संपादकीय

कितना सफल होगा कांग्रेस वाम मिलन?

-रमेश सर्राफ धमोरा (झुंझुनू, राजस्थान)
(स्वतंत्र पत्रकार)

काग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी को वामपंथी मोर्चे से गठबंधन करने की मंजूरी दे दी है। अब वहां 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व वामपंथी दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे। हालांकि 2016 का विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस ने वाम मोर्चे के साथ मिलकर लड़ा था। मगर उसके बाद इनका गठबंधन टूट गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में इन्होंने अलग-अलग चुनाव लड़ा था।
कांग्रेस ने 2011 के विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी से गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। जिसमें उन्होंने वाम मोर्चे को करारी शिकस्त दी थी तथा ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सरकार में कांग्रेस पार्टी शामिल हुई थी। मगर बाद में कांग्रेस के ममता बनर्जी से संबंधों में कड़वाहट उत्पन्न हो जाने के कारण उनका गठबंधन टूट गया था तथा कांग्रेस ममता मंत्रिमंडल से अलग हो गई थी।
2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व वामदलों ने मिलकर चुनाव लड़ा था। उसके बावजूद ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने 294 सीटों में से 211 सीटें जीतकर लगातार दूसरी बार सरकार बनाई थी। तृणमूल कांग्रेस को दो करोड़ 45 लाख 64 हजार 523 यानी 44.91 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा ने 291 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 3 सीटें जीती थी। उसे 55 लाख 55 हजार 134 यानी 10.16 प्रतिशत वोट मिले थे। माकपा ने 148 सीटों पर चुनाव लड़ कर 26 सीटें जीती थी। पार्टी को एक करोड़ 8 लाख 2 हजार 58 यानी 19.75 प्रतिशत वोट मिले थे।
कांग्रेस ने 92 सीटों पर चुनाव लड़कर 44 सीटें जीती थी। कांग्रेस को 67 लाख 938 वोट मिले जो 12.25 प्रतिशत थे। ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ कर दो सीटें जीती थी। उसे 15 लाख 43 हजार 764 यानी 2.82 प्रतिशत वोट मिले थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 11 सीटों पर चुनाव लड़कर 1 सीटें जीती थी। उसे 7 लाख 91 हजार 925 यानी 1.45 प्रतिशत वोट मिले थे। रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ने 19 सीटों पर चुनाव लड़कर 3 सीटें जीती थी। उसे 9 लाख 11 हजार 4 वोट यानी 1.67 प्रतिशत वोट मिले थे।
इस तरह से देखे तो 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस वाम मोर्चे के गठबंधन में सबसे अधिक फायदा कांग्रेस को ही हुआ था। कांग्रेस पार्टी ने मात्र 92 सीटों पर चुनाव लड़कर 44 सीटें जीती थी। जबकि वाम पंथी दलों ने 202 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 32 सीटें ही जीत पाए थे। 44 सीटें जीतने के कारण कांग्रेस को विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी मिला था। हालांकि बाद में कांग्रेस के बहुत से नेता पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में शामिल हो गए। उसके बाद बंगाल में कांग्रेस की हालत बहुत खराब हाती चलीे गई।
जहां 2016 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के 44 विधायक चुनाव जीते थे। उनकी संख्या घटकर अब मात्र 23 रह गई है। वहीं भाजपा के मात्र 3 विधायक जीते थे जिनकी संख्या बढ़कर 19 हो गई है। माकपा के भी 25 विधायक जीते थे उनकी संख्या भी 19 रह गई है। पिछले 5 वर्षों के दौरान तृणमूल कांग्रेस में विपक्षी दलों के 8 विधायक व भाजपा में 16 विधायक शामिल हो चुके हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में भाजपा ने लंबी छलांग लगायी व तृणमूल कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 42 में से 22 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। उसे 2 करोड़ 47 लाख 57 हजार 345 वोट मिले थे जो कुल मतदान का 44.91 प्रतिशत थे। भाजपा को 18 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी। जबकि उससे पूर्व है बंगाल में भाजपा के मात्र दो सांसद थे। भाजपा को 2 करोड़ 30 लाख 28 हजार 517 वोट मिले थे। जो कुल मतदान का 40.70 प्रतिशत थे। पिछले लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को भाजपा से मात्र 2.60 प्रतिशत वोट ही अधिक मिले थे।
कांग्रेस ने लोकसभा की मात्र 2 सीटें जीती थी। उसे 32 लाख 10 हजार 491 वोट मिले थे जो कुल मतदान का 5.67 प्रतिशत थे। पिछले लोकसभा चुनाव में बंगाल में माकपा सहित वाम मोर्चे का खाता भी नहीं खुला था। माकपा को 35 लाख 94 हजार 286 वोट मिले थे जो कुल मतदान का 6.30 प्रतिशत थे। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस व वाममोर्चा तो मुख्य मुकाबले से भी दूर रहे थे। असली मुकाबला को तृणमूल कांग्रेस व भाजपा के बीच हुआ था।
पश्चिम बंगाल में पिछले 10 वर्षों से तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी एक छत्र राज कर रही है। उससे पूर्व पश्चिम बंगाल में 34 वर्षों तक वाममोर्चा व 25 वर्षों तक कांग्रेस ने शासन किया था। मगर अब स्थितियां एकदम से पलट गई है। वर्तमान में वहां मुख्य मुकाबला तृणमूल कांग्रेस व भाजपा में होना तय माना जा रहा है। वर्तमान समय में तो कांग्रेस व वामामोर्चा मुख्य मुकाबले में कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।
भाजपा नेताओं ने तो पश्चिम बंगाल में विधानसभा की 200 सीटें जीतने का आह्वान भी कर दिया है। उसी श्रंखला में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित अनेकों वरिष्ठ नेता पश्चिम बंगाल पर पूरा फोकस किए हुए हैं। अमित शाह ने तो विधानसभा चुनाव तक हर माह पश्चिम बंगाल का दौरा करने की बात कही है। भाजपा ने वहां एक दर्जन केन्द्रीय मंत्रियों को विभिन्न क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा लगातार दौरा करने से वहां के कार्यकर्ताओं का मनोबल काफी बढ़ा है।
हाल ही में अमित शाह की मेदनीपुर रैली में ममता सरकार में वरिष्ठ मंत्री रहे शुभेंदु अधिकारी सहित विभिन्न दलों के 10 विधायकों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। जिससे तृणमूल कांग्रेस को भी काफी परेशानी हो रही है। भाजपा के आक्रमक चुनाव अभियान को देख कर पश्चिम बंगाल में कांग्रेसी इकाई के नेताओं ने भी राहुल गांधी व प्रियंका गांधी से मांग की है कि वो भी पश्चिम बंगाल का दौरा कर वहां के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाएं। राहुल गांधी के बंगाल दौरे से कांग्रेस कार्यकर्ता सक्रिय होकर चुनावी अभियान में जूट सकेंगे।
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का वाम मोर्चे से गठबंधन तो हो चुका है। मगर अभी सीटों पर फैसला नहीं हुआ है। 2016 के विधानसभा चुनाव में वाम मोर्चे ने कांग्रेस को मात्र 92 सीटें ही दी थी। जिसमें कांग्रेस का चुनाव परिणाम वाम मोर्चे से बहुत अच्छा रहा था। लोकसभा में भी चुनाव में भी वाम मोर्चे को जहां एक भी सीट नहीं मिली वहीं कांग्रेस 2 सीटें जीतने में सफल रही थी। ऐसे में इस बार कांग्रेस पहले से कहीं अधिक विधानसभा की सीटें मांग सकती है। वैसे भी 2011 से कांग्रेस विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल बनी हुई है।
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस वाम दलों का गठबंधन तृणमूल कांग्रेस, भाजपा के खिलाफ तीसरा मोर्चा बन कर कितनी टक्कर दे पाएगा यह तो चुनाव के बाद ही पता लगेगा। मगर फिलहाल 2011 के विधानसभा चुनाव में शून्य पर आउट होने वाली भारतीय जनता पार्टी वहां सरकार बनाने की तैयारी कर रही है। इस बात को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस पार्टी को भी ऐसी रणनीति बनानी चाहिए कि पश्चिम बंगाल में पिछले 44 वर्षों से उनकी सत्ता से दूरी बनी हुई है वह समाप्त हो। पश्चिम बंगाल में एक बार फिर कांग्रेस पार्टी मजबूत होकर उभर सके।

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