संपादकीय

इतनी जल्दबाजी में क्यों है राहुल गांधी?

-रमेश सर्राफ धमोरा
स्वतंत्र पत्रकार
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनो बहुत जल्दबाजी में नजर आ रहें है। तभी आये दिन वो तेजी से कुछ ना कुछ नया करने का प्रयास कर रहें है। कुछ दिनो पूर्व उनके निर्देश पर कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, माकपा, भाकपा, मुस्लिम लीग सरीखे छः अन्य विरोधी दलो को साथ लेकर राज्यसभा में भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया था। मगर राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने उस नोटिस को सही ना मानते हुये अस्वीकार कर दिया। कांग्रेस द्वारा मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने का पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कई नेताओं ने विरोध भी किया था। लेकिन मनमोहन सिंह के विरोध के बावजूद लाया गया महाभियोग प्रस्ताव के अस्वीकार होने से आम जन में कांग्रेस की साख खराब हुयी है।
देश के किसी भी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिये लोकसभा में 100 सांसद व राज्य सभा में 50 सांसदो के हस्ताक्षरों की जरूरत होती है। लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिये कांग्रेस के लिये 100 सांसदो के हस्ताक्षर करवा पाना मुश्किल था। इसीलिये कांग्रेस ने राज्यसभा का रास्ता अपनाना मुनासिब समझा था। चूंकि माकपा, भाकपा जैसे दलों का जन आधार लगातार तेजी से गिरता जा रहा है, इसलिये चर्चा में बने रहने के लिये वो किसी भी दल का किसी भी मुद्दे पर साथ देने को तैयार रहते हैं।
एक तरफ राज्यसभा में कांग्रेस का महाभियोग प्रस्ताव अस्वीकार हो जाता है वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी संविधान बचाओ देश बचाओ अभियान शुरू कर रहें हैं। इस अभियान में राहुल गांधी भाजपा पर आरोप लगा रहें हैं कि भाजपा के शासन में दलित वर्ग सुरक्षित नहीं हैं। दलितो पर जुल्म की घटनाओं में दिनो-दिन बढ़ोत्तरी हाती जा रही है। भाजपा अनुसूचित जाति, जनजाति को मिले आरक्षण को समाप्त करने का प्रयास कर रही है। राहुल गांधी भाजपा नेताओं द्वारा दलितो के घरों में जाकर खाना खाने को भी ढकोसला मात्र बता रहें हैं।
यहां गौर करने वाली बात है कि दलितो के घर जाकर खाना खाने की शुरूआत सबसे पहले राहुल गांधी ने ही की थी। जिसे अब भाजपा के नेताओं ने अपना लिया है तो यह राहुल गांधी को नागवार गुजरने लगा है। राहुल गांधी का मानना है कि दलितो पर एकमात्र अधिकार उनकी कांग्रेस पार्टी का ही है। कोई दूसरा राजनीतिक दल यदि दलित हित की बात करता है या दलितो से जुड़े मुद्दे उठाता है तो वे उनके कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप मानते हैं। राहुल गांधी की नजर में दलित हित की बात करके दलितो के बोट लेने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस को ही है।
2014 के लोकसभा चुनाव व उसके बाद हुये कई राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में जिस तरह से दलित मतदाताओं ने कांग्रेस से मुंह मोड़ कर भाजपा से जुड़ाव किया उससे कांग्रेस बुरी तरह से तिलमिला गयी है। कांग्रेस को लगने लगा है कि दलित, मुस्लिम उनका पक्का वोट बैंक रहा है जिनकी बदोलत वह वर्षों राज करती रही है। यदि उसमें से दलित वोट बैंक उससे छिटक जायेगा तो वह कभी सत्ता में नहीं आ पायेगी। इसी लिये कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में हर हाल में दलित वोट बैंक को अपने पाले में लाने का जतन प्रारम्भ कर दिया है।
दलित मतो को भाजपा से दूर करने के लिये ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बार-बार दलितो का मुद्दा उछाल रहें हैं। राहुल गांधी का कहना है कि दलितो के लिये जो कुछ किया गया है वो कांग्रेस पार्टी द्वारा ही किया गया है। लेकिन राहुल गांधी दलित मुद्दा उछालते समय यह क्यों भूल जाते हैं कि देश में दलितों के सबसे बड़े नेता रहे डा. भीमराव रामजी अम्बेडकर व बाबू जगजीवनराम को उनके अन्तिम दिनो में कांग्रेस ने इतना जलील किया था कि उनको कांग्रेस पार्टी छोड़नी पड़ी थी। कांग्रेस ने अपने शासन में अपने चहेते सभी नेताओं को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत भारत रत्न प्रदान किया था मगर दलित नेता डाॅ. भीमराव रामजी अम्बेडकर व बाबू जगजीवनराम को कभी भारत रत्न प्रदान करने के काबिल नहीं समझा। जबकि कांग्रेस ने अपने प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू को उनके प्रधानमंत्री रहते ही 1955 में व इन्दिरा गांधी को भी प्रधानमंत्री पद पर रहने के दौरान 1971 में भारत रत्न प्रदान कर दिया। 1991 में राजीव गांधी को भी कांग्रेस की केन्द्र सरकार ने भारत रत्न प्रदान किया था।
दलितो के नेता डाॅ. भीमराव रामजी अम्बेडकर को 1990 में भारत रत्न से तब सम्मानित किया गया जब केन्द्र में गैर कांग्रेस की सरकार सत्तारूढ़ थी जो भाजपा के समर्थन से चल रही थी। बाबू जगजावन राम को तो आज तक भारत रत्न नहीं दिया गया है। जबकि 1971 के भारत-पाक युद्ध जिसमें भारत की जीत हुयी थी व भारत के सहयोग से बांगलादेश नामक एक नये देश का उदय हुआ था उस वक्त बाबू जगजीवनराम ही देश के रक्षा मंत्री थे। उस युद्ध में भारत को मिली जीत का पूरा श्रेय उस वक्त की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने स्वंय ले लिया था। उस युद्ध के असली नायक रहे देश के दलित रक्षामंत्री का कहीं नाम तक नहीं था। उस युद्ध में मिली जीत की बदोलत ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने स्वंय भारत रत्न ले लिया था।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी केन्द्र सरकार पर दलित कानून कमजोर करने का आरोप लगा रहें हैं। लेकिन यह सब कहने वाले लोग इस बात को क्यों भूल जाते हैं कि केन्द्र में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी सरकार ने दलित हितो के लिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में संशोधन कर और अधिक प्रभावशाली बनाया था। नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद 2015 में एक संशोधन लाकर इस कानून को सख्त बनाया था। इसके तहत विशेष कोर्ट बनाने और तय समय सीमा के अंदर सुनवाई पूरी करने जैसे प्रावधान जोड़े गए हैं। 2016 को गणतंत्र दिवस के दिन से संशोधित एससी-एसटी कानून लागू किया गया था। इस कानून में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ परिवर्तन किया है जिसके भी खिलाफ केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर पूरी मजबूती के साथ पैरवी कर रही है। केन्द्र सरकार का कहना है कि यदि जरूरी हुआ तो इस बाबत अध्यादेश भी लाया जायेगा।
कांग्रेस ने अपने दो राज्यसभा सांसदों प्रताप सिंह बाजवा और अमी हर्षाद्रय याग्निक से सुप्रिम कोर्ट में एक याचिका दायर करवायी थी। याचिका में सुप्रिम कोर्ट के चीफ जस्टिस पर महाभियोग के प्रस्ताव को मंजूरी देने की मांग की गयी थी। मगर कांग्रेस की याचिका को सुप्रिम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच को सौंपे जाने के बाद उनके सांसद वकील कपिल सिब्बल ने एक नाटकीय घटनाक्रम में अपनी पार्टी के सांसदो की और से दायर अर्जी ही वापस ले ली। इससे जनता में कांग्रेस के प्रति यह संदेश गया कि कांग्रेस पार्टी के नेता कोर्ट को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं।
गत दिनो राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चुनौती देते हुये कहा कि मोदी उनके सामने सिर्फ पन्द्रह मिनट बोल कर दिखा दें। इस प्रकार चुनौति देकर राहुल गांधी खुद की छवी ही खराब कर रहें हैं। लोगों में मजाक का पात्र अलग से बन रहे हैं। पूरा देश जानता है कि प्रधानमंत्री मोदी बोलने की कला के माहिर खिलाड़ी है। राहुल गांधी मोदी के सामने कहीं टिकते नहीं फिर ऐसे गैर जरूरी बयान देने की सलाह उन्हे कौन दे रहा है। यदि राहुल गांधी को अगले लोकसभा चुनाव में अपना नेतृत्व चमकाना है तो सबसे पहले उन्हे अपने उन सलाहकारों से पीछा छुड़ाना होगा जो उन्हे गलत सलाह दे रहें हैं। उन्हे बोलते समय पूरी सावधानी बरतनी होगी। राहुल गांधी को अपनी जल्दबाज वाली छवी से हटकर एक गम्भीर राजनेता बनना होगा तभी देश की जनता उनको गम्भीरता से लेगी वरना वो हास्य के प्रतीक ही बने रह जायेगें।

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