संपादकीय

जन अभियान बने पर्यावरण संरक्षण

-रमेश सर्राफ धमोरा
राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार (झुंझुनू, राजस्थान)

पर्यावरण शब्द संस्कृत भाषा के ‘परि’ उपसर्ग (चारों ओर) और ‘आवरण’ से मिलकर बना है जिसका अर्थ है ऐसी चीजों का समुच्चय जो किसी व्यक्ति या जीवधारी को चारों ओर से आवृत्त किये हुए हैं। यह शब्द फ्रांसीसी शब्द एनवायरनर से लिया गया है, जिसका अर्थ है घेरना, घेरना या घेरना। पर्यावरण को उस परिवेश या परिस्थितियों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें पौधे, जानवर और मनुष्य जैसे जीवित जीव रहते हैं। पर्यावरण की एक सरल परिभाषा में कहा जा सकता है कि मानव जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों को शामिल करने वाली एक प्रणाली है। जैविक या जीवित घटकों में सभी वनस्पति और जीव शामिल हैं, और अजैविक घटकों में पानी, सूरज की रोशनी, हवा, जलवायु आदि शामिल हैं।
हमारी धरती, जनजीवन को सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण का सुरक्षित रहना बहुत जरूरी है। पूरी दुनिया आधुनिकता की ओर बढ़ रही हैं। दुनियाभर में हर दिन ऐसी चीजों का इस्तेमाल बढ़ रहा है जिससे पर्यावरण खतरे में हैं। इंसान और पर्यावरण के बीच गहरा संबंध है। प्रकृति के बिना जीवन संभव नहीं। ऐसे में प्रकृति के साथ इंसानों को तालमेल बिठाना होता है। लेकिन लगातार वातावरण दूषित हो रहा है। जिससे कई तरह की समस्याएं बढ़ रही हैं। जो हमारे जनजीवन को तो प्रभावित कर ही रही हैं। साथ ही कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं की भी वजह बन रही हैं। सुखी स्वस्थ जीवन के लिए पर्यावरण का संरक्षण जरूरी है। इसी उद्देश्य से हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1972 में पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था। लेकिन विश्व स्तर पर इसके मनाने की शुरुआत 5 जून 1974 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुई थी। जहां 119 देशों की मौजूदगी में पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया गया था। साथ ही प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था। इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का गठन भी हुआ था। भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम भारत की संसद द्वारा 1986 में पारित किया गया था। इसे संविधान के अनुच्छेद 253 के तहत पारित किया गया था। यह 19 नवंबर 1986 को लागू हुआ था।
देश में तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण बड़ी मात्रा में कृषि भूमि आबादी की भेंट चढ़ती गई। जिस कारण वहां के पेड़ पौधे काट दिये गये व नदी नालों को बंद कर बड़े-बड़े भवन बना दिए गए। जिससे वहां रहने वाले पशु, पक्षी अन्यत्र चले गए। लेकिन लाकडाउन ने लोगों को उनके पुराने दिनों की याद दिला दी है। पुराने समय में पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिये पड़ो को देवताओं के समान दर्जा दिया जाता था। ताकि उन्हे कटने से बचाया जा सके। बड़-पीपल जैसे घने छायादार पेड़ो को काटने से रोकने के लिये उनकी देवताओं के रूप में पूजा की जाती रही है। इसी कारण गावों में आज भी लोग बड़ व पीपल का पेड़ नहीं काटते हैं।
मनुष्य प्रकृति द्वारा बनाया गया सबसे बुद्धिमान प्राणी माना जाता है। उसने एक ओर जहां विज्ञान से प्रौद्योगिक का विकास किया वहीं दूसरी ओर अंधाधुंध शहरीकरण तथा औद्योगिकीकरण भी किया। इसी का नतीजा है कि उद्योगों से निकलने वाला धुआँ, दूषित पदार्थ आदि प्रदूषण को जन्म दें रहे हैं। इस कारण जलप्रदूषण, वायुप्रदूषण हुआ है। आवास एवं शहरीकरण हेतु वनों की अत्यधिक कटाई के कारण मिटटी प्रदूषण एवं भूमि कटाव जैसी समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। वर्तमान समय में प्रदूषण किसी एक गांव, कस्बे या शहर की समस्या नहीं है अपितु यह संपूर्ण विश्व की बहुत विकराल समस्या बन गई है।
हर वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के लिए एक थीम निर्धारित की जाती है। इस साल विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ‘हमारी भूमि’ नारे के तहत भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखे पर केंद्रित है। स्वस्थ पर्यावरण हमारे जीवन में काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि बिना इसके स्वस्थ रहने की कल्पना करना मुश्किल है। हमें अपने मन में संकल्प लेना होगा कि हमें प्रकृति से सदभाव के साथ जुड़ कर रहना है। इस पर्यावरण दिवस पर हम सब इस बारे में सोचें कि हम अपनी धरती को स्वच्छ और हरित बनाने के लिए और क्या कर सकते हैं। किस तरह इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। पर्यावरण दिवस पर अब सिर्फ पौधारोपण करने से कुछ नहीं होगा। जब तक हम यह सुनिश्चित नहीं कर लेते कि हम उस पौधे के पेड़ बनने तक उसकी देखभाल करेंगें।
यदि समय रहते प्रदूषण जैसी समस्या का समाधान नहीं निकाला गया तो इसका खामियाजा संपूर्ण मानव जाति को भुगतना होगा। और इसके भयंकर परिणाम होंगे जो हमारे साथ भविष्य में आने वाली पीढ़ी भी भुगतेगी। नेशनल हेल्थ पोर्टल आफ इंडिया के मुताबिक देश में हर साल करीब 80 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हो जाती है। वायु प्रदूषण के चलते लोगों को शुद्ध हवा नहीं मिल पाती है। जिसका हमारे शरीर में फेफड़े, दिल और दिमाग पर बुरा असर पड़ रहा है। देश में 34 प्रतिशत लोग प्रदूषण की वजह से मरते हैं।
तीन वर्ष पूर्व लाकडाउन का वह समय पर्यावरण की दृष्टि से अब तक का सबसे उत्तम समय रहा था। उस दौरान शहरों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी वायु प्रदूषण का स्तर घटकर न्यूनतम स्तर पर आ गया है। देश की सभी नदियों का जल पीने योग्य हो गया था। जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। पूरी दुनिया में पिछले वर्ष जैसा पर्यावरण दिवस शायद ही फिर कभी मने। सरकार हर वर्ष नदियों के पानी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अरबों रुपए खर्च करती आ रही है। उसके उपरांत भी नदियों का पानी शुद्ध नहीं हो पाता है। लाकडाउन के दौरान बिना कुछ खर्च किए ही नदियों का पानी अपने आप शुद्ध हो गया था। पर्यावरणविदों के मुताबिक जिन नदियों के पानी से स्नान करने पर चर्म रोग होने की संभावनाएं व्यक्त की जाती थी। उन नदियों का पानी शुद्ध हो जाना बहुत बड़ी बात थी। देश की सबसे अधिक प्रदूषित मानी जाने वाली गंगा नदी सबसे शुद्ध जल वाली नदी बन गयी थी।
विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के दूसरे तरीकों सहित सभी देशों के लोगों को एक साथ लाकर जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने और जंगलों के प्रबन्ध को सुधारना है। वास्तविक रुप में पृथ्वी को बचाने के लिये आयोजित इस उत्सव में सभी आयु वर्ग के लोगों को सक्रियता से शामिल करना होगा। तेजी से बढ़ते शहरीकरण व लगातार काटे जा रहे पड़ो के कारण बिगड़ते पर्यावरण संतुलन पर रोक लगानी होगी।
भारत का पहला पर्यावरण आंदोलन बिश्नोई आंदोलन था। अमृता देवी ने इस प्रयास का नेतृत्व किया था। जिसमें 363 लोगों ने अपने जंगलों के संरक्षण के लिए अपनी जान दे दी। पेड़ों की सुरक्षा के लिए उन्हें गले लगाने या आलिंगन देने की अवधारणा स्थापित करने वाला यह अपनी तरह का पहला आंदोलन था। इस दिन हमें आमजन को भागीदार बना कर उन्हे इस बात का अहसास करवाना होगा कि बिगड़ते पर्यावरण असंतुलन का खामियाजा हमे व हमारी आने वाली पीढियों को उठाना पड़ेगा। इसलिये हमें अभी से पर्यावरण को लेकर सतर्क व सजग होने की जरूरत है। हमें पर्यावरण संरक्षण की दिशा में तेजी से काम करना होगा तभी हम बिगड़ते पर्यावरण असंतुलन को संतुलित कर पायेगें। तभी हमारी आने वाली पीढ़ियां शुद्ध हवा में सांस ले पायेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *