स्वास्थ्य

आओ… मिलकर लड़े मधुमेह से

डायबिटीज़ एक ऐसा रोग है, जिसमें आपका शरीर उस भोजन का समुचित रूप से उपयोग नहीं कर पाता, जिसे आप ऊर्जा प्राप्त करने के लिए खाते हैं । कोषाडुओं को जीवित रहने तथा विकसित होने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जब भोजन करते हैं तब यह ऊर्जा के एक रूप मे विखंडित हो जाता है, जिसे ग्लूकोज़ कहते है। ग्लूकोज़ शर्करा का ही दूसरा नाम है। ग्लूकोज़ रक्त में जाता है और रक्त शर्करा बढ़ जाती है । इंसुलिन एक ऐसा हॉर्मोन है जो शरीर में अग्न्याशय (पैनक्रियाज़) में बनता है । यह ग्लूकोज़ को रक्त से कोषाडुओं में पहुँचाने में सहायक होता है, जिससे शरीर, इसका ऊर्जा हेतु उपयोग कर सके। इंसुलिन के बिना जीवित रहना संभव नहीं है । डायबिटीज के मरीजों में आँखों, गुर्दों, मस्तिष्क, हृदय के क्षतिग्रस्त होने से इनके गंभीर, जटिल, घातक रोग का खतरा बढ़ जाता है
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ नयुट्रीशन(एनआईएन) के द्वारा भारतवर्ष में की गयी स्टडी के मुताबिक डायबिटीज का प्रसार महिलओं में 19% तक पाया गया है। इसका कारण मोटापे, शारीरिक निष्िक्रयता और हय्पेर्लिप्देमिया है। इसके अलावा हाइपरटेंशन अर्बन महिलओं में 26% से 31% बड गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2017 वर्ल्ड डायबिटीज डे की थीम भी ‘वूमेन एंड डायबिटीज – आवर राइट टू हैल्थी फ्यूचर’ रखी गयी है
डब्लूएचओ के मुताबिक 80% डायबिटीज़ से डेथ निम्न और मध्यम आय प्रदेशो में होती है और यह परियोज करती है यह आंकड़े 2030 तक दुगने हो सकते है। यह भी अनुमान लगाया गया है 2030 तक टाइप-2 डायबिटीज़ 285 से बड़कर 438 मिलियन हो सकते है। इसके अलावा, इंडिया में यह 58% से बढ़ेगा जो 2010 में 51 मिलियन था और 2030 में 87 मिलियन पहुँच सकता है। विचार-विमर्श एक तरफ है, पर यह हमारी फंडामेंटल ड्यूटी है की हम डायबिटीज की पूरी जानकारी रखें।
डायबिटिज के प्रकार
•टाइप 1 डायबिटीज : इस प्रकार की देबेटेस में शरीर इन्सुलिन बनाना बंद कर देता है। ऐसे में मरीज को शरीर के बाहर से इंसुलिन देनी पड़ती है, इसे इन्सुलिन-डिपेंडेंट डायबिटीज मेलिटस, आई.डी.डी.एम भी कहते हैं

•टाइप 2 डायबिटीज : टाइप २ डायबिटीज में शरीर में सेल्स प्रोड्यूस हो रही इंसुलिन पर प्रतिक्रिया नहीं करते। इसे नॉन-इन्सुलिन-डिपेंडेंट डायबिटीज मेलिटस,एन.आई.डी.डी.ऍम भी कहते हैं

•गेस्टेशनल डायबिटीज : ये उन महिलाओं को होता है जो गर्भवती हों और उन्हें पहले कभी डायबिटीज की शिकायत न रही हो। प्रेगनेंसी के दौरान खून में ग्लूकोज़ की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाने के कारण होता है।

डायबिटीज़ के कारण एवं लक्षण
अनुवांशिकता टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज़ दोनों प्रकार में जि़म्मेदार हो सकती है, अगर किसी के माता-पिता डायबिटीज़ से कभी ग्रस्त रहे है तो उन्हें डायबिटीज होने का खतरा ज्यादा होता है क्युकी यह अनुवांशिक बीमारी है। इसके अलावा इन्सुलिन हार्मोन्स का कम निर्माण और खून में शुगर का अधिक होना भी डायबिटीज का एक प्रमुख कारण है, साथ ही मोटापा बढ़ना भी डायबिटीज का एक मुख्य कारक है।
अगर वज़न बहुत बढ़ा हुआ है या बीपी बहुत हाई है और कॉलेस्ट्रॉल भी संतुलित नहीं है तो डायबिटीज़ होने का खतरा कई अधिक हो जाता है। डॉ साकेत कांत, सीनियर एंडोक्रिनोलॉजिस्ट, श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट के अनुसार डायबिटीज से ग्रस्त व्यक्ति यदि इसके कुछ लक्षणों को ध्यान में रखे तो इस बीमारी का पता स्वयं कर सकता हैं, डायबिटीज से ग्रस्त व्यक्ति में प्रायः निम्न लक्षण देखे जा सकते है! पेशाब का बार-बार आना, दृष्टि में धुंधलापन, ज्यादा प्यास का लगना, त्वचा पर खुजली होना, ज्यादा थकान महसूस होना, असामान्य तरीके से भूख का लगना, वज़न में असामान्य गिरावट आ जाना, हल्के-फुल्के घाव लगने पर भी उसके भरने में ज़्यादा समय लगना, आदि।
कुछ आवश्यक जानकारी
– टाइप 2 डायबिटीज से ग्रस्त मरीज़ों की उम्र स्वास्थ्य लोगों की अपेक्षा 5 – 10 साल कम हो जाती है।
– टाइप 2 डायबिटीज सबसे ज्यादा होने वाली डायबिटीज है।
– जरुरी नहीं है की डायबिटीज ज्यादा उम्र के लोगो में ही हो, बच्चे भी इसका शिकार बन्न सकते है।
– भारत में, इलाज ना करा पाने के कारण हर साल करीब 27000 बच्चे डायबिटीज की वजह से मर जाते हैं।
– जीवनशैली में सही परिवर्तन से डायबिटीज के दुष्परिणाम को 80 प्रतिशत तक रोक जा सकता है डायबिटीज एक अनुवांशिक बिमारी है, जिसका मतलब यदि परिवार में पहले किसी को ये बिमारी रही हो तो आपको भी हो सकती है।
– भारत में हर 5 में से 1 व्यक्ति डायबिटीज से प्रभावित है।
अगर डायबिटीज कंट्रोल ना कि जाये तो ये हार्ट-अटैक, ब्लाइंडनेस, स्ट्रोक (आघात), अथवा किडनी फेलियर जैसी जानलेवा बिमारी को भी जन्म दे सकती है।
मधुमेह और आयुर्वेद
आयुर्वेद में भी डायबिटीज को मधुमेह कहा जाता है। जहाँ मधु का मतलब है ‘शहद’ और मेह का अर्थ है ‘मूत्र’। आयुर्वेद मधुमेह के 20 प्रकार को दिखाता है जिनमें से 4 वात यानि हवा के कारण, 6 पित्त का परिणाम है, और 10 कफ के कारण होता है। आयुर्वेद में मधुमेह एक ऐसी बीमारी नहीं है जिसका इलाज दवाओं या सही आहार से नहीं किया जा सकता।
आयुर्वेद में मधुमेह का उपचार जो की आधुनिक चिकित्सा के खिलाफ होता है वह न सिर्फ शरीर में चीनी के स्तर को संतुलित करके शरीर में ऊर्जा पैदा करने के उद्देश्य से है बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि आगे कोई जटिलता नहीं आएगी।
इस बीमारी के लिए आयुर्वेदिक उपचार व्यक्ति की जीवन शैली में एक संपूर्ण परिवर्तन पर आधारित है।
आहार और जीवन शैली
आयुर्वेदाचार्य डॉ प्रताप चौहान, (जीवा आयुर्वेदा) का कहना है कि सही दिनचर्या और जीवन शैली में कुछ परिवर्तन कर के मधुमेह जैसे भयानक रोग से बचा जा सकता है, इसके लिए खान-पान में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है! घरेलू तरीके से मधुमेह से बचा जा सकता है।
– गेहूं की रोटी,पास्ता,भूरे चावल इत्यादि का सेवन करना चाहिए|
– दूध के साथ तैयार पनीर और दही लिया जा सकता है।
– लहसुन, प्याज, करेला, पालक, कच्चा केला, और काले बेर का प्रयोग करें|
– मीठा, खट्टा, और नमकीन खाद्य पदार्थ, आलू, शकरकंद, और, भारी तेल और मसालेदार भोजन से बचें|
– अनानास, अंगूर, आम, आदि मीठे फलों से बचें ।
– प्रतिदिन 30-40 मिनट तक व्यायाम करे ।
– दिन के समय सोने से बचे।

-शबनम नबी

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