संपादकीय

चार साल में चार करोड़ सांस की बीमारी के शिकार

वायु प्रदूषण का खतरा अब घर घर मंडराने लगा है। इसने जल्द ही संक्रामक महामारी का रूप धारण कर लिया है । सरकारी जागरूकता के अभाव में वायु प्रदूषण से देश भर में लाखों लोग पीड़ित हो रहे है और सैंकड़ों अकाल मौत के शिकार हो गए है। एक ताजा सर्वे रिपोर्ट के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले चार सालों में चार करोड़ से भी अधिक लोग तेज साँस के संक्रमण के शिकार हो रहे है। इस अवधि में 12 हजार 200 लोग वायु प्रदूषण से जूझते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए मगर सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार सरकारों को चेताया मगर सरकार की कुम्भकर्णी निंद्रा भंग नहीं हुई।
एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में यह बात सामने आई है कि कमजोर दिल वालों के लिए वायु प्रदूषण नुकसानदायक साबित हो रहा है। वायु प्रदूषण दिल की बीमारी से पीड़ित लोगों की जान भी ले सकता है। एक नये अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण की वजह से इंसानों में गुर्दे की बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है और गुर्दे खराब भी हो सकते हैं। प्रदूषण पर आई एक ग्लोबल रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें सबसे तेज रफ्तार से बढ़ रही हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि फिलहाल दुनिया में जितने लोगों की मौत वायु प्रदूषण से होती है उनमें चीन पहले और भारत दूसरे नंबर पर है। बॉस्टन में जारी हुई ग्लोबल एयर रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। प्रदूषण से होने वाली मौत भारत में सबसे तेज है। चीन के बाद भारत में प्रदूषण से सबसे ज्यादा मौतें हो रही हैं। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2017 रिपोर्ट से ये भी खुलासा हुआ है कि भारत में 2015 में वायु प्रदूषण से 10.90 लाख लोगों की मौत हुई है। पीएम 2.5 कण प्रदूषण से बीमारियों की सबसे बड़ी वजह हैं। 1990 से अब तक भारत में प्रदूषण से मौत की दर 48 फीसदी बढ़ी है। वहीं चीन में इसी अवधि में प्रदूषण से मौत की दर 17.22 फीसदी बढ़ी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक ओजोन प्रदूषण से होने वाली मौत में भारत सबसे ऊपर है।वायु प्रदूषण के कारण हर साल करोड़ों रुपये मूल्य का खाद्यान्न नष्ट हो जाता है।
देश की राजधानी दिल्ली में हवा मानक स्तर से ज्यादा है। दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 हमारे देश के हैं। भारत में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण दिल्ली में है। दिल्ली में सांस के रोगियों की संख्या और इससे मरने के मामले सर्वाधिक हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी प्रदूषण पर अपनी चिंता जाहिर की है। सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते खतरे के कारण दिवाली पर पटाकों की बिक्री पर रोक लगाई थी हालाँकि इस रोक का कोई ज्यादा असर देखने को नहीं मिला।
प्रदूषण का अर्थ है हमारे आस पास का परिवेश गन्दा होना और प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। प्रदूषण कई प्रकार का होता है जिनमें वायु, जल और ध्वनि-प्रदूषण मुख्य है। पर्यावरण के नष्ट होने और औद्योगीकरण के कारण प्रदूषण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है जिसके फलस्वरूप मानव जीवन दूभर हो गया है। महानगरों में वायु प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चैबीसों घंटे कल-कारखानों और वाहनों का विषैला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है। यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है और वृक्षों का अभाव होता है। कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नाली-नालों में घुल मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियां पैदा होती है। इसी भांति ध्वनि-प्रदूषण ने शांत वातावरण को अशांत कर दिया है। कल-कारखानों और यातायात का कानफाडू शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है।
एक सर्वेक्षण के अनुसार वायु प्रदूषण से केवल भारत में 36 शहरों में प्रतिवर्ष 51 हजार 779 व्यक्तियों की अकाल मृत्यु हो जाती है। कोलकाता, कानपुर और हैदराबाद में वायु प्रदूषण से होने वाली मृत्यु दर पिछले तीन-चार वर्षों में दुगुनी हो गई है। एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रदूषण के कारण हर दिन करीब 150 लोग मर जाते हैं और हजारों लोग फेफड़े और हृदय की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा वृक्षों की अंधाधुंध कटाई ने भी पर्यावरण को बहुत अधिक क्षति पहुंचाई है। विश्व में हर साल एक करोड़ हैक्टेयर से अधिक वन काटा जाता है। भारत में 10 लाख हैक्टेयर वन प्रतिवर्ष काटा जा रहा है। वनों के कटने से वन्यजीव भी लुप्त होते जा रहे हैं। वनों के क्षेत्रफल के नष्ट हो जाने से रेगिस्तान के विस्तार में मदद मिल रही है।

– बाल मुकुन्द ओझा

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