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कृषि संकट को दूर करने के लिए वर्षा आधारित कृषि को पुनर्जीवित करने पर राष्ट्रीय सम्मेलन

नई दिल्ली। रिवाइटलाइजिंग रेनफेड एग्रीकल्चर नेटवर्क (आरआरए-एन) ने राष्ट्रीय वर्षा क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए), कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार और राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (मैनेज) के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर पर सम्मेलन का आयोजन किया। नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) में 14 और 15 फरवरी को ‘रिवाइटलाइजिंग रेनफेड एग्रीकल्चर- रिस्ट्रक्चरिंग पॉलिसी एंड पब्लिक इन्वेस्टमेंट टू एड्रेस एग्रेरियन क्राइसिस’ विषय पर यह सम्मेलन आयोजित हुआ।
वर्षा आधारित कृषि पर दो दिवसीय सम्मेलन में देशभर के 450 से अधिक किसानों, नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिभागियों ने इस दौरान अपने अनुभव साझा किए और कृषि संकट को दूर करने के लिए वर्षा आधारित कृषि के लिए नीतिगत प्राथमिकताओं पर बात की।
इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य वर्षा आधारित कृषि से जुड़े विषयों पर चर्चा, आम सहमति बनाना और केंद्र व राज्य के स्तर पर नीतियों और कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता पर बल देना है। इस दौरान सम्मेलन का फोकस वर्षा आधारित कृषि को राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे के रूप में पहचान दिलाना था।
उद्घाटन और अन्य सत्रों के अलावा विचारोत्तेजक सम्मेलन के दौरान विभिन्न विषयों पर आधारित सत्र हुए। दो दिन तक एग्रोइकोलॉजी एंड लिविंग सॉइल्स- द पॉलिसी प्रॉब्लम, रेनफेड एग्रीकल्चर के लिए ऑल्टरनेटिव बजटरी फ्रेमवर्क, रेनफेड एग्रीकल्चर में ड्रॉट एनिमल यूज – पोटेंशियल एंड पॉलिसी इम्पर्टिव्स और इवॉल्विंग एप्रोप्रिएट सीड सिस्टम फॉर क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर टू स्टिमुलेट ग्रोथ जैसे विषयों पर सत्र आयोजित हुए।
राष्ट्रीय वर्षा क्षेत्र प्राधिकरण (2012) के अनुसार, भारत में 593 जिलों में से 499 जिलों में बारिश होती है। वर्षा आधारित क्षेत्र खाद्य उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं – देश में 89% ज्वार-बाजरा-जौ, 88% दालें, 73% कपास, 69% तेल बीज, और 40% चावल का उत्पादन वर्षा पर आधारित खेतों में ही होता है। देश में वर्षा वाले क्षेत्र में ही 64% मवेशी, 74% भेड़ और 78% बकरियां हैं, जो भारत में खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
आरआरए नेटवर्क के राष्ट्रीय समन्वयक श्री सब्यसाची दास ने कहा, “भारत वर्षा आधारित कृषि में क्षेत्रफल और उपज के मूल्य दोनों में पहले स्थान पर है। 60% से अधिक किसान अपनी आजीविका के लिए वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर हैं। वर्षों से वर्षा आधारित क्षेत्रों में किसानों को जलवायु परिवर्तन, फसलों की विफलता जैसी कई प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐतिहासिक रूप से वर्षा आधारित कृषि को नीति और सार्वजनिक निवेश के मामले में असंतुलन का सामना करना पड़ता है।”
दो दिवसीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए श्री दास ने कहा कि सार्वजनिक निवेश के मामले में कई वर्षों से असंतुलन रहा है। नीति निर्माताओं और शिक्षाविदों का ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने बताया कि 2003-2004 और 2012-2013 के बीच चावल और गेहूं की एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर खरीद पर 5,40,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, जबकि वर्षा आधारित उपज जैसे- मोटे अनाज, बाजरा और दालों जैसी फसलों पर इसी अवधि में सरकारी खर्च महज 3,200 करोड़ रुपए था। ”
2010-2011 और 2013-2014 के बीच उर्वरक सब्सिडी पर खर्च की गई राशि 2,16,400 करोड़ रुपये थी, जबकि इसी अवधि के दौरान वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम पर सिर्फ 65,600 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
राष्ट्रीय वर्षा आधारित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) के सीईओ और किसानों की आय दोगुनी करने के लिए गठित समिति के अध्यक्ष डॉ. अशोक दलवई, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के संयुक्त संचालक श्री मनोज आहूजा, ग्रामीण आजीविका, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, ग्रामीण विकास मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुश्री लीला जौहरी, नीति आयोग के सदस्य प्रो रमेश चंद और अर्घ्यम की संस्थापक-अध्यक्ष सुश्री रोहिणी नीलेकणी ने भी इस अवसर पर अपनी बात की।
भारत के लगभग 61ः किसान वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर हैं और 55% सकल फसल क्षेत्र वर्षा आधारित कृषि के अंतर्गत आता है। साथ ही देश के 86 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में वर्षा आधारित कृषि होती है, जो दुनिया में सबसे अधिक है। यदि किसी क्षेत्र में 40% से कम क्षेत्र में सिंचाई होती है तो उसे वर्षा आधारित कृषि के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में उत्पादन प्रणालियों, प्राकृतिक संसाधनों और लोगों की आजीविका का वर्षा आधारित कृषि के साथ एक गहरा संबंध है।
आरआरए नेटवर्क और इसके सदस्यों ने कई राज्य सरकारों के साथ मिलकर यह दिखाया है कि उपयुक्त पॉलिसी फ्रेमवर्क द्वारा समर्थित व्यापक निवेश से वर्षा आधारित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण परिवर्तन आ सकता है।

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