संपादकीय

जिला प्रशासन क्यों नहीं देता स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान

झुंझुनू। 15 अगस्त को हमारा देश आजादी के 72 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है। सरकारी व निजी स्तर पर सभी जगह जश्न की तैयारियां जोर शोर से की गई थी। जिला प्रशासन द्वारा हर बार इस अवसर पर काफी लोगों को सम्मानित भी किया जाता है। मगर स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जिला प्रशासन द्वारा देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले आजाद हिन्द फौज के स्वतंत्रता सेनानियो को भुला देना प्रशासन की अकर्मण्यता को ही दर्शाता है। जिले में आजाद हिन्द फौज के महज गिनती के स्वतंत्रता सेनानी मौजूद है। दिल्ली से राष्ट्रपति भवन में बुलाकर राष्ट्रपति उनको सम्मानित करते हैं मगर जिला प्रशासन नहीं ऐसा क्यों? यह प्रश्र हर देशभक्त के मन में उठना स्वाभाविक है।
आजादी की लड़ाई का एक सिपाही आज भी अपने ही जिले में अदद सम्मान के इंतजार में है। सौ साल के हो चुके बुड़ाना के स्वतंत्रता सेनानी सेडूराम कृष्णियां ने देश की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया। वे आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे हैं। लेकिन फिर भी इस महान स्वतंत्रता सेनानी की अनदेखी की जा रही है और अब तक इस स्वतंत्रता सेनानी की आखिरी इच्छा पूरी नहीं हो सकी। हालांकि हर वर्ष राष्ट्रीय पर्व पर जिला कलेक्टर की ओर से बधाई पत्र जरूर भेजा जाता है। लेकिन जिला स्तर पर आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में बुलाने का उन्हें आज भी इंतजार है।
22 फरवरी 1919 को मूल गांव अलीपुर में जन्में स्वतंत्रता सेनानी सेडूराम कृष्णियां महज 21 साल की उम्र में चार सितंबर 1940 में आजाद हिंद फौज की बटालियन दी राजपूताना राइफल में राइफलमैन के पद पर भर्ती हो गए थे। पांच वर्ष पांच माह व 19 दिन की सेवा के बाद 22 फरवरी 1946 को सेडूराम सेवानिवृत्त हो गए। स्वतंत्रता सेनानी सेडूराम ने बताया कि 1940 में भर्ती होते ही 1942-1945 तक वे देश के बाहर ही रहे। उस समय पांच हजार सिपाहियों को घेराबंदी कर फ्रांस के लिपिया में कैद कर लिया गया और वहां उन्हें तीन साल तक कैद रखा गया। जहां उनको 18 दिन तक खाना भी नहीं दिया। भूख के मारे उनकी हालत बिगड़ती गई। फिर 19वें दिन उनको डबल रोटी और चाय दी गई। उन्होंने बताया बाड़ाबंदी में कैद समय में राशन भी खुद को ही पकाकर खाना पड़ता था।
सेडूराम ने बताया कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस से पहली मुलाकात जर्मनी में हुई। उस समय नेताजी बोस का बस एक ही नारा रहा था। देश को आजाद करवाना। इसको लेकर नेताजी के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज का गठन किया गया। बोस ने ही बाद में उन्हें करीबन तीन साल बाद कैद से मुक्त करवाया। सेडूराम का कहना है कि यदि उस समय नेताजी सुभाषचंद्र बोस उन्हें छुड़ाने नहीं आते तो उनकी जेल में ही मौत हो गई होती। कृष्णियां ने बताया कि कैद से छूटकर 12 महीने तक बहादुरगढ़ कैंप में रहे और उसके बाद सेवानिवृत्त होकर घर आ गए। सेडूराम कृष्णियां के 1940 में राजपूताना बटालियन में भर्ती होने के बाद से लेकर 1946 तक परिवार के सदस्यों को उनके बारे में कोई सूचना नहीं थी। परिवार सदस्यों का कहना है कि हमने तो यही मान लिया था कि शायद ही वो अब फिर से घर लौट कर ना आए। लेकिन ईश्वर ने सब कुछ अच्छा किया और इनको सही सलामत घर तक पहुंचाया।
आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे सेडूराम को 15 अगस्त 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने और राजस्थान स्थापना की स्वर्ण जयंती पर राजस्थान के तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत ने ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया। वहीं दो अक्टूबर 1987 को भी उन्हें ताम्रपत्र से सम्मानित किया गया था। सेडूराम के मन में टीस है कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सम्मान मिलने के बावजूद जिला स्तर पर उनको सम्मानित नहीं किया गया। हर साल राष्ट्रीय पर्व के मौके पर बधाई संदेश भेजकर जिला अधिकारी इतिश्री कर लेते हैं। उन्होंने अपने मरणोपरांत गांव की सार्वजनिक संस्था का नामकरण उनके नाम से करने की इच्छा भी जताई है ताकि लोग उनको हमेशा याद रख सकें।
स्वतंत्रता सेनानी सेडूराम देश की सेवा में जुटे रहे। इसके चलते उन्होंने शादी भी नहीं की। सेडूराम के दो भाईयों में एक बालिराम खेती करता था और छोटा भाई श्रीराम आर्मी में था। संयुक्त परिवार के चलते भाई के बेटे ने इनकी देखरेख की जिम्मेदारी ली हुई है।

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