संपादकीय

मोटर दुर्घटना पीड़ितों को मुआवजे

-विमल वधावन योगाचार्य
(एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट)

सड़क दुर्घटना का नाम सुनते ही व्यक्ति एकदम गम्भीर हो जाता है। वह भी भारत जैसे देश में जो विश्व के लगभग 200 देशों में करवाये गये एक सर्वे के अनुसार सड़क दुर्घटनों में होने वाली मृत्यु की दौड़ में प्रथम स्थान पर है। भारत में प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख सड़क दुर्घटनायें होती है जिनमें 1 लाख 50 हजार नागरिक मारे जाते है। इसके अतिरिक्त लगभग 5 लाख व्यक्ति प्रति वर्ष गम्भीर रूप से शारीरिक चोटों का शिकार होते हैं। इन आंकड़ों को यदि और सूक्ष्म रूप से समझा जाये तो प्रत्येक 10 मिनट में लगभग 3 भारतवासी सड़क दुर्घटनाओं में अपना जीवन गवा चुके होते हैं और प्रत्येक 10 मिनट में लगभग 10 व्यक्ति अस्पताल में भर्ती करायें जाते हैं। भारत की सड़कों पर वाहनों की नहीं मृत्यु की दौड़ चल रही होती है। कौन कब इसका शिकार हो जाए, इसका किसी को कुछ पता नहीं।
भारत की केन्द्र सरकार मोटर वाहन अधिनियम में भारी संशोधनों के माध्यम से टैªफिक नियमों में जुर्माने की राशि बढ़ाकर इस प्रयास में जुटी है कि किसी प्रकार वाहन दुर्घटनाओं में कमी लाई जा सकें। मोटर वाहन कानून दुर्घटनाओं के शिकार लोगों को मुआवजे का दावा करने की पूरी व्यवस्था उपलब्ध कराता है। भारत की अदालतों में मोटर दुर्घटना मुआवजा प्राधिकरण प्रत्येक जिला स्तर पर स्थापित किये गये है। इन मुआवजा अदालतों की जिम्मेदारी है कि वे तीव्र गति से मुआवजा याचिकाओं पर आदेश जारी करें। परन्तु यह अदालते भी आम दिवानी अदालतों की तरह प्रत्येक याचिका को निपटाने में कई वर्ष लगाती है। दुर्घटना पीड़ितों को मुआवजे से सम्बंधित प्रवाधानों का ज्ञान भी नहीं होता।
सड़क पर कहीं भी दुर्घटना होने पर जहाँ एक तरफ पीड़ितों को तुरन्त अस्पताल पहुँचाने की व्यवस्था की जाती है, वहीं दुर्घटना स्थल पर खड़े अन्य व्यक्तियों का यह दायित्व होना चाहिए कि वे दुर्घटना के तुरन्त बाद दुर्घटना ग्रस्त वाहनों तथा उस स्थल की स्पष्ट तस्वीरें मोबाईल फोन से रिकाॅर्ड करें। दुर्घटना स्थल की छोटी सी वीडियों भी बनाई जानी चाहिए। पुलिस के आने पर फोटो और वीडियो पुलिस को सौंपी जाए तथा दुर्घटना पीड़ित व्यक्ति के परिवार को भी दी जायें।
प्रत्येक सड़क दुर्घटना के बाद पुलिस के द्वारा दोषी ड्राइवर का लाईसेंस, वाहन का रजिस्टेªशन प्रमाण पत्र तथा बीमा प्रमाण पत्र की प्रतियाँ लेकर ड्राइवर के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाता है। पीड़ित व्यक्ति के परिवार को मुआवजे की याचिका व्यक्तिगत रूप से मुआवजा प्राधिकरण में प्रस्तुत करनी चाहिए। दुर्घटना में दोष किसी का भी हो परन्तु प्रत्येक मृत्यु के लिये 50 हजार रुपये का मुआवजा याचिका प्रस्तुत करने के तुरन्त बाद मिलने का प्रावधान है। गम्भीर और स्थायी शारीरिक क्षति के लिये इसी प्रकार 25 हजार रुपये का मुआवजा मिलता है। दुर्घटना का कारण बनने वाले दोषी ड्राइवर का दोष सिद्ध होने पर अदालत पीड़ित व्यक्ति की आय, आयु, परिवार के सदस्यों की संख्या, वैवाहिक स्तर, शिक्षा और परिवार को हुई आर्थिक क्षति को देखकर भारी मुआवजा राशि का निर्धारण करती है। दुर्घटना से सम्बंधित मुआवजे का भुगतान वाहन की बीमा कम्पनी के द्वारा ही किया जाता है। इसलिये मोटर वाहन कानून के अन्तर्गत प्रत्येक वाहन का तृतीय पक्ष बीमा अनिवार्य किया गया है। सामान्य चैकिंग के दौरान भी किसी वाहन का बीमा न होने पर टैªफिक पुलिस का दायित्व है कि ऐसे मालिक का केवल चालान ही न करें अपितु उसे बीमा करवाने के लिये बाध्य करें जिससे बेकसूर दुर्घटना पीड़ितों को मुआवजा मिलने में बाधा न हो। जिस वाहन का बीमा न हो और वह दुर्घटना ग्रस्त हो जाये तो ऐसे मुआवजे की राशि वाहन मालिक को देनी पड़ती है। ऐसे लोगों से मुआवजा राशि वसूल करने के लिये आदालतों के पास उनकी सम्पत्ति जब्त करने का अधिकार भी होता है। दूसरी तरफ यदि दुर्घटना में पीड़ित व्यक्ति का दोष भी दुर्घटना का कारण होता है तो अदालत उसके दोष का अनुपात निर्धारित करने के बाद कुल मुआवजा राशि को भी उसी अनुपात में कम कर देती है। यदि कोई दोषी ड्राइवर स्वयं भी दुर्घटना में क्षतिग्रस्त होता है तो वह ड्राइवर वाहन मालिक का नौकर होने के कारण कर्मचारी मुआवजा कानून के अन्र्तगत मालिक से मुआवजा प्राप्त कर सकता है।
मुआवजे का मुकदमा पीड़ित व्यक्ति अपने निवास की जिला अदालत में भी कर सकता है जिससे उसे मुकदमे के सिलसिले में कहीं दूर हुई दुर्घटना वाले स्थान पर न जाने पड़े। ऐसे मुकदमे करने के लिये अक्सर स्थानीय वकील बिना प्रारम्भिक फीस के भी उपलब्ध हो जाते है और मुआवजे की राशि मिलने के बाद सामन्यतः 10 प्रतिशत या उससे कम फीस मुआवजा राशि में से ही ले लेते हैं। ऐसे मुकदमें अदालत में प्रस्तुत करने की कोई समय सीमा नहीं है परन्तु पीड़ितों को चाहिये की वे यथाशीघ्र मुकदमों को अदालत में प्रस्तुत करें।
भारत में कुल दुर्घटनाओं का लगभग 30 प्रतिशत ऐसे दुर्घटनायें ऐसी होती है जिनमें दोषी ड्राइवर वाहन को लेकर भाग जाता है और वाहन का नम्बर भी किसी गवाह के द्वारा नोट नहीं किया जाता। ऐसे मामलों को ‘हिट एण्ड रन’ श्रेणी में माना जाता है और ऐसे दुर्घटना पीड़ितों को मृत्यु के केस में 2 लाख रुपये तथा गम्भीर शारीरिक क्षति होने पर 50 हजार की राशि दी जाती है।
मोटर दुर्घटनाओं का मुआवजा एक प्रकार का समाजिक कल्याण का कानून है। अदालतों ने इस कानून की व्याख्या में हमेश उदारता से ही निर्णय दिये है। रेल दुर्घटनाओं में मरने वाले व्यक्यिों को एकमुश्त चार लाख रुपये की मुआवजा राशि दी जाती है। जबकि मोटर दुर्घटनाओं में मुआवजा राशि पीड़ित व्यक्ति की अवस्था पर निर्भर करती है।

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