संपादकीय

सीडीएस की नियुक्ति से सशस्त्र बलों को मिलेगी मजबूती

-योगेश कुमार गोयल
गत 24 दिसम्बर को एक ऐतिहासिक निर्णय में केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों पर कैबिनेट समिति (सीसीएस) द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के नेतृत्व वाली उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट को मंजूरी देते हुए तीनों सेनाओं के नेतृत्व के लिए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) पद के सृजन की स्वीकृति दे दी गई। डोभाल के नेतृत्व वाली उच्चस्तरीय समिति ने सीडीएस की जिम्मेदारियों और ढांचे को अंतिम रूप दिया था। नाटो देशों की सेनाओं के अलावा अमेरिका, चीन, जापान, यूके इत्यादि कुछ देशों में भी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जैसी ही व्यवस्था है। केन्द्र सरकार द्वारा की गई घोषणा के अनुसार अब रक्षा मंत्रालय के अधीन सैन्य मामलों का एक नया विभाग डिपार्टमेंट ऑफ मिलिटरी अफेयर्स (डीमए) बनाया जाएगा और सीडीएस ही इसका मुखिया होगा। डीएमए तीनों सेनाओं में खरीद, प्रशिक्षण तथा कर्मचारियों की जरूरत में संयुक्तता बरकरार रखने के लिए जवाबदेह होगा। सरकार के इस कदम को देश की आजादी के बाद सबसे बड़े सैन्य बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ चार स्टार वाला जनरल होगा। वह सैन्य सुरक्षा मसले पर रक्षा मंत्री का मुख्य सलाहकार होगा। उसका वेतन सेना के तीनों अंगों के प्रमुख के बराबर ही होगा। रक्षा और रणनीतिक मामलों में सीडीएस प्रधानमंत्री तथा रक्षामंत्री के एकीकृत सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करेगा। इस नियुक्ति के बाद प्रधानमंत्री एक ही अधिकारी से तीनों सेनाओं के बारे में वांछित जानकारियां और सलाह ले सकेंगे। तीनों सेनाओं के मुखिया पहले की भांति रक्षा मंत्री को अपनी सेनाओं के बारे में पर्याप्त सूचनाएं उपलब्ध कराते रहेंगे।
सरकार द्वारा सीडीएस की जिम्मेदारियां भी तय कर दी गई हैं। सीडीएस सरकार और सैन्य बलों के बीच सम्पर्क सेतु का कार्य करेंगे। सीडीएस पद से रिटायर होने के बाद कोई अन्य सरकारी पद ग्रहण नहीं कर सकेंगे तथा सेवानिवृत्ति के बाद पांच वर्ष तक सरकार की अनुमति के बिना किसी निजी कम्पनी अथवा कॉरपोरेट में नौकरी नहीं कर पाएंगे। तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बढ़ाने के साथ-साथ सीडीएस सैद्धांतिक मामलों, ऑपरेशनल समस्याओं को सुलझाने के अलावा देश के सामरिक संसाधनों तथा परमाणु हथियारों का प्रबंधन बेहतर बनाएंगे और युद्ध अथवा अन्य परिस्थितियों में सरकार को एक सूत्री सैन्य सलाह मुहैया कराएंगे। सीडीएस पर तीनों सेनाओं में स्वदेशी साजो-सामान का उपयोग बढ़ाने का दायित्व भी होगा। वह सेना के तीनों अंगों के ऑपरेशन, प्रशिक्षण, ट्रांसपोर्ट, सपोर्ट सर्विसेस, संचार, रखरखाव, रसद पूर्ति तथा संयंत्रों में टूट-फूट संबंधी कार्य भी देखेंगे। सेना के लिए रणनीति विकसित करने के अलावा सैन्य अधिकारियों और जवानों के बीच विश्वास बनाए रखना सीडीएस का महत्वपूर्ण दायित्व होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी वर्ष स्वतंत्रता दिवस समारोह में लाल किले की प्राचीर से सेना के तीनों अंगों के प्रमुख के तौर पर इस पद का ऐलान करते हुए कहा था कि भारत में तीनों सेना के प्रमुख के रूप में सीडीएस होगा। 73वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत में अब चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ होगा, जिससे हमारे सशस्त्र बल और अधिक प्रभावशाली बनेंगे। उन्होंने कहा था कि सीडीएस थलसेना, नौसेना और वायुसेना के बीच तालमेल को सुनिश्चित करेगा और उन्हें प्रभावी नेतृत्व देगा। अभी तक सीडीएस की जगह चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (सीओएससी) होता है, जिसमें तीनों सेनाओं के प्रमुख शामिल होते हैं। सबसे वरिष्ठ सदस्य को इसका चेयरमैन नियुक्त किया जाता है, जिसे रोटेशन के आधार पर रिटायरमेंट दिया जाता है। अब सीडीएस ही चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी मुखिया होंगे, जो इस संगठन में स्थिरता लाएंगे।
सवाल यह है कि आखिर प्रधानमंत्री को यह नया पद सृजित करने की घोषणा क्यों करनी पड़ी थी? आखिर देश को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की क्या जरूरत है? दरअसल, सीडीएस की नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य तीनों सेनाओं में युद्ध की चुनौतियों से निपटने के लिए तालमेल को बढ़ाना है। आज दुनियाभर में सेनाओं में अत्याधुनिक तकनीकों के समावेश के चलते युद्धों के स्वरूप और तैयारियों में लगातार बदलाव देखा जा रहा है। ऐसे में देश की सुरक्षा को चाक-चैबंद करने के लिए बेहद जरूरी है कि तीनों सेनाएं (जल, थल और वायु सेना) एकीकृत होकर कार्य करें। दुश्मन के हमलों को नाकाम करने के लिए सेना के तीनों अंगों के बीच तालमेल होना बेहद जरूरी है। यही वजह है कि लंबे समय से सीडीएस जैसे महत्वपूर्ण पद की जरूरत महसूस की जा रही थी, जिसके जरिये तीनों सेनाओं के बीच समन्वय की कमी को पूरा किया जा सके। इस पद को सृजित करने का विचार कोई एकाएक नहीं उपजा था। इस पद की जरूरत आज से करीब बीस साल पहले तब महसूस की गई थी, जब वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान तीनों सेनाओं के बीच समन्वय की कमी देखी गई थी। उस समय तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में गठित ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (जीओएम) ने कारगिल युद्ध की समीक्षा करने पर पाया था कि तीनों सेनाओं के बीच समन्वय की कमी थी।
कारगिल समीक्षा समिति का मानना था कि अगर तीनों सेनाओं के बीच आपसी समन्वय होता तो नुकसान को कम किया जा सकता था। मंत्रियों के समूह ने तीनों सेनाओं में तालमेल स्थापित करने के लिए पेश की गई अपनी रिपोर्ट में कहा था कि तत्कालीन सेना प्रमुख तालमेल की कमी के चलते एक सूत्री रणनीति बनाने में नाकाम रहे। उसी आधार पर समिति ने तब सरकार को एकल सैन्य सलाहकार के तौर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद का सृजन करने का सुझाव दिया था। जीओएम की सिफारिशों को उस समय कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने स्वीकार भी कर लिया था, किन्तु एयरफोर्स द्वारा इसका विरोध किए जाने के कारण इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। बाद के वर्षों में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते इस दिशा में कदम नहीं बढ़ाए गए। वर्ष 2011 में गठित नरेश चन्द्र टास्क फोर्स चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी ने कहा था कि जब तक सीडीएस की घोषणा नहीं होती, तब तक चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी अध्यक्ष की नियुक्ति की जानी चाहिए। उसके बाद वर्ष 2016 में लेफ्टिनेंट जनरल शेकतकर कमेटी ने भी सीडीएस की नियुक्ति पर जोर देते हुए तीनों सेना प्रमुखों के अलावा चार स्टार जनरल के तौर पर चीफ कोआर्डिनेटर का पद सृजित किए जाने की सलाह दी थी। जिसे मौजूदा सरकार ने अमलीजामा पहनाते हुए तीनों सेनाओं के बीच समन्वय की कमी को पूरा करने की दिशा में सराहनीय पहल की है। निश्चित रूप से यह देश की सुरक्षा की नींव मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

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