लम्बर कैनल स्टेनोसिस का नवीनतम इलाज
लम्बर कैनल स्टेनोसिस 65 वर्ष से अधिक की आयु वर्ग में सबसे सामान्य डायग्नोसिस है, जिसमें स्पाइनल सर्जरी की आवश्यकता होती है। इसका डायग्नोसिस उतना ही सामान्य है जितना घुटनों का ऑस्टियोआर्थराइटिस। इस स्थिति में, टूट-फूट के कारण हुए परिवर्तनों के कारण, लम्बर स्पाइनल कैनाल संकरी हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप वो तंत्रिकाएं जो निचले पैरों के साथ ही यूरिनरी ब्लैडर और बॉउल को सप्लाय करती हैं प्रभावित होती हैं। इस प्रकार के रोगियों को चलने और खड़े होने में समस्या आती है (क्योंकि इन स्थितियों में स्पाइनल कैनल सबसे संकरी होती है) लेकिन बैठने और आगे की ओर झुकने में यह बेहतर हो जाता है (क्यों कि इन स्थितियों में स्पाइनल कैनाल चैड़ी हो जाती है) यह स्थिति न्यूरोजेनिक क्लाउडिकेशन कहलाती है। गंभीर मामलों में, तंत्रिका तंत्र संबंधी गड़बडियां हो जाती हैं, इनमें संवेदनशीलता बदल जाना, कमजोरी, चलते समय संतुलन नहीं बना पाना और इसके साथ ही यूरिनरी और बॉउल की असंगतता जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
नई दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल न्यूरो एंड स्पाइन डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डाॅ. सतनाम सिंह छाबड़ा का कहना है कि इस स्थिति का उपचार डिकम्प्रेशन कहलाता है। इसमें कैनल को खोला जाता है और तंत्रिकाओं को स्वतंत्र निर्बाध किया जाता है, इस स्थिति के लिये सामान्यता ओपन सर्जरियां और माइक्रोलम्बर डिकम्प्रेशन सर्जरियां की जाती हैं। ओपन सर्जरी जो लैमिनेक्टोमी के नाम से प्रसिद्ध है इसमें लंबे-लंबे कट लगाये जाते हैं, अनावश्यक रूप से सहारा देने वाली हड्डियों को निकाला जाता है, जिससे निशान छूट जाते हैं और चिपकने से ‘पोस्ट-लैमिनेक्टोमी मेम्ब्रेन’ के निर्माण के कारण, अस्पताल में रहने का समय बढ़ जाता है और कईं मामलों में पीठ की सर्जरी के असफल होने के कारण शरीर का संतुलन गड़बड़ा जाता है जिसके कारण स्पाइन को स्थिर करने के लिये दूसरी सर्जरी की आवश्यकता होती है।
हम इस स्थिति का उपचार ‘माइक्रोएंडोस्कोपिक डिकम्प्रेशन’ तकनीक के द्वारा कर रहे हैं जिसमें विशेषरूप से निर्मित ट्ब्यूलर रिट्रैक्टर का उपयोग डिकम्प्रेशन के लिये किया जाता है. इस ट्यूब का व्यास 18 मिमि होता है और यह एक की-होल सर्जरी है। इसमें दायीं और बायीं दोनों नर्व रूट के साथ ही पूरे ड्युरॉल सैक का डिकम्प्रेशन एकमात्र की-होल के द्वारा किया जाता है जिसमें मुलायम उतकों और बोनी कोलैटरल को कोई क्षति नहीं पहुंचती है, इसके कईं लाभ हैं। सबसे पहले विशेषज्ञ डॉक्टरों के द्वारा इस तकनीक का उपयोग अत्यधिक कुशलतापूर्वक किया जाता है। इसमें कॉस्मेटिक सर्जरी की भी कुछ विशेषताएं हैं, इसमें पडने वाला निशान मुश्किल से 1.5-2 से.मी. का होता है और एक सामान्य खरोच के समान दिखाई देता है एक लंबे भद्दे निशान के रूप में नहीं जो लैमिनेक्टोमी के पश्चात् दिखाई देता है। चूंकि इसमें मांसपेशियों और हड्डियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है, इसलिये कमर की यह सर्जरी काफी सुरक्षित है। इसमें ओपन सर्जरी की तुलना में घावों से उठने वाली दर्द की टीसों को कम करने के लिये पेनकीलर की आवश्यकता भी कम होती है। यहां तक कि सर्जरी के कुछ घंटो पश्चात् ही रोगी को घावों में कोई दर्द अनुभव नहीं होता है, इसमें उतकों को इतना कम नुकसान पहुंचता है कि रोगी के मेटाबॉलिक कार्यों पर कोई दबाव नहीं पड़ता है जैसा की बड़ी सर्जरियों के पश्चात् पड़ता है। ये अधिकतर मरीज उम्रदराज होते हैं जो अक्सर डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, हृदय रोगों आदि जैसी समस्याओं से भी पीड़ित होते हैं। इस प्रक्रिया में बहुत कम समय लगता है, ये दर्द रहित होती हैं, इसलिये इसे ठीक होने में भी कम समय लगता है। मोटे रोगियों में, सर्जरी से बहुत अंतर पड़ता है। मोटे लोगों में घाव भरने में समस्या आती है, क्योंकि उनकी स्पाइन बहुत गहरी होती है। 6-7 इंच की गहराई में पहुंचने के लिये लंबा काटना पड़ता है।
डाॅ. सतनाम सिंह छाबड़ा का कहना है कि इन रोगियों में, पूरी प्रक्रिया एक की-होल के उपयोग के द्वारा पूरी की जाती है (इस स्थिति वाले बहुत सारे मरीज मोटे होते हैं क्योंकि क्लाउडीकेशन पेन के कारण ये चल नहीं पाते हैं और इस कारण उनका भार बढ़ जाता है)। इस प्रक्रिया में रक्त कम निकलता है। वो रचनाएं जिनके कारण स्टेनोसिस होता है केवल उन्हें ही निकाला जाता है और हड्डियों, मांसपेशियों तथा लिगामेंट्स को कोई क्षति नहीं पहुंचाई जाती है। सर्जरी के कुछ घंटो पश्चात् ही रोगी चल-फिर सकता है और अगले ही दिन घर जा सकता है। ड्रेसिंग भी वॉटरपू्रफ की जाती है ताकि रोगी के लिये जल्दी से जल्दी नहाना संभव हो सके।