संपादकीय

एक सुझाव : यत्र-तत्र-सर्वत्र केसरिया-केसरिया

व्यंग्य

समाचार है कि ट्रेनों में महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिए रेलवे ने छः सुझाव दिए हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण सुझाव यह है कि लेडीज कम्पार्टमेंट का रंग केसरिया हो। केसरिया रंग होने से महिलाओं में वीरता और साहस जागेगा, वहीं पुरूषों में बलिदान और शिष्टता की भावना आएगी। रेलवे का सुझाव तो अच्छा है, देश में विद्वजनों की कमी नहीं है, बहुत विद्या पाये लोग हैं, यहाँ मैं बुद्धिमान शब्द का प्रयोग नहीं कर रहा हूँ। विद्वान हैं तभी तो एक से बढ़कर एक सुझाव आ जाते हैं और उन्हें कार्यरूप भी दे दिया जाता है। यही विद्वान तो सरकार में, सरकारी विभागों में सिरमौर बने बैठे हैं। ये खाते ही इस बात का है कि नये-नये विचार पैदा करें, उन्हें परोसे और आजमाने के लिए सरकार के हवाले कर दें लेकिन मुझे लगता है कि इन सुझावों में उनसे कहीं कोई कमी रह गई है जिसे पूरा करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ ताकि उनके सुझाये काम आधे-अधूरे न रहे।
उनके सुझाए कम्पार्टमेंट के केसरिया रंग से ही काम पूरा नहीं हो सकता बल्कि सभी रेलवे यात्रियों के लिए यात्रा के दौरान केसरिया वस्त्र धारण करने की अनिवार्यता होना चाहिए। केसरिया वस्त्र पहनने से बालिका और महिला यात्रियों में वीरता और साहस उत्पन्न होगा और वे कु-दृष्टि रखने वालों का डटकर सामना कर सकेंगी। इसी प्रकार से पुरूष सहयात्रियों के लिए भी केसरिया वस्त्र की अनिवार्यता की जाने से उनकी दृष्टि पवित्र और भावना नेक हो जाएगी। उनमें शिष्टता का गुण आ जाएगा। हाँ, आप यह प्रश्न कर सकते हैं कि यात्रियों के लिए ही केसरिया वस्त्रों की अनिवार्यता कर देने से महिलाओं की सुरक्षा कैसे हो जाएगी! क्योंकि वहाँ तो खाकी वर्दीधारी पुलिस भी रहती है, काला कोट पहने टी सी भी रहता है, नीली-सफेद वर्दी वाले कर्मी भी रहते हैं। इसके अलावा भी खद्दरधारी, रंग-बिरंगी पोशाक पहने जन भी ट्रेनों में, रेलवे स्टेशनों पर मौजूद रहते हैं, इनसे महिलाओं को क्या कम खतरा रहता है! तब इनके लिए भी केसरिया दुपट्टे की अनिवार्यता रखी जा सकती है। जब रेलवे मानता है कि केसरिया कम्पार्टमेंट किये जाने से महिलाओं की सुरक्षा हो सकती है तो केसरिया दुपट्टा भी तो कुछ अंशों में ही सही, महिलाओं के मान की रक्षा करने में सफल हो सकता है!
कहने वाले कह सकते हैं कि यह रेलवे के भगवाकरण का कुत्सित प्रयास है लेकिन रंग तो प्रकृति की देन है, इसमें राजनीति कैसी! फिर भी आप चाहें तो ट्रेन का रंग हरा कर सकते हैं, रेलवे स्टेशन का कलर सफेद कर सकते हैं, इंजिन का कलर लाल कर सकते हैं और भी जिनकी ओर से आक्षेप लगने की आशंका हो,उनके रंगों को शामिल करते हुए सप्तरंगी वातावरण निर्मित कर सर्वधर्म समभाव की मिसाल कायम कर सकते हैं और राजनीति करने वाले लोगों का मुँह बन्द कर सकते हैं।
खैर,यह तो रेलवे के ऊपरी आवरण को रंगने की बात है लेकिन प्रश्न यह भी है कि क्या महिलाएँ सिर्फ रेलवे में ही असुरक्षित हैं! नहीं न, तब तो हमें केसरिया को राष्ट्रीय रंग घोषित कर देना चाहिए। केवल केसरिया वस्त्र पहनें, जिस तरह से जयपुर को गुलाबी रंग से सजाया गया है, ठीक उसी तरह सम्पूर्ण देश में केसरिया के अतिरिक्त अन्य रंगों के प्रयोग की मनाही की जा सकती है ताकि महिलाएँ वीर और साहसी हो जाएं और पुरूष बलिदानी और शिष्ट। ऐसे में सारी समस्याएँ अपने आप समाप्त हो जाएंगी, किसी को कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। हाँ ,मन को केसरिया रंग में रंगने के उपाय खोजने होंगे!
इतने सुझावों के बाद एक ही आशंका मुझे सताये जा रही है कि भगवा, सफेद, हरा रंग से रंगायमान बाबा, मुल्ला-मौलवी, साधु-सन्त, फकीर क्योंकर रंगीले हो जाते हैं! क्या यह सब बहुरंग का प्रभाव है? इसपर अभी शोध करना बाकि है, इसके बारे में सुझाव फिर कभी।

-डॉ प्रदीप उपाध्याय

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