संपादकीय

‘नाम और शर्म’ नीति रोक सकती है बैंक घोटाले

-विमल वधावन योगाचार्य
एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
जब भी कोई नया कानून बनता है तो देश के हर नागरिक का दिमाग सबसे पहले इस विषय पर चलता है कि क्या मैं इस कानून के दायरे में हूँ या नहीं। बैंकों के लेन-देन में विगत कुछ वर्षों से यह नियम चलन में है कि 50 हजार रुपये से अधिक राशि खाते में जमा करने वाले को अपना पैन कार्ड नम्बर लिखना होगा। इससे 50 हजार रुपये से अधिक राशि खाते में जमा कराने की सूचना व्यक्ति की आयकर सूचनाओं के साथ जुड़ जाती है। आयकर विभाग 50 हजार रुपये से अधिक लेन-देन करने वाले लोगों का वार्षिक विवरण अवश्य ही माॅनीटर करता है। यदि वार्षिक जमा राशि आयकर लगने वाले वर्ग में आती हो तो ऐसे व्यक्तियों को आयकर जमा न कराने पर नोटिस भेजे जाते हैं। आयकर विभाग की माॅनीटरिंग से बचने के लिए लोग एक बार में 50 हजार से कम राशि बैंक में जमा करवाने लगते हैं। ऐसी चालें भी कुछ समय काम करती हैं, परन्तु अन्ततः अधिक आय वाला व्यक्ति कहीं न कहीं आयकर विभाग की नजरों में आ ही जाता है।
विगत कुछ समय से बैंकों के कर्जों से सम्बन्धित ऐसे घोटाले सामने आ रहे हैं जिनमें करोड़ों रुपये की राशियों के कर्ज लेकर कर्जदार देश से बाहर जाकर बस जाते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों की कमजोरी का सहारा लेकर वे भारतीय न्याय प्रणाली को अंगूठा दिखाकर चिढ़ाते हुए लगते हैं। विजय माल्या, नीरव मोदी, रोटोमैक कम्पनी के मालिक आदि कई ऐसे नाम हैं जो भारतीय बैंकों के कर्ज लेकर विदेशों में जा छिपे हैं।
देश से कर्ज लेकर समय पर उसका भुगतान न करने की परम्परा सीधे तौर पर देश के खजाने की लूट के समान समझी जानी चाहिए। चीन की सरकार शीघ्र ही बैंक कर्जों का भुगतान न करने वाले लोगों के विरुद्ध बहुत ही सख्त नियम बनाने जा रही है। जो लोग बैंकों से कर्ज लेकर समय पर भुगतान नहीं कर पाते उनके नामों की सूची सरकारी वेबसाइट पर ‘नेम और शेम’ (नाम और शर्म) शीर्षक के अन्तर्गत नियमित रूप से प्रचारित करेगी। यह चीन सरकार की एक राष्ट्रीय योजना बन रही है। ऐसे डूबे कर्जधारी लोगों के व्यक्तिगत विवरण जैसे नाम, राष्ट्रीय परिचय पत्र, फोटो, पता आदि उनके पूरे कर्ज विवरण के साथ वैबसाइट पर तब तक प्रचारित होता रहेगा जब तक वह अपने पूरे कर्ज का भुगतान नहीं कर देता। इस प्रक्रिया से देशवासियों की अविश्वसनीय हरकतों को रोकने तथा उन्हें सजा दिलाने में सहायक होगी। दूसरी तरफ इस प्रक्रिया से विश्वसनीय नागरिकों और ईमानदारी को स्वतः ही आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। ऐसे ईमानदार लोग किसी भी अवस्था में बैंक से कर्ज वृद्धि आदि के समय छाती ठोककर यह दावा कर सकेंगे कि उनका नाम ‘नाम और शर्म’ शीर्षक वाले अविश्वसनीय लोगों में नहीं है। जिन लोगों ने समय पर भुगतान नहीं किया ऐसे लोग बैंकों से भविष्य में कर्ज वृद्धि की माँग करने से स्वतः ही रूक जायेंगे, क्योंकि बैंक को यह अधिकार होगा कि किसी भी कर्ज को देते समय उस व्यक्ति का नाम राष्ट्रीय योजना के अन्तर्गत प्रकाशित ‘नाम और शर्म’ सूची में चेक कर लेंगे। इस प्रकार यदि कोई नागरिक न्यूनतम एक या दो लाख रुपये के कर्ज का भुगतान न करने का दोषी होगा तो वह भविष्य में कर्ज वृद्धि या किसी भी अन्य बैंक से दूसरा, तीसरा कर्ज लेने से वंचित हो जायेगा। राष्ट्रीय योजना के अन्तर्गत प्रकाशित यह ‘नाम और शर्म’ सूची खुले रूप में किसी के द्वारा भी देखी जा सकेगी। इसे लेकर मीडिया के लोग स्थानीय किसी भी नागरिक का विवरण अखबारों में या अन्य नागरिक सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचारित भी कर सकेंगे। ऐसे लोगों के विरुद्ध शर्मिन्दगी बढ़ाने के साथ-साथ राजनीति के क्षेत्र में भी लगाम लगाने का मार्ग तैयार हो जायेगा। राजनीतिक प्रतिद्वन्दी भी एक दूसरे के विरुद्ध ‘नाम और शर्म’ सूची से नाम लेकर प्रचार में लग जायेंगे। इस प्रकार स्वतः ही देशद्रोह की शर्मिन्दगी और आगे प्रगति के मार्ग रूक जाने से ऐसी शर्मिन्दगी की घटनाएँ भी कम हो जायेंगी।
वर्ष 2015-16 में भारतीय रिजर्व बैंक ने सभी वित्तीय संस्थाओं को एक परिपत्र के द्वारा इस बात के लिए अधिकृत किया कि जब भी कभी कोई ऋण लेने वाला व्यक्ति ऋण वापसी की क्षमता होने के बावजूद भी निर्धारित समय पर ऋण का वापिस भुगतान नहीं करता या बैंक को सूचना दिये बिना अपनी सम्पत्तियों को बेचने की कार्यवाही करता है तो ऋण देने वाली वित्तीय संस्था अर्थात् बैंक आदि उस व्यक्ति के चित्र सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कर सकते हैं। परन्तु कुछ उच्च न्यायालयों ने इसे निजता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए निर्णय दिये तो कुछ न्यायालयों ने चित्र प्रकाशित करने की इस प्रक्रिया को उचित ठहराया। हमारे देश की अदालतें व्यक्ति के हितों का संरक्षण करते हुए तो नजर आती हैं परन्तु हमारी न्याय प्रणाली में भी अब तक देश के हितों को इतना सर्वोच्च महत्त्व देने की प्रवृत्ति प्रारम्भ नहीं हो पाई।
भारत की वर्षों से सोई हुई केन्द्र सरकार अब उठने के लिए अंगड़ाई तो ले रही है परन्तु अभी भी नींद का असर दिखाई दे रहा है। सरकारी बैंकों ने अब यह नियम बना दिया है कि 50 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज मांगने वालों के लिए अपना पासपोर्ट विवरण देना अनिवार्य होगा। यह कानून पूरी तरह से जागृत बुद्धि का परिचय नहीं देता। इस कानून से केवल मात्र यही लाभ होगा कि 50 करोड़ से अधिक राशि का कर्ज लेने वाला व्यक्ति कर्ज लेने के बाद सरलता से देश के बाहर नहीं जा सकेगा। परन्तु अपराधी और स्वार्थी प्रवृत्तियाँ कानून की तोड़-मरोड़ शीघ्रता के साथ कर सकती हैं। यदि किसी व्यक्ति की नियत खराब होगी ही तो वह 49 करोड़ का लोन लेकर विदेश चला जाये तो इस कानून के अनुसार बैंकिंग प्रणाली या देश को कोई आपत्ति नहीं होगी। केन्द्र सरकार या बैंकिंग व्यवस्था को सर्वप्रथम तो पासपोर्ट विवरण वाले नियम में यह संशोधन करना चाहिए कि प्रत्येक कर्ज प्रार्थी से पासपोर्ट विवरण माँगा जाये। इस सम्बन्ध में बहुत छोटे-छोटे व्यक्तिगत उद्योगों या कृषि सम्बन्धी कर्जों पर बेशक इस नियम से छूट दे दी जाये परन्तु उसके लिए भी राशि की सीमा 5 या 10 लाख के आस-पास रखी जानी चाहिए।
दूसरी तरफ इस नियम के बावजूद भी कर्ज का भुगतान वापिस करवाना सुनिश्चित नहीं हो पायेगा। इसके लिए तो चीन जैसी ‘नाम और शर्म’ राष्ट्रीय योजना ही लागू करनी पड़ेगी। इसके बाद तो कर्ज एक लाख का हो या 100 करोड़ का, जब तक भुगतान नहीं होता तब तक वह व्यक्ति राष्ट्र के अविश्वसनीय नागरिकों की सूची में ही रहेगा और जब कोई व्यक्ति अविश्वसनीय नागरिकों की सूची में रहेगा तो देश की कोई भी व्यवस्था या अन्य नागरिक उस व्यक्ति पर आर्थिक विश्वास नहीं करेंगे।

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