संपादकीय

जम्मू-कश्मीर के केन्द्रीय उच्चाधिकारियों की पीड़ा

-अविनाश राय खन्ना
(उपसभापति, भारतीय रेड क्रास सोसाईटी)
जम्मू-कश्मीर में भाजपा का प्रभारी होने के नाते कार्यकर्ताओं और नागरिकों के अतिरिक्त सरकारी अधिकारियों की समस्याओं को सुनने का भी अवसर मिलता रहता है। सभी राज्यों में उच्च प्रशासनिक स्तर के अधिकारियों की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा होती है जिन्हें आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई.आर.एस. आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए 137 आई.ए.एस. अधिकारियों की क्षमता निर्धारित है। जबकि वर्तमान समय में लगभग 70 आई.ए.एस. पदों पर कोई अधिकारी नियुक्त नहीं हैं।
जब कोई व्यक्ति आई.ए.एस. पद के लिए सभी परीक्षाओं को पास कर लेता है तो उसे उसकी प्राथमिकता के अनुसार राज्य का निर्धारण किया जाता है। केन्द्र सरकार चाहे तो किसी भी राज्य से सम्बन्धित प्रशासनिक अधिकारी को केन्द्र में भी नियुक्त कर सकती है। इस समय जम्मू कश्मीर राज्य से सम्बन्धित लगभग 11 प्रशासनिक अधिकारी केन्द्र सरकार के विभिन्न पदों पर नियुक्त हैं। हालांकि जम्मू कश्मीर राज्य सरकार के द्वारा राज्य में प्रशासनिक अधिकारियों की कमी के दृष्टिगत केन्द्र से इन अधिकारियों को वापिस जम्मू कश्मीर भेजने की प्रार्थना की है।
एक तरफ प्रशासनिक अधिकारियों की कमी के कारण राज्य सरकार का काम प्रभावित हो रहा है, जनता को अनेकों प्रकार की असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है परन्तु दूसरी तरफ यह भी ध्रुव सत्य है कि इस सारी व्यवस्था के लिए जम्मू कश्मीर सरकार, स्थानीय राजनीति और राज्य के कानून जिम्मेदार हैं। जम्मू कश्मीर की पक्ष और विपक्ष राजनीतिक खींचतान के चलते भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लग पाती। प्रशासनिक अधिकारी ईमानदारी से अपने दायित्व पूरे करना भी चाहें तो वे ऐसा नहीं कर पाते।
गत वर्ष जम्मू कश्मीर राज्य से सेवा निवृत्त हुई एक महिला प्रशासनिक अधिकारी ने राज्य की राजनीति और प्रशासनिक सेवा के बीच आये दिन होने वाली खींचतान से सम्बन्धित अनेकों घटनाओं का उल्लेख करते हुए एक पुस्तक भी लिखी। भ्रष्टाचार के अतिरिक्त इस पुस्तक में यह पीड़ा भी व्यक्त की गई है कि जम्मू कश्मीर में प्रशासनिक अधिकारियों को भी एक बाहरी व्यक्ति की तरह समझा जाता है। जिस प्रकार राज्य की राजनीति में उग्रवाद समर्थन के तत्त्व पाये जाते हैं, उसके कारण भी प्रशासनिक अधिकारियों पर लगातार एक मानसिक दबाव बना रहता है। ऐसे वातावरण के चलते कोई भी प्रशासनिक अधिकारी लोगों की समस्याओं और विकास कार्यों पर पूरा ध्यान नहीं लगा पाता। ऐसे में केवल वही प्रशासनिक अधिकारी राज्य में टिके रह पाते हैं जो राज्य की राजनीति के सामने समर्पण दिखाते हैं। क्योंकि ऐसे अधिकारियों को जम्मू कश्मीर की राजनीति संरक्षण देती है। ऐसी अवस्था में यदि कुछ प्रशासनिक अधिकारी जम्मू कश्मीर राज्य में सेवा देने से बचते हैं तो ऐसा स्वाभाविक ही है।
एक प्रशासनिक अधिकारी अपने जीवन में 30-35 वर्ष जनता की सेवा में लगाकर स्वाभाविक रूप से यह इच्छा रखता है कि जिस स्थान पर उसने लोगों की सेवाएँ की हैं, लोगों के साथ सम्बन्ध बनाये हैं, सेवा निवृत्ति के बाद वह उसी स्थान पर अपने जीवन का शेष समय भी शांति पूर्वक बिता सके। परन्तु जम्मू कश्मीर राज्य के कानूनों में इतना भी लचीलापन नहीं है कि 30-35 वर्ष तक लोगों की सेवा में लगे प्रशासनिक अधिकारियों को सेवा निवृत्ति का जीवन बिताने के लिए थोड़ी सी जमीन भी उपलब्ध करवाई जा सके या इन केन्द्रीय उच्चाधिकारियों को अपनी भूमि या मकान खरीदने की अनुमति ही दी जा सके।
यदि राज्य सरकार राज्य के लोगों की उचित सेवा पर ध्यान देना चाहती है तो उसे सर्वप्रथम इन केन्द्रीय उच्चाधिकारियों के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी कुछ समस्याओं पर तत्काल ध्यान देना होगा। किसी भी राज्य के विकास में सफलता तभी सम्भव हो सकती है जब जनता से जुड़े अधिकारियों तक पूरी जिम्मेदारी और सम्मान के साथ शक्तियों का विकेन्द्रीकरण किया जाये। इस जिम्मेदारी के चलते राजनीतिक हस्तक्षेप न्यूनतम स्तर पर होना चाहिए।
जम्मू कश्मीर राज्य से जुड़े केन्द्रीय उच्चाधिकारियों को सेवा निवृत्ति के बाद राज्य में ही शेष जीवन बिताने की व्यवस्था के रूप में थोड़ी सी भूमि या फ्लैट आदि के आबंटन का प्रावधान किया जाना चाहिए। तीन-चार दशकों की सेवा के दौरान यदि किसी केन्द्रीय उच्चाधिकारी की मृत्यु होती है तो उसके आश्रितों को उनकी योग्यता के अनुसार राज्य सरकार में नौकरी देने का प्रावधान भी राज्य में इन उच्चाधिकारियों की कमी को दूर करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा। कुछ समय पूर्व जम्मू कश्मीर के दो आई.ए.एस. अधिकारियों की सेवा के दौरान मृत्यु हुई जिनमें से एक मूलतः राजस्थान निवासी था तो दूसरा हरियाणा प्रान्त से सम्बन्धित था। मैंने इस सम्बन्ध में बहुत प्रयास किया परन्तु अब तक इनके किसी आश्रित को नौकरी आदि की सुविधा प्राप्त नहीं करवाई जा सकी। एक बार फिर मैंने प्रधानमंत्री तथा केन्द्रीय गृहमंत्री को इस सम्बन्ध में एक विस्तृत ज्ञापन भेजा है।
राज्य सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि सरकार और जनता के बीच यही केन्द्रीय उच्चाधिकारी ही एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। सरकार का प्रत्येक कार्य इन्हीं अधिकारियों के माध्यम से जनता तक पहुँचता है और जनता की आवाज भी इन्हीं अधिकारियों के माध्यम से सरकार तक पहुँचती है जिसके बल पर सरकार को नीतियों के निर्माण में भरपूर सहायता मिलती है। इसलिए इन केन्द्रीय उच्चाधिकारियों को दिया गया पूर्ण संरक्षण और इनकी हर परेशानी के प्रति राज्य सरकार की संवेदनशीलता राज्य के हर छोटे-बड़े कार्य की गुणवत्ता को कई गुना बढ़ा सकती है।

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