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गुरुग्राम में 85 हजार से अधिक लेाग मानसिक रोगों के शिकार

गुरुग्राम। देश और दुनिया की पहचान बने गुरुग्राम में करीब 85 हजार से अधिक लेाग विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों से ग्रसित है। जिसका मुख्य कारण बदलता समय और बदलती जीवनशैली के साथ हमारी पारपंरिक रुढ़ीवादी परंपरांए मानी गई है। यह जानकारी संबध हैल्थ फाउंडेशन (एसएचएफ) की और से अंतरराष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य दिवस सप्ताह के दौरान आयेाजित कार्यक्रम में सामने आई।
संबध हैल्थ फाउंडेशन (एसएचएफ) की ट्रस्टी रीता सेठ ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य दिवस देशभर में मनाया जाता है। लेकिन इस दिन सभी को मानसिक रोगियों का सम्मान करने का संकल्प लेना चाहिए, ताकि इस प्रकार के दिवस की सार्थकता सिद्व हो सके। मानसिक रोगियेां को मान सम्मान मिलना चाहिए ये उनका अधिकार है। एसएचएफ की और से 4 अक्टूबर से 10 अक्टूबर 2018 तक अंतरराष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जा रहा है।

गुरुग्राम में 85,000 लोग मानसिक रूप से बीमार
उन्होेने बताया कि एक अनुमान और सर्वेक्षण के अनुसार गुरुग्राम में 85,000 (10 प्रतिशत) लोग मानसिक रूप से बीमार हैं। वर्ष 2016 के आंकड़ों के अनुसार यंहा की आबादी करीब नौ लाख है। इस दिशा में सबसे जरूरी और कारगर उपाय है मानसिक रोगियों का इलाज करने वाले डॉक्टरों और अन्य पेशेवरों का संवेदीकृत करना, क्योंकि ऐसे रोगियों को सिर्फ दवा से स्वस्थ नहीं किया जा सकता। उन्हें दवा के साथ-साथ उचित देखभाल और उचित व्यवहार करने वाले लेाग भी होने चाहिए।

भारत में मानसिक बीमारी से 15 करोड़ लोग पीड़ित
निमहंस, बैंगलोर द्वारा किए गए नवीनतम मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2016) के अनुसार भारत में मानसिक बीमारी 15 करोड़ लोगों पीड़ित हैं। सर्वेक्षण के अनुसार पाया गया है कि इतनी भारी संख्या में मानसिक रागियों के इलाज और देखभाल के लिए सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। लेकिन इलाज की स्थिति का इसी से पता चलता है कि देश में लगभग 5,000 मनोचिकित्सक ही है। इसके अलावा देखभाल और अन्य कार्यों के लिए आवश्यक अन्य मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या मनोचिकित्सकों की संख्या से काफी कम है। ऐसे हालात में समस्या का एकमात्र समाधान प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के साथ मानसिक स्वास्थ्य को जोड़ना है।

विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन
अंतरराष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य दिवस सप्ताह के तहत पैरामैडिकल स्टाॅफ, मानसिक रोग पर आधारित नुक्कड़ नाटक, मानसिक रोग पर विभिन्न स्कूलों के बच्चों के साथ जागरुकता कार्यक्रम, गुरुग्राम गांव में मानसिक रोग पर जगारुकता रैली, गुड़गांव के सभी पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) से एमओ (चिकित्सा अधिकारी) का मानसिक स्वास्थ्य संवेदीकरण कार्यक्रम इत्यादि का आयोजन किया गया। इन सभी कार्यक्रमों में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 की भी जानकारी दी गई।
गुरुग्राम की मनोचिकित्सक डॉ वानी जैन ने मानसिक रोग चिकित्सकेंा, आगंनबाड़ी कार्यकर्ताअेां को कार्यक्रम के दौरान बताया कि मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में पंचायत स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की संवेदनशीलता मानसिक बीमारी के बारे में चुप्पी तोड़ने में सराहनीय कदम है। उन्होंने कहा कि मानसिक रोगियों की पहचान करने के लिए संवेदनशीलता, उपचार के लिए उन्हें लाने के तरीके और प्रभावी ढंग से उनके साथ संवाद करने के तरीकों के बारे में तकनीकी जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण पीएचसी के समर्थन के साथ निरंतर जारी रहना चाहिए ताकि इससे मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों की धारणा में परिवर्तन हो सके और लोगों को उपचार और सामाजिक सहायता के लिए आगे के लिए प्रोत्साहित किया जा सके, ताकि वे अपना जीवन पूरी तरह से जी सकें।

मानसिक रोग एक नजर
देश भर में मानसिक रोग को समाज में एक कलंक के रूप में देखा जाता था और समझा जाता था कि यह एक लाइलाज बीमारी है। इस कारण रोगियों को समाज में तो ऐेसे रोगियों को परेशानी झेलनी ही पड़ती थी रोगियों के परिवारों के लिए भी उनकी देखभाल करना बहुत मुश्किल का काम हेाता था। बहुत दिनों की बात न भी करें तो अभी भी हम समाचारेंां में ऐसे रोगियों की यातना और परेशानी भरी जिंदगी के बारे में पढ़ते ही रहते हैं। कई ऐसे रोगियों को उनके परिवारों द्वारा घर में बंद करके या फिर जंजीरों में बांध कर रखने की खबरें आज भी आती हैं। समाज का एक बड़ा वर्ग अभी भी जागरूकता और चिकित्सा की कमी के कारण, ऐसे रोगियों को कलंक मानता है। हकीकत यह है कि अन्य बीमारियों की तरह ही मानसिक रोग भी एक तरह की बीमारी है। मानसिक रोगियों को भी इलाज और उचित देखभाल की आवश्यकता है। अन्य बीमारियों कही तरह समय पर उचित इलाज और देखभाल इस पर काबू पाया जा सकता है।
इलाज की नई खोजों और सर्वेक्षणों के बाद यह पाया गया है कि समय पर इसका न पता लगने और उचित देखभाल न होने से स्थिति भयावह हो जाती है। समय पर इलाज न होने के पीछे समाज का ऐसे रोगियों के प्रति लापरवाहीपूर्ण और रोगियों पर ही दोषारोपण एक बहुत बड़ा कारण है। इस कारण रोगी अपनी व्यथा न तो परिवार में और न समाज में व्यक्त कर पाता है। एसे में उसे समय पर इलाज मुहैया नहीं हो पाता लेकिन समाचार माध्यमों और चिकित्सा जगत के प्रचार प्रसार तथा सरकारी और गैरसरकारी प्रयासों के बाद अब समाज की मानसिकता और स्थिति दोनों में सुधार होने लगा है और ऐसे रोगियों की देखभाल और इलाज दोनों मामलों में सकारात्मक परिणाम देखने को मिलने लगे हैं।

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम
संबध हैल्थ फाउंडेशन (एसएचएफ) के ट्रस्टी राजीव अग्रवाल ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 के अध्याय 5 में मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के अधिकार (धारा 18 और उपधारा 5) में दिए गए हैं। इन अधिकारों में सरकार द्वारा संचालित सभी स्वास्थ्य कार्यक्रमों में प्राथमिक, माध्यमिक, तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल सहित सभी स्तरों पर मानसिक स्वास्थ्य सेवा सेवाओं को एकीकृत करने का प्रावधान किया गया है। अधिनियम समुदाय में मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को परिवारों के साथ या समुदाया में रहने का समर्थन करता है।

विकलांग लोगों के मानवाधिकारों को पहचानने, संरक्षित करने और बढ़ावा देने के दृष्टिकोण से भारत अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, यूएनसीआरपीडी का एक सदस्य राज्य है। यूएनसीआरपीडी के दायरे में मानसिक बीमारी या मनो-सामाजिक विकलांग लोगों को भी शामिल किया गया है। यह सामाजिक मॉडल को मान्यता देता है जो विकलांगता को पीड़ित व्यक्तियों की त्रुटि और पर्यावरणीय बाधाएं जो लोगों के बीच बातचीत के दौरान उत्पन्न होता हैं। जिससे समाज में उनकी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी को दूसरों की बराबरी के आधार पर बाधित करता है।
यूएनसीआरपीडी को मंजूरी देने वाले सदस्य राज्यों को विकलांग व्यक्तियों से संबंधित अपने घरेलू कानूनों में संशोधन करना आवश्यक है ताकि वे यूएनसीआरपीडी के प्रावधान के अनुरूप हो सकें। भारत में 29 मई, 2018 को लागू एमएचसीए 2017 इसके तहत अपने दायित्वों को पूरा कर रहा है।
एमएचसीए मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के इलाज और देखभाल के लिए अधिकार आधारित दृष्टिकोण द्वारा एक आदर्श बदलाव है। यह मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच बनाने के लिए सभी लोगों के अधिकार को मान्यता देता है। इसका मूल रूप से मतलब है कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को अलग-अलग सेवा के रूप में प्रदान नहीं किया जाएगा बल्कि मौजूदा सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के विभिन्न स्तरों में प्रदान किया जाएगा।

फिल्मी हस्तियां भी है इसकी शिकार
इस दिशा में दीपिका पादुकोण और इलियाना डी क्रूज द्वारा सार्वजनिक की गई अपनी वास्तविक बीमारी और उसके विरुद्ध उनके संघर्ष की कहानी, इस तथ्य का शानदार उदाहरण है कि लोगों की पूरी जिंदगी जीने की इच्छा सीमित नहीं है। हममें से प्रत्येक व्यक्ति इस कलंक को कम करने के लिए कदम उठा सकता है और मानसिक स्वास्थ्य को अच्छे स्वास्थ्य के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में देखना शुरू कर सकता है।

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