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मेदांता हॉस्पिटल गुरुग्राम में एडवांस्ड स्टेज के सर्विकल कैंसर के इलाज में एक बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए एक इनोवेटिव ब्रेकीथेरेपी डिवाईस, माओलो का पेटेंट कराया गया

गुरुग्राम। अंतिम स्टेज के सर्विकल कैंसर के इलाज में एक बड़ी प्रगति हासिल करते हुए ग्लोबल हैल्थकेयर लीडर, मेदांता को अपने इनोवेटिव मेदांता एंटीरियर ओब्लीक लेटरल ओब्लीक (माओलो) टैंपलेट के लिए पेटेंट प्राप्त हुआ है। इसकी अवधारणा मेदांता गुरुग्राम के डॉ. सुसोवन बनर्जी, एसोसिएट डायरेक्टर ने तैयार की, तथा इसका विकास उन्होंने डॉ. तेजिंदर कटारिया, चेयरपर्सन, डिवीज़न ऑफ रेडियेशन ऑन्कोलॉजी, कैंसर इंस्टीट्यूट और मेदांता मेडिकल फिज़िक्स टीम के सहयोग से किया। माओलो से 100 सीसी (क्यूबिक सेंटीमीटर) और उससे बड़े ट्यूमर का इलाज भी किया जा सकता है, जबकि बाजार में उपलब्ध इंट्राकैविटरी एप्लीकेटर्स केवल 36 सीसी या उससे कम आकार के ट्यूमर का इलाज करने में ही प्रभावशाली होते हैं।
यह इनोवेशन सर्विकल कैंसर के इलाज में एक बड़ी प्रगति है, जो भारत में पाया जाने वाला महिलाओं का दूसरा सबसे आम कैंसर है। बीमारी से पहले के चरण में टीके और पैप स्मियर टेस्ट द्वारा 98 प्रतिशत तक रोका जा सकने वाला तथा शुरुआती चरण में 95 प्रतिशत तक सफल इलाज के बावजूद सर्विकल कैंसर दो तिहाई मरीजों की मौत का कारण बनता है क्योंकि निदान में विलंब के कारण यह बड़ा और भारी ट्यूमर बन जाता है, जो लेटरल पेल्विक वॉल तक फैल जाता है।
मेदांता इंस्टीट्यूशनल रिव्यू बोर्ड और स्वतंत्र एथिक्स कमिटी द्वारा अनुमोदित माओलो एक हाई-प्रेसिज़न, पेशेंट-फ्रेंडली एप्लीकेटर है, जो पेल्विस के विशाल हिस्से में इमेज-गाईडेड एडैप्टिव ब्रेकीथेरेपी कर सकता है, जो पहले कमर्शियल रूप से उपलब्ध इंट्राकैविटरी टैंपलेट द्वारा संभव नहीं होता था। यद्यपि इंटरस्टिशियल और इंट्राकैविटरी एप्लीकेशंस के साथ कुछ डिवाईस पिछले दशक से बाजार में उपलब्ध हैं, पर वो मरीजों के लिए बहुत असुविधाजनक हैं।
ब्रेकीथेरेपी को प्लेज़ियोथेरेपी भी कहा जाता है। इसमें रेडिएशन का स्रोत त्वचा की सतह, म्यूकोसा, टिश्यू के अंदर या कैविटी में ट्यूमर के करीब रखा जाता है। इसमें बाहरी बीम रेडियेशन थेरेपी, जिसमें शरीर के बाहर से ट्यूमर पर उच्च ऊर्जा की एक्स-रे (रेडियेशन) डाली जाती हैं, के मुकाबले छोटे से क्षेत्र पर उच्च रेडियेशन डाला जाता है। ब्रेकीथेरेपी का उपयोग सन 1930 से मुँह या जीभ के कैंसर, सॉफ्ट टिश्यू सरकोमा (अंगों के संरक्षण के लिए) और कैंसर सर्विक्स का इलाज करने के लिए किया जा रहा है और इसके काफी अच्छे परिणाम मिल रहे हैं।
डॉ. तेजिंदर कटारिया, चेयरपर्सन, रेडियेशन ऑन्कोलॉजी, कैंसर इंस्टीट्यूट, मेदांता ने कहा, ‘‘भारत में कमर्शियल रूप से उपलब्ध इंटरस्टिशियल और इंट्राकैविटरी कॉम्बो एप्लीकेटर्स भारी हैं, और सीमित पहुँच रखते हैं। उन्हें असेंबल करने के लिए समय, प्रशिक्षण व कौशल लगता है क्योंकि वो कई सारे कंपोनेंट्स में आते हैं और उन्हें मरीज की स्किन पर सिलकर ही लगाया जा सकता है, जिसकी वजह से वो असुविधाजनक होते हैं। इनके लिए सामान्य और स्पाईनल निश्चेतक की अवधि भी बढ़ सकती है, दर्द के लिए दवाईयाँ देने की जरूरत पड़ती है, और अस्पताल में ज्यादा समय तक भर्ती रहना पड़ता है।’’
माओलो ने इस सभी चुनौतियों का हल पेश किया है। यह उन मरीजों के लिए आशा की किरण के रूप में आया है, जिनका कैंसर एडवांस्ड चरण में पहुँच गया है, और जिनमें कीमोरेडियेशन या पारंपरिक ब्रेकीथेरेपी द्वारा पूरा इलाज होने के बाद भी कैंसर दोबारा होने की संभावना काफी ज्यादा है, खासकर लेटरल पैरामीट्रिया के मामले में। इस तरह कैंसर दोबारा होने को सर्जरी या कीमोथेरेपी द्वारा नहीं बचाया जा सकता है।’’
माओलो की अवधारणा खासकर एडवांस्ड चरण में पहुँच चुके सर्विकल कैंसर के मरीजों के लिए तैयार की गई, ताकि वो लंबे समय तक बीमारी-मुक्त जीवन व्यतीत कर सकें।
डॉ. सुसोवन बनर्जी, एसोसिएट डायरेक्टर, रेडियेशन ऑन्कोलॉजी, मेदांता ने इस डिवाईस की प्रेरणा के बारे में कहा, ‘‘बाजार में उपलब्ध एप्लीकेटर्स भारी और इस्तेमाल में मुश्किल हैं, उनमें बीमारी के बड़े वॉल्यूम के लिए अपर्याप्त ज्योमेट्रिकल कवरेज मिलता है, जिसकी वजह से बीमारी दोबारा होने की संभावना रहती है। इसलिए एक ऐसी डिवाईस का डिज़ाईन करने की जरूरत थी, जो इस क्लिनिकल जरूरत के लिए लोकल समाधान प्रदान कर सके।’’
डॉ. बनर्जी ने कहा, ‘‘माओलो एक डिस्क के आकार की डिवाईस है, जिसके द्वारा सबसे ज्यादा संख्या में कैथरर्स तीन दिशाओं में लगाए जा सकते हैं। इसके इसी डिज़ाईन के कारण यह निदान में सामने आने वाले कुछ सबसे बड़े ट्यूमर्स के लिए भी प्रभावशाली है। इस सिंगल-पीस टेंपलेट की बेहतर टेक्नोलॉजी के कारण इसे असेंबल करने की जरूरत नहीं पड़ती, इसलिए टेक्निकल स्टाफ द्वारा इसका उपयोग बहुत आसान है, और त्रुटि का मार्जिन कम हो जाता है। सिलेंड्रिकल होने के कारण माओलो को योनि में सुरक्षित रूप से रखा जा सकता है, जिसके कारण यह काफी आरामदायक है और विपरीत प्रभावों, जैसे ज्यादा रक्तस्राव, दर्द, बेचैनी, और ज्योमेट्रिकल असममिति (स्थान से चूकने), तथा ऐसी समस्याओं को दूर करता है, जिनके कारण प्रक्रिया को बीच में रोकना पड़ सकता है।’’
माओलो टैंपलेट का प्रोटोटाईप मेदांता स्टैंडर्ड ऑफ केयर पूरा करने के लिए अनेक 3डी साईमुलेशन चलाने के बाद निर्मित हुआ। यह एक डिवाईस में इंट्राकैविटरी और इंटरस्टिशियल एप्लीकेशन की प्रभावशीलता बढ़ाता है।
डॉ. नरेश त्रेहान, चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर, मेदांता ने कहा, ‘‘मेदांता में हम सबसे ज्यादा प्राथमिकता अपने मरीज के स्वास्थ्य को देते हैं। माओलो टैंपलेट से उच्च गुणवत्ता की मेडिकल टेक्नोलॉजी का विकास करने की हमारी प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है, जो मरीजों को बेहतर परिणाम प्रदान कर सके। यह पेटेंट न केवल मेदांता के लिए एक कीर्तिमान है, बल्कि भारत में सर्विकल कैंसर के इलाज में एक महत्वपूर्ण प्रगति भी है। हम इनोवेट करते हुए ऐसे समाधान प्रदान करते रहेंगे जो हमारे समुदायों की जरूरतों को पूरा कर सकें।’’
माओलो डिवाईस के विकास और पेटेंट से हैल्थकेयर में इनोवेशन की मेदांता की प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है। यह सहयोगपूर्ण प्रयासों, विस्तृत शोध, और गहन परीक्षण के परिणामस्वरूप विकसित हुआ है। माओलो द्वारा इंट्राकैविटरी और इंटरस्टिशियल एप्लीकेशन सिंगल, यूज़र-फ्रेंडली इंस्ट्रूमेंट में इंटीग्रेट करने से खासकर भारत में सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में गायनेकोलॉजिकल ब्रेकीथेरेपी में सुधार आएगा।

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