संपादकीय

राहुल गांधी की ताजपोशी का असर गुजरात में दिखेगा..?

अगले चार दिसम्बर को नेहरु वंश के चौथी पीढ़ी के रुप में राहुल गांधी को 132 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया जायेगा। कांग्रेस पार्टी के सर्वोच्च नीति निर्धारक कार्य समिति की सोमवार को हुई बैठक में 47 वर्षीय राहुल गांधी की ताजपोशी की तारीखें तय कर दी है। सबकुछ ठीक रहा तो गुजरात विधान सभा चुनाव से ठीक पहले 4 दिसम्बर को राहुल के हाथों कांग्रेस का बागडोर सौंप दिया जायेगा।
राहुल को कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की अटकलें लंबे समय से लगती रही हैं और कई नेता उन्हें अध्यक्ष बनाए जाने की वकालत कर चुके हैं। पिछले साल नवंबर में कार्यसमिति ने सर्वसम्मति से राहुल से पार्टी की कमान संभालने का आग्रह किया था, लेकिन तब राहुल ने कहा था कि वह चुनकर अध्यक्ष बनना चाहते हैं। 2004 में सक्रिय राजनीतिक में कदम रखने वाले राहुल गांधी चार साल पहले 2013 में उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था। सोनिया गांधी पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रही हैं और उनकी ग़ैरमौजूदगी में राहुल ही कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं।
अपने कार्यकाल के शुरुआती साल में पार्टी के नए नेता के तौर पर राहुल के सामने सबसे बड़ी चुनौती दो साल बाद 2019 में लोक सभा के होने वाले चुनाव में हाशिये पर आ गई पार्टी को सत्ता में वापस लाने की होगी। गुटबाजी पर काबू पाना होगा। और पार्टी में बुजुर्गों की जमात सीमित कर युवाओं को तरजीह देनी होगी। अगले चुनाव में उन्हें प्रधानमंत्री के प्रत्याशी के तौर पर पेश किया जायेगा। फिलहाल गुजरात में पूरी ताकत झोंक चुकी कांग्रेस को उम्मीद है कि 132 साल पुरानी पार्टी का कमान सौंपेे जाने से निराश और हताश कार्यकर्ताओँ का मनोबल बढ़ेगा और वे उत्साह से चुनाव में कांग्रेस की मदद कर सकेंगे।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली जो गुजरात चुनाव से पहले राहुल को पार्टी प्रमुख बनाये जाने के पक्ष में थे, ने कहा कि राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से गुजरात चुनाव में पार्टी का प्रर्दशन बेहतर होगा। गुजरात चुनाव का मुकाबला सीधे तौर पर राहुल गांधी और नेरेंद्र मोदी के बीच है। दोनों एक दूसरे पर जवाबी हमला कर रहे हैं। गुजरात चुनावों में वो जमकर प्रचार कर रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के गढ़ में उन्हें ज़ोरदार चुनौती दे रहे हैं। गुजरात का चुनाव दोनों के लिए चुनौती भरा है।
ताजपोशी के बाद कांग्रेस यदि गुजरात में सरकार बनाने में विफल होती है तो राहुल को इसका जबाव देना मुश्किल होगा। उन पर सत्तारुढ़ भाजपा का हमला तेज होगा और संभव है उनके नेतृतव क्षमता पर भी सवालिया निशान उठाया जा सकेगा।
राजनीतिक प्रेक्षकों का आकलन है कि बीते महीनों से गुजरात के चुनाव पर फोकस कर रहे राहुल के इमेज में बदलाव आया है। पहले मजाक का पात्र बनते रहे राहुल को आज लोग गंभीरता से ले रहे हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या राहुल गांधी 2019 में राहुल प्रधानमंत्री के उम्मीदवार होंगे..? पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के नेता आरपीएन सिंह ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है।
2019 के लोक सभा चुनाव में राहुल प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे और पार्टी का चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा जायेगा। सोनिया गांधी हमारी मर्ग गर्शक बनी रहेंगी। उन्होंने कहा कि पूरे देश में भाजपा के बारें में लोगों की धारणा बदली है। वे ठगा सा महसूस करने लगे हैं। राहुल गांधी देश के स्वीकार्य नेता के तौर पर उभर रहे हैं।
राजनीतिक फेरबदल की टाइमिंग दिलचस्प है। एक तरफ़ गुजरात का चुनाव चल रहा है और कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर है वहीं कांग्रेस गुजरात के सहारे देश की राजनीति में बदलाव की उम्मीद लगाए हुए है, ऐसे में नेतृत्व परिवर्तन का फ़ैसला दिलचस्प है।
राहुल के सोनिया की कुर्सी ले लेने से गुजरात के सियासी घमासान पर भी असर पड़ने की संभावना है। प्रेक्षकों की माने तो राहुल की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी का गुजरात चुनावों पर सकारात्मक असर होगा। पहला तो ये है कि सोनिया इस बार चुनाव प्रचार से बाहर हैं और जिस तरह पहले मोदी और बीजेपी सोनिया के विदेशी मूल के बहाने कांग्रेस को घेरती थी, वो इस बार नहीं है।अब मैदान में राहुल गांधी हैं और इस तरह के सवाल इस बार बाहर हैं।’
दूसरा ये है कि आर्थिक नीतियों के बारे में भी राहुल की सोच अलग है। जहाँ सोनिया गांधी आर्थिक नीतियों के बारे में मनमोहन सिंह और पी चिदंबरम पर भरोसा करती थी, वहीं राहुल गांधी नोटबंदी हो या जीएसटी या फिर ग्रोथ से जुड़ी बातें, सब पर बेबाक राय दे रहे हैं। वो जानते हैं कि कारोबारी राज्य गुजरात में आर्थिक मामले कितने अहम हैं, यही वजह है कि जब भी मौका मिलता है वो आर्थिक नीतियों पर मोदी को घेरने से नहीं चूकते।
सोनिया गांधी 1998 से कांग्रेस अध्यक्ष हैं और कांग्रेस के इतिहास में सबसे लंबा कार्यकाल उनका ही है। सोनिया गांधी ने संगठनात्मक रूप से बहुत बदलाव नहीं किए और उनके कार्यकाल में ‘सब चलता है’ की कार्यसंस्कृति कांग्रेस में विकसित हो गई थी। फेरबदल से युवाओं में स्पष्ट संदेश जाएगा कि अब कमान राहुल के हाथों में है। युवाओं और महिलाओं के बीच निश्चित तौर पर उनकी लोकप्रियता बढ़ेगी।
हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर जैसे युवाओं को अपने साथ मिलाने से उन्होंने युवाओं में ये संदेश तो दिया ही है कि वो उनकी बातें सुनने को तैयार हैं। गुजरात में वैसे भी राहुल गांधी ही लड़ रहे हैं। गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी पार्टी हाई कमान से नाराज़ हैं और फ़िलहाल कोपभवन में हैं। उन्होंने कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवारों की सिफ़ारिश की थी, लेकिन केंद्रीय चुनाव समिति ने इन पर कोई ध्यान नहीं दिया। राहुल की चुनावी जनसभाओं को काफी समर्थन मिल रहा है। अभी तक सोशल मीडिया पर उनका मज़ाक उड़ा रहे लोग भी अब उन्हें गंभीर नेता के रूप में लेने लगे हैं। अगर कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल कांग्रेस लड़े तो जो भी सफलता पार्टी को मिलेगी वो राहुल के खाते में जाएगी।
राहुल के अध्यक्ष बन जाने से कांग्रेस की छवि में एक भारी बदलाव आएगा और वो होगा उसकी ‘धर्मनिरपेक्षता’ का। उनका मानना है कि सोनिया के कार्यकाल में कांग्रेस पर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ऐसा लेबल लग गया था कि वो बहुसंख्यकों की अनदेखी कर रही हैं और सिर्फ़ अल्पसंख्यकों के बारे में सोचती हैं, इससे कांग्रेस को सियासी तौर पर काफी नुक़सान हुआ।
शायद यही वजह है कि राहुल गांधी गुजरात चुनावों में मंदिरों में जा रहे हैं और हिंदू होने के नाते वो इस धर्म में आस्था जता रहे हैं। राहुल का मंदिर जाना बीजेपी नेताओं से अलग है। राहुल ये संदेश दे भी रहे हैं कि जिस आस्था के साथ वो मंदिर जा रहे हैं, उसी आस्था से वो गुरुद्वारे या मस्जिद में भी जाते हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी गुजरात की अपनी चुनावी रैलियों में जय सरदार के साथ-साथ जय भवानी के भी नारे लगा रहे हैं और तक़रीबन दर्जन भर मंदिरों के दर्शन भी कर चुके हैं।
इसके अलावा ये किसी से छिपा नहीं है कि राहुल के भाषणों की धार काफ़ी तेज़ हुई है और अगर वो पार्टी के सर्वेसर्वा हुए तो पूरे अधिकार से अपने विरोधियों को जवाब दे पाएंगे। नोटबंदी और जीएसटी समेत विकास और सरकार की नाकामी के मुद्दे को जिस तरह राहुल ने गुजरात चुनावी सभाओं में उठाया है उससे सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी बचाव की स्थिति में दिख रही है। सत्ता विरोधी रुझान (एण्टी इंकम्वेसी) से भयभीत भाजपा को डैमेज कंट्रोल के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगातार गुजरात जाकर वहां के मतदाताओं को विकास का भरोसा देना पड़ रहा है।
केंद्रीय इँटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के एक असेसमेंट रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी और जीएसटी के कारण राज्य का व्यापारी ही नहीं आम लोग मोदी और भाजपा से बुरी तरह नाराज है। उनमें असंतोष है और आर्थिक सुधार नाम पर की गई इस पहल से बड़े पैमाने पर छोटी व्यापारियों का रोजगार तबाह हुआ है और छोटे व्यापारियों का रोजगार खत्म हो गया है। बड़ी संख्या में नाराज एसे व्यापारी चुनाव में भाजपा के खिलाफ वोट कर सकते हैं। कहते हैं इन्हीं कारणों से केंद्र की मोदी सरकार को जीएसटी के दायरे में आने वाले 200 से अधिक वस्तुओं में टैक्स कम करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
गुजरात चुनाव के तुरत बाद अगले साल छ: राज्यों में विधान सभा के चुनाव होने हैं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जहां अभी भाजपा की सरकारें हैं , उसे अपना किला बचाने की की चुनौती होगी। जबकि कर्नाटक और मेघालय में कांग्रेस की सरकार है। राहुल गांधी के लिए इन राज्यों में सरकार को वापस लाने की चुनौती होगी। जबकि त्रिपुरा में माकपा को अपनी जमीन बचाने की चुनौती होगी। असम में भाजपा की सरकार बनने के बाद उसे उम्मीद है कि मेघालय में भाजपा सरकार बनाने में सफल हो सकती है।

राजीव रंजन नाग

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