संपादकीय

‘राजस्थान के लोकगीत’ एक संग्रहणीय पुस्तक

पुस्तक समीक्षा

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल (समीक्षक)
लोकगीत भारत की आत्मा हैं। हर प्रदेश और समाज के अपने-अपने लोकगीत जादुई लालित्य लिए हुए हैं। अवसर चाहे शादी ब्याह, तीज त्यौहार, विवाहोत्सव आदि का हो लोकगीत प्रमुखता से गाए जने की परम्परा है। लुप्त होते लोकगीतों के मध्य उदयपुर निवासी सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, राजस्थान के पूर्व संयुक्त निदेशक पन्नालाल मेघवाल ले कर आए हैं ‘राजस्थान के लोकगीत’ शीर्षक से सम्बन्धित नई पुस्तक।
लोक संस्कृति पर अनेक पुस्तकों के लेखक मेधवाल की इस से पुस्तक से नई पीढ़ी को अपनी लोक संस्कृति को जानने पहचानने का अवसर मिलेगा और लोकगीतों का संरक्षण भी होगा। पुस्तक में कुल 270 लोकगीतों का संकलन एवं सम्पादन किया गया है। इनमें देवी देवता के 22, जच्चा बच्चा के 21, हल्दी पीठी के 85, तीज-त्यौहार के 15, लोक संस्कारों के 127 लोकगीत शामिल हैं।
पुस्तक का आमुख रंगीन पृष्ठ आकर्षक है। प्रस्तुति एवं मुद्रण खूबसूरत हैं। हिमांशु पब्लिकेशंस, उदयपुर से प्रकाशित 300 पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य 395 रुपए है।
पुस्तक का प्रकाशन इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (इंटैक), उदयपुर चैप्टर के सौजन्य से किया गया है जिसके लेखक आजीवन सदस्य है। लोक संस्कृति के गीत पक्ष पर लिखित इस पुस्तक का विमोचन हाल ही में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र की निदेशक किरण सोनी गुप्ता द्वारा किया गया। पुस्तक संग्रहणीय है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *