संपादकीय

बलात्कार अपराध या मानसिकता

प्राचीन युग से ही हमारे समाज में नारी का विशेष स्थान रहा है । हमारे पौराणिक ग्रंथों में नारी को पूज्नीय एवं देवीतुल्य माना गया है । हमारी धारणा रही है कि देव शक्तियां वहीं पर निवास करती हैं, जहां पर समस्त नारी जाति को प्रतिषठा व सम्मान की द्रष्टि से देखा जाता है।
राष्ट्रकवि “मैथिली शरण गुप्त” ने अपने काल में बड़े ही संवेदनशील भावों से नारी को व्यक्त किया है .
“अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
“आंचल में है दूध और आंखों में पानी।”
एक औरत की कहानी देखो कितनी है पुरानी,
रामायण, महाभारत के काल से क्यों हमेशा मैं ही बनती रहूं बलिदानी,
कुंती बनी तो राज-पाट छीना,
बनी गांधरी तो अंधा बना छोड़ दिया ,
गंगा बनी तो सवालों की प्रश्न माला से वार किया,
क्यें हर बार मुझ पर ही सवाल किया?
पांचली बनी तो जग में मेरा हरण किया,
सीता बनी तो मुझे मेरे ही अपनों ने तिरस्कार दिया ,
मुझको क्यों माता बना, फिर मेरा “बलात्कार” कर मुझे मरता हुआ छोड़ देते हो,
दोहरा समाज मुझे नहीं भाता, स्वार्थी होना मुझे नहीं आता ,
तुम्हारी उत्पत्ति की मैं कर्ता, फिर क्यों मेरा श्रण नहीं भरता ,
शक्ति हूं मैं आनंद दयानी हूं, प्रक्रति हूं मैं, वर दयानी हूं ,
देश की संस्क्रति हूं मैं, मैं ही जग दयानी हूं ।
मैं ही जग दयानी हूं।
देश में बढते यौन अपराधों पर अरसे से चिंता जताई जा रही है, लेकिन यह कडवी हकीकत है कि उनमें कमी आने के बजाय वृद्धि ही हो रही है। दुधमुंही बच्चियों से लेकर व्रद्धाओं तक के हवस का शिकार बनाने की खबरें आती रहती हैं । बलात्कार और अन्य यौन अपराधों में इज़ाफे के लिए लडकियों एवं महिलाओं के कथित उत्तेजक पहनावे–चाल, ढाल, टीवी, फिल्मों या इन्टरनेट पर पसरी अश्लीलता और सहज सुलभ यौन सामग्री को जिम्मेदारी बता कर आखिर हम समाज की विक्रत यौन मानसिकता से कब तक नजरें चुराते रहेंगे ?
हर रोज सुबह जब अखबार के पन्ने पलटती हूं तो ,एक हफ्ते में कम से कम एक या दो दिन ऐसा होता ही हैं, जब अखबार अपने साथ ऐसी खबरें लाता है, जिसमें कहीं कोई छोटी सी बच्ची, या जवान लडकी, या कोई औरत किसी के हवस का शिकार बन जाती हैं ।
इसका सबसे बडा उदाहरण है, राजधानी दिल्ली में हुआ र्निभया कांड और हाल ही में पाकिस्तान में मासूम से हुआ रेप केस, जिसने एक बार फिर इन्सानियत को शर्मसार कर दिया, लेकिन प्रशासन आज भी हाथ पर हाथ धरे बैठी सोचती रह जाती और बलात्कार जैसी सामाजिक बुराई पर भी वोटों की राजनीति करती है ।
समूचे देश को दहला देने वाला निर्भया कांड में पीडित के साथ सबसे ज्यादा बर्बर सलूक एक नाबालिग का ही पाया गया। उसकी क्रूरता और अपराध की साजिश में सहभागिता शातिर अपराधियों को भी मात करते वाली थी। लेकिन अावश्यक होने के चलते मिले कानूनी कवच के कारण उसे सुधार ग्रह में रखा गया और अठारह साल की उम्र होने के बाद रिहा कर दिया गया। इस रिहाई से उठे सवालों के बीच आयु के नाबालिग पर भी, उसके अपराध की गंभीरता को देखते हुए , वयस्कों के लिए बने कानूनों के अंतर्गत मुकदमा चल सकेगा और दस साल तक की सजा हो सकती है ऐसा कहा गया था।यह कानून बनने के बाद कहा गया था कि अब नाबालिग अपराधियों में पैदा होने वाला जेल जाने का खौफ उनके कदमों को अपराध की डगर पर जाने से रोकेगा, लेकिन अफसोस कि ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। इससे स्पष्ट है कि अपराधों को कानून घेरा कसने या सजा का दायरा बढ़ने भर से रोका या कम नहीं किया जा सकता। सारसंभाल अभिवावकों की वयस्तता के चलते इन दिनों अभाव ही नजर आता है।
पुलिस रिकाॅर्ड के मुताबिक लगभग पचास फीसद यौन अपराधों में सोलह से कम उर्म के किशोर शामिल पाए जाते हैं । रार्ष्टीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकडों की गवाही लें तो किशोरों के यौन अपराधों में ग्यारह फीसद की रफ्तार निश्चय ही विस्फोट हैं, जिसे तुरंत रोका जाना जरुरी है। बचपन बचाओ, बेटी बचाओ, महिला कल्याण या स्त्री सशक्तिकरण के तमाम नारे भी अगर हमारे समाजिक परिवेश में बच्चियों एवं स्त्रियों के प्रति संवेदना नहीं जगा सके हैं, तो क्या हमें आत्ममंथन नहीं करना चाहिए?
अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि आज जब हालात इतने खराब हैं कि एक मां, अपनी नौ महीने की बेटी को लेकर आटो में नहीं जा सकती, रात में बस में सफर नहीं कर सकती, घर हो या आफिस हर जगह डर –डर कर जीना पड रहा है तो इसकी एक ही वजह है, और वो है, हमारे समाज में फैली बीमारी जिसका नाम “मानसिकता” है ।
अफसोस इस बात का है कि जिस समाज में हम औरत को देवी कह पूजते हैं, हमारी बहन, बेटी की इज्जत की रक्षा करते हैं उसी समाज में बाहर जाकर पराई बहन –बेटी को छेड़ते हैं ।
दोष हम सब का ही है क्योंकि हम से ही समाज है और हम ही समाज को ऐसा व्यवहार करने की सहमती देते हैं। हमें औरों का नहीं पता लेकिन अगर नारी शक्ति आपस में एक हो जाएं और इस मानसिकता से लडने के लिए तत्पर होकर अपने घर से ही अपने बेटों को नारी की इज्जत करना और अपनी बेटियों को आत्म रक्षा का पाठ पढाएं …तो बेशक एक सुंदर और स्वस्थ समाज की कल्पना की जा सकती है ।

-प्रिया सिंह

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