संपादकीय

सड़क दुर्घटनाएँ कम हो सकती हैं

संयुक्त राष्ट्र के एक अंग विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कई वर्ष पूर्व सड़क दुर्घटनाओं पर गहरे चिन्तन और अनेकों देशों के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद यह घोषित किया था कि सड़क दुर्घटनाएँ भी सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण विषय है। इस अन्तर्राष्ट्रीय रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि सड़क दुर्घटनाओं के कारण प्रत्येक देश की औसतन 2 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद क्षमता कम हो जाती है। इसका सीधा सा अभिप्राय यह हुआ कि यदि हम अपने देश में सड़क दुर्घटनाओं को कम कर पायें तो बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के देश की सकल घरेलू को बढ़ाया जा सकता है। सड़क दुर्घटनाओं में लगभग एक तिहाई मृत्यु 15 से 40 वर्ष के बीच की आयु वाले युवा नागरिकों की होती है। एक अन्य सर्वेक्षण में यह सिद्ध हुआ कि यदि सड़क यातायात में 30 प्रतिशत वाहनों को कम कर दिया जाये तो 28 प्रतिशत दुर्घटनाएँ कम हो जाती हैं। इसी प्रकार यदि साइकिल यात्राओं को 20 प्रतिशत बढ़ा दिया जाये तो उससे भी सड़क दुर्घटनाएँ 7 प्रतिशत कम हो जाती हैं।
90 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएँ निर्धारित से अधिक गति पर वाहन चलाने के कारण होती हैं। सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के पीछे सरकारी जिम्मेदारी से बचने के लिए अक्सर एक ही तर्क दिया जाता है कि सरकार अर्थात् पुलिस प्रत्येक वाहन पर निगरानी नहीं रख सकते। परन्तु आधुनिक युग में सार्वजनिक कैमरों की शुरुआत के बाद अब यह तर्क भी बेकार लग रहा है। वास्तव में सरकार चाहे तो एक-एक वाहन पर नजर रखी जा सकती है और इतना ही नहीं लापरवाही, तेज रफ्तार या यातायात नियमों के किसी छोटे से उल्लंघन पर भी पुलिस का यातायात विभाग दोषी वाहन चालक को पकड़ सकता है, चालान किये जा सकते हैं, दोषी चालकों के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही की जा सकती है, उसका ड्राइविंग लाइसेेंस रद्द किया जा सकता है और वाहन मालिक के विरुद्ध भी जुर्माने से लेकर वाहन जब्त करने की कार्यवाही भी की जा सकती है। इस सारे अभियान के पीछे एक मजबूत राष्ट्रव्यापी राजनीतिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता है। ऐसे अभियान के प्रारम्भ होते ही देश के बड़े शहरों के साथ-साथ मध्यम और छोटे शहरों में भी प्रत्येक चैक पर प्रत्येक दिशा से आने वाले मार्गों पर कैमरे लगाये जा सकते हैं।
जब सड़क दुर्घटनाओं को देश की अर्थव्यवस्था के विकास में एक बड़ा बाधक सिद्ध किया जा चुका है तो भारत की सरकारों को भी इस सिद्धान्त को गम्भीरता के साथ समझने और इस बाधा के निराकरण के लिए प्रयास प्रारम्भ करने चाहिए। सरकारों के क्रिया-कलाप पर जब निगरानी की बात आती है तो भारतीय मीडिया सदैव अपने आपको लोकतंत्र के चैथे स्तम्भ के रूप में प्रस्तुत कर देता है। यदि भारतीय मीडिया को वास्तव में लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ सिद्ध करना हो तो प्रत्येक समाचार पत्र और इलेक्ट्रानिक मीडिया जैसे टी.वी. चैनल आदि को अपने पत्रकारों और कैमरा टीम का एक दल प्रतिदिन न्यूनतम एक या दो घंटे के लिए देश के इस महान कार्य में नियुक्त करना चाहिए। प्रत्येक समाचार पत्र या टी.वी. चैनल की एक टीम अपने-अपने शहर के अलग-अलग चैक पर प्रतिदिन एक या दो घण्टे की ड्यूटी निर्धारित करे। इस टीम में बेशक न्यूनतम एक कैमरामैन ही क्यों न हो। यह कैमरामैन प्रतिदिन एक चैक पर दो घण्टे खड़ा रहकर ऐसे वाहनों के चित्र या वीडियो रिकार्डिंग करता रहे जो ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करते हुए दिखाई दें। इस कार्य के लिए प्रातः और सायं का ऐसा समय चयन किया जाना चाहिए जब सड़कों पर यातायात आवश्यकता से अधिक होता है। चित्र या वीडियो रिकार्डिंग करते समय लालबत्ती पार करने वाले, बिना हेलमेट के दो पहिया चलाने वाले या दो से अधिक सवार दिखाई देने पर, गलत दिशा में वाहन चलाने वाले, नो-पार्किंग वाले स्थानों पर वाहन खड़ा करने वाले, कारों आदि में सीट बेल्ट न लगाने वाले, मोबाइल पर बाते करते हुए वाहन चलाने वाले तथा अन्य इसी प्रकार के छोटे-छोटे उल्लंघनों पर विशेष ध्यान देकर इस प्रकार चित्र लिये जायें जिससे वाहन चालक की सूरत, वाहन नम्बर तथा उल्लंघन स्पष्ट दिखाई दे रहा हो। ऐसे चित्रों और रिकार्डिंग पर उल्लंघन का समय और तिथि भी अवश्य अंकित होने चाहिए। मीडिया द्वारा इस प्रकार के चित्र और रिकार्डिंग प्रतिदिन पुलिस के परिवहन विभाग को सौंपे जायें और इन उल्लंघनों की संक्षिप्त सूचना अपने समाचार पत्र या चैनल पर प्रस्तुत की जाये। ऐसे प्रयासों के कारण जब पुलिस उल्लंघन करने वाले वाहनों को चालान नोटिस आदि भेजना प्रारम्भ करे तो उसे अपनी सफलता के रूप में भी अपने समाचार पत्र या चैनल पर दिखाया जाये। पुलिस विभाग यदि मीडिया की इस सामाजिक पहल पर उचित कार्यवाही करनी ही चिाहिए जिससे मीडिया और चैनलों का यह प्रयास पाठकों और दर्शकों के लिए जहाँ एक तरफ विशेष रूप से रुचिकर साबित हो और दूसरी तरफ शहर के सभी वाहन चालकों के अन्दर भी अनुशासन और ट्रैफिक नियमों का पालन करने की प्रेरणा का संचार हो। इस प्रकार भारतीय मीडिया का यह प्रयास सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने की दिशा में एक महान अभियान साबित होगा। भारतीय मीडिया का यह योगदान देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में भी अप्रत्यक्ष रूप से सहयोगी सिद्ध होगा। भारतीय मीडिया ने यदि एक बार व्यापक रूप से यह अभियान प्रारम्भ कर दिया तो स्वाभाविक रूप से पुलिस का यातायात विभाग भी इस प्रयास से प्रेरित होगा और स्वयं यातायात नियमों के उल्लंघन के विरुद्ध कैमरों तथा यातायात पुलिस कर्मियों की सहायता से लामबन्द होता हुआ दिखाई देगा।
वैसे सरकारों की तरफ से सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए बहुत सारे कदमों की आवश्यकता है। प्रत्येक चैक पर कैमरों के साथ-साथ वाहन की गति मापने वाले यंत्र भी लगाये जा सकते हैं। वाहनों में गति नियंत्रण की व्यवस्था भी लागू करवाई जा सकती है। दो पहिया वाहनों पर उत्तम गुणवत्ता वाले हेलमेट पहनना सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। राज्य सरकारों तथा स्थानीय निकायों को सड़कों की मरम्मत का कार्य नियमित और स्थाई रूप से चलाते रहना चाहिए। विशेष रूप से खुले गटर और अचानक बनने वाले गढ्ढों या सड़क की टूट-फूट की मरम्मत का कार्य करने में एक दिन भी विलम्ब नहीं होना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो सके कालोनियों के अन्दर तथा शहर की छोटी सड़कों पर ट्रैफिक का आवागमन एकतरफा मार्ग की तरह निर्धारित होना चाहिए। दो तरफा मार्ग केवल उन्हीं सड़कों पर चलें जहाँ आने-जाने के बीच में पट्टी का निर्माण हुआ हो। यातायात विभाग को स्कूलों और काॅलेजों में यातायात नियमों के पालन को लेकर अनेकों कार्यक्रम और यहाँ तक कि कई प्रकार की प्रतियोगिताएँ भी आयोजित करनी चाहिए। ड्राइविंग लाइसेंस जारी करते समय भी यातायात विभाग नागरिकों को यातायात नियमों के प्रति विस्तार पूर्वक दिशा निर्देश तथा प्रेरणाएँ प्रदान करें। यातायात नियमों का उल्लंघन करने और विशेष रूप से ऐसी सड़क दुर्घटनाओं के मामलों में अदालतों को भी सख्ती बरतनी चाहिए जिनमें किसी व्यक्ति को गम्भीर चोटें आई हों या किसी की मृत्यु हुई हो। शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले लोगों के विरुद्ध तो यातायात नियमों के साथ-साथ शराब पीकर सार्वजनिक स्थलों पर आवागमन के आरोप पर कार्यवाही होनी चाहिए। सरकारों के साथ-साथ गैर-सरकारी संस्थाओं तथा प्रत्येक परिवार के माता-पिता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपने अवयस्क बच्चों को वाहन चलाने की अनुमति न दें। यहाँ तक कि कम उम्र के बच्चों को तो सड़क पर साइकिल चलाने के लिए भी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

-अविनाश राय खन्ना, उपसभापति, भारतीय रेड क्रास सोसाईटी

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *