Tuesday, May 14, 2024
धर्मसैर सपाटा

सेठ सांवलिया जी मंदिर( राजस्थान )

-डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
पर्यटन लेखक, कोटा

भारत के कृष्ण मंदिरों में आज राजस्थान में सेठ सांवलिया जी का मंदिर भी देशवासियों की श्रृद्धा और आस्था के साथ – साथ पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया है।भगवान कृष्ण को समर्पित सेठ सांवलिया जी का मंदिर चित्तौडगढ़ से उदयपुर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 27-48 (स्वर्ण चतुर्भुज सड़क योजना) पर मंडफिया में स्थित प्राचीन एवं अधुनातन धर्म क्षेत्र है।

  • मुख्य मंदिर मंडफिया में है जहां सबसे छोटी मूर्ति प्रतिष्ठित की गई जो कृष्णधाम के रूप में विख्यात है। यह मंदिर चित्तौडगढ़ रेलवे स्टेशन से 41 किलोमीटर तथा उदयपुर के डबोक एयरपोर्ट 65 किलोमीटर दूरी पर है।मंडफिया में स्थित सांवलिया सेठ मंदिर की स्थापत्य एवं मूर्तिकला देखते ही बनती है। अनेक कोनोें से मंदिर की कारीगरी पुरी के जगन्नाथ मंदिर, देलवाड़ा के मंदिर एवं रणकपुर मंदिरों के सदृश्य प्रतीत होती है। मंदिर अत्यंत कलात्मक होने से पर्यटकों के भी आकर्षण का केंद्र बन गया है। सांवलिया सेठ के ये मंदिर जन श्रृद्धा और जनआस्था का प्रबल केन्द्र बन गये हैं।
  • सांवलिया सेठ का दूसरा मंदिर भादसौडा-बागुंड चैराहें पर स्थित है, जहां मंझली मूर्ति प्रतिष्ठापित की गई है। यहीं पर मूर्तियां प्रकट होने के कारण इसे प्राकट्य मंदिर भी कहा जाता है। तीसरा मंदिर भादसौडा कस्बे में स्थित है, जो सबसे पुराना माना जाता है, यहां सबसे बड़ी मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया, इसे सांवलिया सेठ के प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है। इन मंदिरों का निर्माण मेवाड़ राजपरिवार के भींडर ठिकाने की ओर से करवाया गया था। कालान्तर में तीनों मंदिरों का विस्तार किया गया।

प्रचलित मान्यता के अनुसार खुदाई में प्राप्त प्रतिमाओं का सम्बंध मीरा बाई से बताया जाता है। प्रचलित कथानक के अनुसार सांवलिया सेठ मीरा बाई के वहीं गिरधर गोपाल हैं जिनकी वे पूजा करती थी। मीरा बाई संत महात्माओं की जमात में इन मूर्तियों के साथ भ्रमणशील रहती थी। ऐसी ही एक जमात दयाराम नामक संत की थी, जिनके पास ये मूर्तियां साथ रहती थी। कहा जाता है कि जब औरंगजेब की मुगल सेना मंदिरों को तोड़ रही थी और मुगल सेना को मेवाड़ पहुंचने पर इन मूर्तियों के बारे में पता चला तो दयाराम ने इन्हें बागुंड-भादसौडा के खुले मैदान में एक वट वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर पधरा दिया था। समय बीतने के साथ संत दयाराम का देवलोकगमन हो गया। भोलाराम गुर्जर जो एक चरवाह था को 1840 में स्वप्न में इन्हीं मूर्तियों के हुए दर्शन के मुताबित भादसौडा -बागुंड गांव की सीमा पर खुदाई करने पर कृष्ण स्वरूप श्री सांवलिया सेठ की चार मूर्तियां प्रकट हुई। तीन मूर्तियों की तीन मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठा करवाई गई। खुदाई करते समय एक मूर्ति खण्डित हो जाने से उसे वहीं पधरा दिया गया।

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