब्र और संयम का पैगाम है।

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